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चार्जशिट किसे कहते है? | चार्जशिट कितने दिनो मे कोर्ट मे दाखिल होती है? | Charge Sheet in Hindi

चार्जशिट किसे कहते है? | चार्जशिट कितने दिनो मे कोर्ट मे दाखिल होती है? | Charge Sheet in Hindi



जब कभी भी किसी के खिलाफ एक किसी पुलिस थाने मे शिकायत दर्ज की जाती है तब उस शिकायत पर एफ.आई.आर. दर्ज की जाती है और जांच अधिकारी द्वारा उस अपराध की जांच कर के यदी अपराध साबित होता है तो जांच अधिकारी कोर्ट मे चार्जशिट दाखिल करता है। चार्जशिट को आरोप पत्र और अभियोग पत्र भी कहते है। तो आईये आज हम इस लेख के माध्यम से चार्जशिट किसे कहते है और और वह कितने दिनो मे कोर्ट मे दाखिल होती है इसके बारेमे जानने की कोशिश करेंगे।


आये दिन हम अखबारोमे और न्यूज चौनल पर अपराध और अपराधियों के बारें में अक्सर सुनते रहते है। हालाँकि हमारे देश के कानून में जैसे भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत सभी प्रकार के आपराध के लिए सजा का प्रावधान बताया गया है, परन्तु आरोपी के आरोप को सिध्द होने के लिए कानून में एक प्रक्रिया होती है। उसी प्रक्रिया के अंतर्गत न्यायलय में अपराध करनें वाले व्यक्ति का अपराधी सिद्ध करना होता है।


देथाजाए तो यह प्रक्रिया काफी लम्बी होनो के साथ-साथ इसके अंतर्गत दोष को सिद्ध करनें में काफी समय लग जाता है। इस प्रक्रिया के अंतर्गत एक और प्रक्रिया है जो के आरोप पत्र दाखिल करनें की होती है, जिसे पुलिस द्वारा की जाती है।

आरोप पत्र किसे कहते है? 

किसी गंभीर अपराध की शिकायत मिलमे पर पुलिस द्वारा अपराधी के विरुद्ध एफ.आई.आर. दर्ज किया जाता है। उस के बाद उस शिकायत की जाँच अधिकारी द्वारा जाँच याने की जाती है। यदि जाँच अधिकारी को जाँच के दौरान यह लगता है, अपराध के मामलो में उसके पास पर्याप्त सबुत के तौर पर साक्ष्य और कागजाद मौजूद हैं, तो जाँच अधिकारी उस केस में मुकदमा चलाने के लिए न्यायालय में चार्जशिट याने आरोप पत्र दाखिल करता है। 


आरोप पत्र का प्रारूप (Charge Sheet Format)

शिकायत मिलने पर पुलिस द्वारा सीआर.पी.सी. धारा 154 के तहत एफ.आई.आर. दर्ज किया जाता है और जाँच अधिकारी द्वारा जाँच पुरी होने के बाद अदालत मे सीआर.पी.सी. धारा 173 नुसार चार्जशीट रिपोर्ट को दाखिल कहते हैं। इस रिपोर्ट के साथ आरोपीयों को कोर्ट के समक्ष विचारण (Trial) के लिए बुलाया जाता है। चार्जशीट में अपराध के बारेमे संक्षिप्त विवरण के साथ आरोपीयों के नाम पते तथा उनके खिलाफ की गई गिरफ्तारी, जमानत, फरार इत्यादि का विवरण लिखा हुवा होता है। साथ ही अपराध को कोर्ट में साबित करने के लिए पेश किये जाने वाले गवाह, सबुत और अन्य साक्ष्यों के बारें में लिखा होता है। इसी चार्जशीट के आधार पर कोर्ट में केस का ट्रायल होता है। और आरोपी को अपराध साबित होने के बाद एक तो सजा सुनाई जाती है अथवा बा इज्जत बरी किया जाता है।

चार्जशीट कितने दिनों में दाखिल होती है?

किसी भी अपराध की पुरी तरह छानबीन करने के बाद पुलिस अधिकारी द्वारा सीआर.पी.सी. की धारा-173 के अनुसार कोर्ट में चार्जशीट दाखिल करते हैं। उसकी प्रक्रिया क्या क्या है इसके बारेमे जानने की कोशीश करते है।

  • जिस किसी अपराध में अपराधी की सजा कमसेकम 10 वर्ष की कैद और ज्यादा-से-ज्यादा उम्रकैद या फांसी का प्रावधान होता हो, उस में मामले में आरोपी के गिरफ्तार होने के 90 दिनों के भीतर जाँच अधिकारी को चार्जशीट दाखिल करना होता है, अन्यथा आरोपी को (बेल बाय डिफोल्ट) जमानत मिल जाती है।
  • अंन्य दूसरे मामलों में अपराधी की गिरफ्तारी के 60 दिनों के अंदर चार्जशीट दाखिल करनी होती है। ऐसा न करने पर आरोपी को (बेल बाय डिफोल्ट) जमानत दिए जाने का प्रावधान है।
  • यदी आरोपी की गिरफ्तारी के 90 दिनों के भीतर पुलिस द्वारा मामले की जाँच के दरमीयान जाँच अधिकारी को एसा लगे के आरोप सही पाया जाता है तो मुकदमा पंजीकृत होगा। अन्यथा शिकायत को निरस्त कर दिया जाएगा। इस तरह के अधिकार जांच अधिकारी को होते है।
  • जाँच अधिकारी के चार्जशीट दाखिल करने के बाद अदालत द्वारा साक्ष्यों और तथ्यों के आधार पर आरोपियों के खिलाफ संज्ञान लिया जाता है और गवाहों को समन जारी कर के बुलाया जाता है। और मामले को कोर्ट मे चलाया जाता हैं।
  • यदि आरोपी के खिलाफ जाँच अधिकारी को कोई ठोस सबूत न मिले, तो जाँच अधिकारी सीआर.पी.सी. की धारा-169 के तहत क्लोजर रिपोर्ट बनाकर कोर्ट मे दाखिल कर देती है। तभी अदालत क्लोजर रिपोर्ट में पेश तथ्यों को देखती है और फिर मामले के शिकायत कर्ता को नोटिस जारी कर के कोर्ट को बुलाती है। शिकायत कर्ता को अगर क्लोजर रिपोर्ट पर कोई आपत्ति है तो वह आपत्ती को कोर्ट के समक्ष बताता है। 
  • यदि कोर्ट को लगता है कि आरोपी के खिलाफ दर्ज किया गया मुकदमा चलाने के लिए कोई सबूत नहीं हैं, तो कोर्ट द्वारा क्लोजर रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया जाता है और केस को बंद करने का हुक्म देते हुए आरोपियों को बरी कर देती है।
  • अगर कोर्ट को लगता है की, क्लोजर रिपोर्ट के साथ पेश तथ्यों और साक्ष्यों को देखने के बाद आरोपी के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए सबूत हैं तो वह उसी क्लोजर रिपोर्ट को चार्जशीट की तरह मानते हुए आरोपी को समन जारी करती है।
  • यदि क्लोजर रिपोर्ट के बावजूद भी अदालत संतुष्ट नहीं होती, तो भी अदालत जाँच अधिकारी को फिरसे आगे जाँच करने के लिए कहती है।
  • अगर क्लोजर रिपोर्ट को स्वीकार करने के बाद भी जाँच अधिकारी को आरोपियों के खिलाफ ठोस सबूत मिल जाएं, तो भी दोबारा चार्जशीट दाखिल की जा सकती है, लेकिन एक बार ट्रायल खत्म हो जाए और आरोपी बरी हो जाए तो उसी केस में दोबारा केस नहीं चलाई जा सकती।

इस लेख के माध्य आपको यह पता चल गया होगा के चार्जशिट किसे कहते है और और वह कितने दिनो मे कोर्ट मे दाखिल होती है। आशा है के आपको यह लेख पसंद आया होगा। इसी तरह के कानूनी जानकारी पाने के लिए और सिखने के आप हमारे वेबसाईट apanahindi.com से ज्यूडे रहिए।




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