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दत्तक ग्रहण क्या है | Adopted meaning in Hindi

दत्तक ग्रहण क्या है | Adopted meaning in Hindi

Photo by Kindel Media from Pexels


परिचय

हिंदू धर्म में दत्तक की परंपरा कई सालों से चलती आ रही है। हिंदु धर्म का मानना है कि, मृत्यु के बाद, व्यक्ति को उसका अंतिमसंस्कार करने का, दशक्रियादि कर्म करने का, उसका श्राद्ध करने का अधिकार उसके पुत्र का ही होता है। इन सभी कार्यों को किये बिना, उस व्यक्ति को मोक्ष प्राप्त नहीं होता है। इसलिए, हमारे पास एक पुत्र होना ही चाहिए और अगर वह नहीं है, तो उसे धर्म  के अनुसार दत्तक के रुपमे एक पुत्र अपनाने की अनुमति दीया जाता है। इसका इस्तेमाल करके एक बच्चे को एक पुत्र को दत्तक लेने का आग्रह पेहले के जमाने मे आम हुवा करता था। आज कल, आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक सुधारों के कारण, लड़कों और लड़कियों के भैद भाव करना धीरे-धीरे कम होता जा रहा है। निश्चित रूप से, इससे समाज पर प्रभाव हो रहा है। फिर भी, जिनको संतान सुख का लाभ मिलना चाहिए, उनके लिये आज भी यही मार्ग उपलब्ध है।इसलिए, दत्तक ग्रहण क्या है? यह समझनेसे पहले हम दत्तक ग्रहण के कानूनी पहलुओं को समझने की कोशीश करेंगे।


दत्तक के बारेमे कानूनी पहलुओं को देखने से पहले मैं इस बात चर्चा करना चाहता हू वह यह है कि पहले हम हिंदु धर्म पर विचार करेंगे। बेशक, हिंदू धर्म में बौद्ध, सिख, जैन और लिंगायत शामिल हैं। यदि, अंन्य धर्म के लोग दत्तक लेने की इच्छा रखते हैं, तो उन्हे गाडियन अंड वॉर्ड ॲक्ट के प्रावधानों के तहत अदालत आवेदन कर के अदालत की अनुमति से ऐसा कर सकते हैं।


अब हिंदुओं के मामले में, दत्तक लेने के प्रावधान पर विचार करे, तो इस तरह के दत्तक लेने का प्रावधान हिंदू धर्म मे लंबे समय से चलता आ रहा है। लेकिन 1956 के हिंदू वैयक्तीक कानून के आधार पर उस प्रावधान के लिये कौनसे बातो की आवश्यक्ता है, उसके लिये कौनसे नियम लागू होंगे, आइए देखते है। सबसे पहले हम दत्तक किसे लिया जा सकता है, यह देखते है।
 

किसे दत्तक लिया जा सकता है:-

  1. जिस लड़की या लड़के को दत्तक लिया जाना है उस की उम्र पंद्रह वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए।
  2. दत्तक लेनेवाले व्यक्ति उम्र, दत्तक पुत्र या पुत्री के उम्र से 21 वर्ष से अधिक होना चाहिए।
  3. पुत्र अथवा पुत्री को दत्तक लिया जा सकता है।
  4. दत्तक ग्रहण के लिये दत्तक पुत्र या पुत्री के नैसर्गीक माता-पिता की सहमति आवश्यक है।
  5. दत्तक पुत्र या पुत्री वे विवाहीत नहीं होना चाहिए।
  6. दत्तक पुत्र अथवा पुत्री को इसे किसी दुसरे व्यक्ती द्वारा पहले दत्तक नही लिया जाना चाहिए।
  7. दत्तक लिया बच्चा धर्मसे हिंदू होना चाहिए।

कौन दत्तक अपना सकता है:-

  1. हिंदू एडॉप्शन एक्ट के अनुसार, हिंदू महिलाएं और हिंदू पुरुष दोनों दत्तक अपना सकते हैं।
  2. जिस आदमी की पत्नी की मृत्यु हो गई है, वह दत्तक अपना सकता है।
  3. ऐसी महिला जिसके पति की मृत्यु हो गई हो, वह भी दत्तक अपना सकती है।
  4. दत्तक अपनाने वाले पुरुष या महिला दोनों कानून के तहद सज्ञान होने चहीये।
  5. दत्तक अपनाने वाला व्यक्ति धर्मसे हिंदू होना चाहिए।
  6. दत्तक पुरुष या महिला को कानून द्वारा पागल घोषीत नहीं किया जाना चाहिए।
  7. यदि दत्तक अपनाने वाला पुरुष है, तो उसे दत्तक अपनाने के लिए अपनी पत्नी की सहमति लेना आवष्यक है।
  8. कानून बहुविवाह की अनुमति नहीं देता, लेकिन कुछ प्रचलित रीति-रिवाजों के अनुसार एक से अधिक विवाह होते हैं, दत्तक अपनाते समय सभी पत्नियों की सहमति आवश्यक है।

यदि कोई महिला गोद लेना चाहती है, तो आइए देखें कि क्या प्रावधान हैं: -

  1. यदि किसी विवाहित महिला का पति जीवित होते हुवे उसके पति द्वारा दत्तक अपनाना चाहती हो। बेशक उसकी सहमति आ गई।
  2. पति के पश्चात पत्नी दत्तक अपना सकती है।
  3. यदि कोई महिला अपने पति से तलाक ले चुकी हो, तो वह दत्तक अपना सकती है।
  4. यदि किसी महिला का पति मानसीक रुपसे पागल है, तो वह महिला अपनी मर्जी से दत्तक अपना सकती है।

यह प्रावधान सिर्फ महिलाओं पर लागू होते हैं। आमतौर पर, एक पती को उसकी पत्नी की सहमति के बिना दत्तक अपना नहीं सकता। लेकिन, कुछ परिस्थिति के कारण पती अपनी पत्नी के सहमति के बिना भी दत्तक अपना सकता है। इसे केवल निम्नलिखित परिस्थितियों में ही अपनाया जा सकता है।


पत्नी के सहमती के बिना पती द्वारा दत्तक ग्रहण:-

  1. यदि किसी पुरुष की पत्नी पागल है, तो वह उसकी सहमती के बिना दत्तक अपना सकता है।
  2. यदि किसी पुरुष की पत्नी ने धर्म परिवर्तन कर लिया है, तो उसे भी दत्तक अपनाने के लिए अपनी पत्नी की सहमति की आवश्यकता नहीं होगी।
  3. यदि पत्नी ने तलाक लिया है, तब दत्तक अपनाने के लिए पत्नी की सहमति की आवश्यकता नहीं है।
  4. यदि किसी की पत्नी संसार को त्यागकर संन्यास धारण कर लिया हो, तो दत्तक अपनाते समय पत्नी की सहमति की कोई आवश्यकता नहीं है।

       उपरोक्त मामले में, यदि पत्नी पागल है, तो पती उसकी सहमति के बिना दत्तक अपना सकता है, और यदि पति पागल है, तो उसकी पत्नी खुद दत्तक अपना सकती है। यहा पर एक बात ध्यान रखनेलायक है के, यदि किसी को पागल कहने से वह व्यक्ति पागल नहीं हो जाता है। उपरोक्त नियम तभी लागू होते हैं जब कोई अदालत किसी महिला या पुरुष को पागल घोषित करता है।

जिस तरह हिंदू धर्म में मुंज या विवाह एक रस्म है, उसी तरह दत्तक अपनाना भी एक रस्म ही है। दत्तक अपनाने की उचित प्रक्रिया का पालन करके दत्तक अपनाया जा सकता है।

दत्तक ग्रहण के समय ध्यान रखने योग्य कुछ बातें इस प्रकार हैं: -

  1. दत्तक अपनाने वाले लडके को बेटा अथवा बेटी नहीं होनी चाहिए।
  2. यदि दत्तक अपनाने वाले व्यक्ती को बेटा अथवा बेटी है, तो वे जीवित नहीं होना चाहिए।
  3. दत्तक अपनाने वाले व्यक्ती के पास पोते अथवा परपोते नहीं होने चाहिए।

इसकी कोई जरूरत नही के, दत्तक ग्रहण यह कानून के प्रावधानों के अनुसार ही बनाया जाना चाहिए। यह विधि अनुष्ठान धार्मिक तरीके से भी किया जा सकता है और इसे कानूनी रूप से वैध माना गया है। लेकिन यदि दत्तक ग्रहण को धार्मिक तरीके से अपनाया जाए, तो निम्न कार्य करना बेहतर होगा।


आमतौर पर दत्तक अपनाने वाले लोग दो प्रकार के होते हैं।
(१) मानवीय दृष्टिकोण से दत्तक अपनाने वाले लोग,
(२) जो लोग निःसंतान हैं या जिनके कोई संतान नहीं है; जिनके पास जादा संम्पत्ति है।

अब, पहले प्रकार के लोगों को छोड़कर, दूसरे प्रकार के लोगों के उत्तराधिकारी जो की अन्य श्रेणियों के उत्तराधिकारीयो में आते हैं, उनके द्वारा दत्तक अपनाने पर आपत्ति जताई जा सकती है, इसलिए ऐसे परिस्थिति मे धार्मिक विधि को अपनाने के बारे में निम्नलिखित सावधानियां बरतनी चाहिए।
 
  1. दत्तक अपनाने की रस्मो की तस्वीरें लेना अच्छा होगा।
  2. जिस वैदिक, ने धार्मिक विधि किए। उनकी गवाही लेकर तैयार रखें।
  3. दत्तक ग्रहण के दस्तावेज बनवाकर उसे पंजिकरण करके रखे।

इस तरह के दस्तावेज़ो को बनायाकर दर्ज किया जाए। एसी कोई कानूनी आवश्यकता नहीं है। 

आइए अब इस दत्तक ग्रहण के बारे में जानकारी हासिल करे। सामान्य तौर पर, दत्तकग्रहण के दो प्रकार होतै है:-

(1) विधवा द्वारा दत्तक पत्र का दस्तावेज।
(२) पत्नी की सहमति से किए गए दत्तक पत्र का दस्तावेज।

आइए अब देखते हैं कि प्रत्येक दस्तावेज़ में कौन सी महत्वपूर्ण बातें होनी चाहिए।

(1) विधवा द्वारा दत्तक पत्र का दस्तावेज:-

(ए) पति की मृत्यु के कारण का उल्लेख करना महत्वपूर्ण है,
(बी) यदि पति ने कोई इच्छा व्यक्त की है, तो उसे दत्तक ग्रहण के दस्तावेज मे उल्लेख किया जाना चाहिए।
(ग) यदि दत्तक विधवा का दत्तक माता-पिता के साथ अथवा दत्तक बच्चे के साथ कोई रिस्ता आता है, तो दत्तक ग्रहण के दस्तावेज म इसका उल्लेख किया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए, दत्तक बच्चे के साथ मेरा चाची का रिश्ता है। वह बचपन से मेरे साथ रहा है, मेरा उससे और उसका मुझसे काफी लगाव हुआ है। ऐसा उल्लेख दस्तावेज मे होना चाहिए।

(२) पत्नी की सहमति से किए गए दत्तक पत्र का दस्तावेज:-

(ए) सामान्य जानकारी- जैसे कि शादी कब हुई और अन्य विवरण।
(बी) मेडिकल एक्सपर्ट की राय- यहां मेडिकल एक्सपर्ट की राय देना बहुत अच्छा है। उदाहरण के लिए, किसी कारण से दंपति को संतान होने की संभावना नहीं है।
(ग) पत्नी की सहमति- इस दस्तावेज में पत्नी की सहमति का उल्लेख होना चाहिए।

इसके अलावा, दोनों प्रकार के दत्तक ग्रहण के दस्तावेज की आवश्यकताएं निम्नानुसार हैं:-

  1. दत्तक पत्र आमतौर पर रुपये ------/- स्टाम्प अधिनियम के परिवर्तित प्रावधानों के अनुसार समय-समय पर आवश्यक स्टैम्प पेपर पर करना आवश्यक है।
  2. यदि वैदिक विधि को अपनाकर दत्तक ग्रहण दस्तावेज बनाया गया है, तो साक्षी के रूप में हस्ताक्षर प्राप्त करना बेहतर है।
  3. दत्तक देनेवाले माता-पिता के हस्ताक्षर दत्तक ग्रहण के दस्तावेज पर लेना आवश्यक हैं। इसी तरह, दत्तक माता-पिता के भी आवश्यकतानुसार हस्ताक्षर करना वांछनीय होगा।
  4. आमतौरपर उपस्थित लोगों,  तिथी, वार, तारीख, फोटो आदि का उल्लेख करना बेहतर है।
  5. इसमें माता-पिता दोनों के पते दिए जाने चाहिए।
  6. यदि इसके अलावा कोई अन्य महत्वपूर्ण चीजें हैं, तो इसे दत्तक ग्रहण वाले दस्कावेज में उल्लेख किया जाना चाहिए। उदाहरण देना चाहे, तो दत्तक बच्चे को दत्तक अपनाने वाले माता-पिता द्वारा ध्यान रखा जाएगा। यदि कोई अन्य कारण हैं, तो संक्षिप्त इतिहास इत्यादि। 
  7. यदि दस्तावेज़ पंजीकरण अधिकारी के समक्ष पंजीकृत किया है तो यह बहुत अच्छा होगा।

दत्तक ग्रहण से होने वाले परिणाम: -

  1. दत्तक बच्चे का जन्मजात उत्तराधिकार अधिकार समाप्त कर दिया जाता है।
  2. दत्तक अपनाने वाला व्यक्ति बच्चे का कानूनी अभिभावक (Guardian) बन जाता है।
  3. दत्तक दिये गए बच्चे को दत्तक अपनाने के बाद दत्तक अपनाने वाले का नाम और उपनाम देना होगा।
  4. पुराने पिता का नाम और उपनाम, दत्तक दिये हुए बच्चा ईस्तेमान नहीं कर सकता।
  5. दत्तक पुत्र अथवा पुत्री का दत्तक अपनाने वाले व्यक्ति का उत्तराधिकार लागू होता है।

संक्षेप में कहे तो, रक्त संबंधि और मूल परिवार के रिश्तेदार दत्तक ग्रहण के बाद टूट जाता है, और नए रिश्ते बन जाते है। इन सभी सूचनाओं में एक महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि, दत्तक पुत्र अथवा पुत्री के नैसर्गीक माता-पिता किसी भी तरह से कोई भी मुआवजा, इस आधार पर स्विकारना मना है। बदले में पुरस्कार या दान लेना भी मना है।

ऊपर हमने जो जानकारी देखी वह मुख्य रूप से हिंदू धर्म में प्रचलित दत्तक ग्रहण से संबंधित थी। भले ही इसे दत्तक ग्रहण के कानून के तहत कानूनी रूप दिया गया हो, यह सिर्फ हिंदु धर्म के लिए लागू है। इसमें अन्य धर्म शामिल नहीं हैं। हिंदू धर्म के अलावा, दत्तक ग्रहण की अवधारणा अन्य धर्मों दिखाई नही देता।


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