जुवेनाइल जस्टिस एक्ट 2000 | Juvenile Justice Act 2000 in Hindi
समाज मे आज कल बच्चों द्वारा अपराध किए जाने के घटना हमेशा हम अखबार मे पढते आ रहे है और न्यूज मे देखते आ रहे है। कानून की नजर में, जब भी कभी किसी बच्चों के द्वारा किसी भी प्रकार का कोई गैर क़ानूनी अथवा समाज विरोधी कार्य जैसे कोई अपराध हो जाता है, तब इस गैर क़ानूनी अपराध करने वाले को हम बाल अपराध कहते है। भारतीय कानून में जब कोई बालक अपराध करता है तब उसकी आयू 8 वर्ष से अधिक तथा 18 वर्ष से कम होती है तो उस बालक द्वारा किया गया अपराध बाल अपराध की श्रेणी में गिना जायेगा। इस कानून के तहत ऐसे बालको को बाल न्यायालय के समक्ष उपस्थित किया जाता है।
आज इस लेख के माध्यम से हम जुवेनाइल जस्टिस एक्ट 2000 | Juvenile Justice Act 2000 in Hindi बारे में क्या प्रावधान बताये गए हैं, इनके बारे में पूर्ण जानकारी हसिल करने वाले है। साथ ही जुवेनाइल एक्ट क्या होता है, जुवेनाइल संशोधन बिल और जुवेनाइल एक्ट सम्बंधित जानकारी के बारे में भी विस्तार से चर्चा करने वाले है।
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जुवेनाइल एक्ट क्या होता है (Juvenile Justice Kya Hota Hai)
जुवेनाइल याने की बालक, जिसकी उमर 16 वर्ष से कम है। ज्युवेनाइल यह उन बच्चों के लिए इस्तेमाल किया जाता है जिनकी उमर 18 साल से कम होती है। भारतीय दंड संहिता के धारा 82 के अनुसार 7 वर्ष से काम उम्र के बच्चे को किसी भी अपराध के लिए सजा नहीं दी जा सकती ऐसा उल्लेखित किया गया है। वक्त से साथ साथ लोकसभा में भारत सरकार द्वारा अगस्त 2014 में जुवेनाइल जस्टिस बिल को पेश किया गया और उसमे संशोधन के द्वारा जुवेनाइल शब्द के बालकों की आयू को 18 वर्ष से घटाकर 16 वर्ष कर दिया गया है।
जमिनी स्थर की बात की जाये तो, जुवेनाइल एक्ट 2000 इस बात को निर्धारित करता है, कि जो बच्चा गैर कानूनी कार्य कर देता हैं याने अपराध करता है उसे उचित देखभाल और संरक्षण की आवस्यकता होती है, उसके साथ किस तरह का व्यवहार करना चाहिए।
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इस कानून के तहत 16 वर्ष से अधिक आयू के किशोर अपराधियों को व्यस्क अपराधि माना जाता है। इस कानून के प्रावधानों के मुताबिक, गंभिर अपराध करने वाले किशोर अपराधियों को जेल की सजा दी जा सकती है। लेकीन उस किशोर अपराधि को उम्र कैद अथवा फांसी की सजा नहीं दि जा सकती। वही पहले वाले कानून के मुताबिक किशोर की उम्र 16 की बजाय 18 वर्ष की थी।
यहाँ पर आपको ये जानना चाहिए कि जिस किसी भी बच्चे की आयू 18 वर्ष से कम होती है, तो उसका केस कोर्ट की जगह जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड में चलाया जाता है। दोषी पाए जाने पर उस किशोर अपराधि को अधिकतम 3 साल के लिए बाल सुधार गृह भेज दिया जाता है। कानून में बदलाव के बाद किसी भई स्कुल और कॉलेज मे रैंगिग करते हुवे पाए जाने वाले 16 वर्ष से अधिक आयू वाले अपराधियों को दोषी ठहराने के बाद 3 साल की सजा और 10,000 रुपए तक का जुर्माना हो सकता है।
जुवेनाइल कौन होता हैं?
जुवेनाइल वह बाल अपराधि है जिसकी आयू 18 वर्ष से कम हो ऐसे व्यक्ति को जुवेनाइल की श्रेणी में रखा जाता है। जुवेनाइल जस्टिस कानून, 2000 के धारा 2(k) के अनुसार जुवेनाइल वह व्यक्ति है, जिसने अभी तक 18 वर्ष पूरा न किया हो। हाँलांकी, नए संशोधन में इसी उम्र को घटाकर 16 वर्ष कर दिया गया है।
जुवेनाइल लॉ होने के बावजूद नए बिल की जरूरत क्यों?
सरकार को अध्ययन में एक बात सामने आई की जुवेनाइल जस्टिस कानून 2000 में कुछ प्राकृतिक और कार्य के हिसाब से मौजूदा कानून में कुछ सुधार की आवश्यकता है। क्योंकि, बहोत से लोगोने इस कानून का फायदा लेते हुवे किशोर बालकों को गंभिर रुप के अपराध कर रहे थे। साथ ही राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के मुताबिक उन अपराधों की संख्या में तेजी बढोतरी हो रही थी, जिनमें शामिल लोगों की आयू 16 से 18 वर्ष के आसपास थी। इसलिए जुवेनाइल जस्टिस लॉ होने के बावजूद नए बिल की जरूरत को महसूस किया गया।
इस नए बिल में यह प्रावधान किया गया कि गंभीर अपराधों में शामिल 16-18 वर्ष के बच्चों पर वयस्कों की तरह मुकदमा चलाया जाएगा। नए बिल में जिन तीन तरह के अपराधों का जिक्र किया गया है वे इस प्रकार हैं।
- एक गंभीर अपराध वह है, जिसमें मौजूदा कानून के मुताबिक कम से कम सात साल कैद की सजा होती हो।
- एक गंभीर अपराध वह है, जिसमें 2 से 7 साल तक की कैद की सजा होती हो।
- एक छोटा अपराध वह है, जिसमें 3 साल तक की कैद की सजा होती हो।
उन बच्चों को जिनकी आयू 18 वर्ष से कम है ऐसे नाबालिग बच्चोंको वयस्कों की तरह सजा देने पर बहतसे विशेषज्ञों की इस बात पर अलग-अलग राय आते हैं। कुछ विशेषज्ञों का यह कहना है कि “मौजूदा कानून बच्चों के मन में अपराध के प्रति डर पैदा नहीं करता वही कुछ विशेषज्ञों का यह मानना है कि नाबालिग अपराधियों को सुधार गृह में भेजने से अपराध के प्रति उनका नजरिया बदलता है और उनमें सुधार आता है। वही दुसरीऔर कानून के कुछ विशेषज्ञों का ये भी कहना है कि गंभीर किस्म के अपराध करने वाले बाल आरोपियों पर वयस्कों की तरह केस चलाने से भारतीय संविधान का आर्टिकल 14 (समानता का अधिकार) और आर्टिकल 21 (कानून सबके लिए बराबर है) का उल्लंघन होता है।
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जुवेनाइल एक्ट में संशोधन
इस कानून में किये गये नए संशोधन के तहत किसी भी नाबालिग बच्चे के खिलाफ कोई भी आपराधिक मामला कई वर्षो से चल रहा हो तो, जुवेनाइल जस्टिस एक्ट में यह नियम है के, इस तरह के मामलों का निस्तारण 6 माह के भीतर नहीं हो पा रहा हो, तब ऐसी परिस्थिति में इसतरह के मामलो को हमेशा के लिए समाप्त करना चाहिए। और इसके बाद उस नाबालिग का कोई भी आपराधिक सबूत रखने की बजाय मिटा दिए जाने का भी नियम है। इस नियम के पीछे का उद्देश्य यह है कि, किसी भी नाबालिग बच्चे की नई जिंदगी में उसके पिछले आपराधिक इतिहास का कोई अस्तित्व न रह जाये, और साथ ही पुरानी भुतकाल की गलतियां की वजह से उसकी भविष्य की ज़िंदगी पर कोई बुरा प्रभाव न पड़े।
किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015
यह अधिनियम किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2000 कि जगह लेता हैं। यह बिल उन बच्चों से संबंधित है जिन्होने कानूनन कोई भी अपराध किया हो और जिन्हें देखभाल और संरक्षण की जरुरत है। यह बिल गंभीर अपराधों से जुडे हुवे बालकोंसे संबंधित है जिनकी आयू 16-18 वर्ष के बीच की है जो के किशोरों के ऊपर बालिगों लोगों के समान मुकदमा चलाने की अनुमति देता है। और उसके साथ ही 16-18 वर्षीय आयू के जुवेनाइल को जिसने कम गंभीर अपराध किया हो उसके ऊपर बालिग के समान केवल तभी मुकदमा चलाया जाएगा जब उसने 21 वर्ष की आयु के बाद पकड़ा गया हो।
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इस कानून के अनुसार, प्रत्येक ज़िले में एक जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (Juvenile Justice Board- JJB) और एक बाल कल्याण समितियों (Child Welfare Committees) निर्माण केरने के बारेमे प्रावधान दिया गया है। इस अधिनियम में बच्चों के विरुद्ध अत्याचार, बच्चों को नशीला पदार्थ देने और बच्चों का अपहरण करने या उसे बेचने के संदर्भ में दंड निर्धारित करता है। इस कानून में बच्चे को गोद लेने के लिये माता-पिता की योग्यता और गोद लेने की पद्धति को शामिल किया गया है।
किशोर न्याय (बालकों की देखरेख एवं संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2018
यह विधेयक ज़िला मजिस्ट्रेट को बच्चों को गोद लेने के आदेश देने की शक्ति प्रदान करता है ताकि गोद लेने संबंधीत लंबित मामलों की संख्या को कम किया जा सके। इस विधेयक में किसी भी अदालत के समक्ष गोद लेने से संबंधित सभी लंबित मामलों को ज़िला मजिस्ट्रेट के न्यायालय मे स्थानांतरित करने का प्रावधान है। इसके माध्यम से लंबित मामलों की कार्यवाही में तेज़ी आ सके।
बच्चा अनाथ हो तब क्या होता है?
यह बिल खास कर के बच्चों के देखभाल और संरक्षण की जरूरत के लिए बनाया गया हैं। यदि कोई बच्चा अनाथ हो जाता है या उसे त्याग दिया जाता है तो उसे 24 घंटे के अंदर किसी बाल कल्याण समिति में लाया जाता है | इसके बाद उस बच्चे के लिए एक सामाजिक जांच रिपोर्ट तैयार की जाती है। फिर समिति फैसला करती है कि बच्चे को किसी बाल संरक्षण गृह में रखा जाए या उसे किसी को गोद दिया जाए या कोई अन्य ऐसा उपाय किया जाए जो बच्चे के लिए सही हो |
जुवेनाइल जस्टिस एक्ट में सजा का प्रावधान
जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के अंतर्गत नाबालिग बच्चे के द्वारा किए गए अपराध की सजा तय की गई है। और सभी राज्यों में इसके लिए कोर्ट कि स्थापना की गई हैं। नाबालिग अपराधियों की अधिकतम सजा 3 वर्ष तक दी जा सकती है। इस दौरान नाबालिग अपराधियों के सुधार और देखभाल के लिए उन्हें सुधार गृह में रखा जाता है। जुवेनाइल जस्टिस एक्ट में नाबालिग के खिलाफ चल रहे मुक़दमे की सुनवाई के लिए समय निर्धारित किया गया है। जैसे नाबालिग के खिलाफ कोई मामले का निस्तारण 6 माह के भीतर नहीं होता है, तो पूरी कार्यवाही को वहीं पर समाप्त कर दिया जाता है।
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सामाजिक रिपोर्ट बनाये जानें का प्रावधान
जब किसी नाबालिग के विरुद्ध को्ट में कोई मामला चल रहा होता है, उस दौरान लीगल कम प्रोबेशन ऑफिसर द्वारा बच्चे के परिवार की सोशल जांच रिपोर्ट तैयार करते है। इसमें उस नाबालिग के परिवार की पूरी जानकारी लीखी होती हैं। इस के दौरान नाबालिग के परिवार, रिश्तेदार और उसके आसपास का माहौल के बारे में पुरी जानकारी प्राप्त की जाती है और इस बात का भी ध्यान रखा जाता है की यदि नाबालिग को जमानत दी जाती है, तो इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि भविष्य में उसका जीवन पर ख़राब असर न हो।
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इस लेख के माध्यम से हमने हमारे पाठको को जुवेनाइल जस्टिस एक्ट 2000 | Juvenile Justice Act 2000 in Hindi के बारे में जानकारी मिस गइ हैं। यदि इससे सम्बन्धित अन्य किसी भी प्रकार की कुछ भी शंका हो तो या अन्य कोई जानकारी प्राप्त करना चाहते है, तो आप हमें कमेंट बॉक्स के माध्यम से अपने प्रश्न और सुझाव हमें भेज सकते है।
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