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वसीयतनामा कैसे बनाते है? | Will in Hindi


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परिचय

वसीयतनामा को अंग्रेजीमे विल केहते है। कुछ लोगों के दिल और दिमाग में, वसीयतनामा इस शब्द को सुनते ही, या फिर उच्चारण करते ही, घबराहट होना जैसे उतार-चढ़ाव होना शुरू हो जाता है। और वे लोग सोच मे पडजाते है के अब मृत्यु के बाद क्या होगा, इस तरह के भयानक विचार दिमाग में दौडने लगते हैं और कुछ लोग एसे है के वे इस पर आंखें मूंद लेते हैं, जैसे के हम उस शब्द को सुन्ना भी नहीं चाहते हैं। और सर्व-साधारण लोग ऐसी सोच से मुंह मोड़ लेते हैं। तो आप वसियतनामा को किस इस तरह देखते हैं?

आज कल की दैनंदीन जिवनशैली और प्रतिस्पर्धात्मक दुनीयामे मनुष्य अपने जीवन स्तर और राहन सहन को ऊपर उठाने की कोशिश मे लगा रहता है। और मनुष्य का दैनिक दायरा इतना बढ़ गया है कि, उसके बाद कई लोगों का क्या होगा? हमे जो चाहये था उसके बारे में हमने सोचा भी नहीं। और सिर्फ इसी कारण से हर व्यक्ति के लिए अपने जिवन के बाद उसके संपत्ती का क्या करना चाहीए यह एक बातकी वजाहसे वसीयतनामा बनाकर रखना समय की आवश्यकता बन गयी है।


आज की तनाव भरी जिंदगी में मनूष के शरीर का कोई भरोसा नहीं है। इसलिए, वसीयतनामा बनवाकर रखना आवश्यक हो गया है। बहुत से लोग अपने द्वारा अर्जित धन संपत्ती को सही तरीके से उपयोग करने की उम्मीद करते हैं। और उसे अपनी इच्छा पूरी करवाने के लिए अपना वसीयतनामा बनवाकर रखने की जरूरत है। वसीयतनामा किसी भी उम्र मे बनाया जा सकता है लेकिन एक मनूष्य को आमतौरपर उसके उम्र के चालीस वर्ष के बाद अपना वसियतनामा बनाना चाहिए।



यहापर, एक मुख्य सवाल उठता है के, क्या वसीयत बनाने के बाद संपत्ति में बदलाव की संभावना है या नहीं। यह भी संभव है कि संपत्ति के लाभार्थियों की लाभ औप नुकसान उनके पश्चात बदल जाएगी। दुसरे पेहलू से कहू तो, जब कोई व्यक्ति वसीयत बनाने वाले के दिल से उतरजाता है, या अप्रत्याशित रूप से उसे कुछ लाभ देना चाहता है, तो क्या करें? इस सब के जवाब पानेके लिए आइए इस वसीयतके बारे में अधिक जानते हैं।


सबसे पहले, वसियतनामा सादे कागज पर बनाई जा सकती है। इसके लिए किसी नॉन-ज्यूडशियल स्टांप पेपर का इस्तेमाल करने की कोई जरूरत नहीं है। वसियत कर्ता को अपनी मातृभाषा में वसीयतनामा बनाना भी बेहतर रहेगा। क्योंकि वह अपनी मातृभाषा में अपने विचारों को अधिक प्रभावी ढंग से स्पस्ट रूपसे व्यक्त कर सकता है। और वसियतनामा लिखते समय कानूनी भाषा का उपयोग करने की कोई आवश्यकता नहीं है। लेकिन, इसे सादे भाषा में लिखा जाना चाहिए। ईसमे अर्थ स्पष्ट होना चाहिए। साथ ही, कोई भी वाक्य या शब्दोमे विरोधाभास नहीं होना चाहिए। जैसे उदाहरणके लिए, मान लीजिए किसी व्यक्ति की दो बेटियाँ हैं, उनका नाम सीता और गीता है, और वसीयत में वह एक वाक्य रखता है कि मेरी सारी नकदी सीता को दे दी जाए। अगर इसे गीता को दिया जाए तो भी चलेगा। तो ईस्तरह के बाते लोगोके दिमाख मे भ्रम पैदा करनेवाली होती है। इसलिए इस तरह के वाक्य रचना और शब्दांकन से बचना चाहिए। 

 

वसीयतनामा कैसे बनाते है:-

वसीयत करने वाले व्यक्ति को वसीयतनामे में यह कहने का पूरा अधिकार होता है कि वह अपने स्व-अर्जित संपत्ति जिसपर उसका पुरा अधिकार है उसका और उसके पैतृक संपत्ति का निपटान कैसे करें ईस बारेमे कहनेका उसका पुरा अधिकार है। वास्तव में, इसके लिए वसीयतनामा बनाने की आवश्यकता होती है। इन सभी संपत्तियों का पिछला विवरण वसीयत में होना चाहिए या वसीयत में परिशिष्ट जोड़कर, इसमें संपत्ति का विस्तृत विवरण होना चाहिए यह कोई फर्क नहीं पड़ता। उक्त संपत्ति का लाभ किसे और कैसे प्राप्त होना चाहीए उसका उल्लेख वसियतनामा मे किया जाना चाहिए कि है। जिन्हें हम लाभार्थी कहते हैं, अर्थात जो व्यक्ती वसीयत के माध्यम से लाभ प्राप्त करना चाहता हैं, उन्हें किस तरह लाभ प्राप्त करना है और उनकी पहली प्राथमिकता, दूसरी प्राथमिकता इस तरह से होनी चाहिए कि उनका पूरा नाम, पता और वसियत कर्तासे उनका संबंध स्पष्ट होना चाहीए। इसका मतलब यह है कि बाद में वसीयतनामा को लागू करने में कोई समस्या नहीं होगी।


वसीयतनामा करने वाले व्यक्ति को वसियतनामा करनेसे पहले डॉक्टर से मेडिकल सर्टिफिकेट लेना चाहिए कि वह व्यक्ती वसीयतनामा करते समय मानसिक रूप से पुरा सक्षम और विचारशील था। इसके लिए, उसपर डॉक्टरकी मुहर, पंजीकरण नंबर, दिनांक और हस्ताक्षर आवश्यक हैं। इन सबूतों के आधारसे, सामान्य रूप से वसीयत करने वाला व्यक्ति के खिलाफ वह मानसिक रूप से बीमार था, इस तरह के आरोप बाद में लगाए जाते हैं वे सभी आरोप निश्चित रूप से, व्यर्थ हो जाते है। वसीयतनामा करने वाले व्यक्ति को वसीयतनामा के तहत हस्ताक्षर करना चाहिए। इसमें दो गवाहों के हस्ताक्षर भी होने चाहिए। गवाह लाभार्थी नहीं हो सकते हैं और ना होने चाहिए। और गवाहो के पूर्ण नाम और पतो का उल्लेख वसियतनामा मे किया जाना चाहिए। 


यदि वसीयतनामा करने वाले व्यक्ति अशिक्षित है, तो उसके अंगूठे पर मुहर लगाई जानी चाहिए। यदि वसीयतनामा करने वाला पुरूष व्यक्ति अशिक्षित व्यक्ति है, तो उसे वसीयतनामा में अपने बाएं हाथ के अंगूठे को उठाना चाहिए। यदि वसीयतनामा करने वाली व्यक्ति अशिक्षित महिला है, तो उसे वसीयतनामा में अपने दाहिने हाथ के अंगूठे को उठाना चाहिए। हालाँकि, वसियतनामा करनेवाले व्यक्तीको वसियतनामा पडकर सूनाकर उस व्यक्ति को समझाई गई होगी।


यहा पर एक खास बात पर ध्यान देने लायक बत यह है के, वसीयतनामा को कभी भी बदला जा सकता है। और पुराने को निरस्त किया जा सकता है। या फिर वसीयतनामा में एक पूरक जोड़ा जा सकता है। वसीयतनामा रजिस्टर्ड कीया जा सकती है। हालांकि, ऐसा रजिस्टर्ड करना जरूरी नहीं है। वसीयतनामा उस व्यक्ति की मृत्यु के बाद सभी को पता चल जाएगी। इसलिए, उस व्यक्ति की इच्छाएं गुप्त रह सकती हैं। वसीयतनामा में दो व्यवस्थापको को नियुक्त करना बेहतर है। व्यस्थापक को वसीयतनामा करने वाले व्यक्ति के उमरसे छोटा होना चाहिए। दो व्यवस्थापक नियूक्त करने की वजाह यह है के, ताकि, यदि एक व्यवस्थापक दुर्भाग्यपूर्ण मृत हो जाए, तो दूसरा बना रहे। इसलिए कोई समस्या नहीं हैं। कोई भी पुरुष या महिला व्यवस्थापक के रूप में काम कर सकते हैं।


वसीयतनामा करनेसे किसी के स्वयं के अधिकारों में हस्तक्षेप नहीं होता है। वसीयतनामा में अपने परिवार का संक्षिप्त इतिहास लिखना चाहिए। एसे संपत्ति का हस्तांतरित किया जा सकता है। और इस तरह के हस्तांतरण के लिए कोई कर याने टॅक्स नहीं देना पड़ता है। वसीयतनामा बनाने का यह बहुत अच्छा लाभ है। यहा एक आशा होती है के व्यक्तीके मृत्यू के बाद उसके संपत्ती का विवरण उसके मर्जी के हिसाब से होता है। और संभावित पारिवारिक संघर्ष को रोका जा सकता हैं। निजी ट्रस्टों का गठन भी वसीयतनामा के माध्यम से किया जा सकता है। ईस्तरह, हम अपनी मेहनत की कमाई को आसानीसे विभाजन कर सकते हैं। ऐसी वसीयतें सील करके किसी भरोसेमंद व्यक्ति को सौंप दी जाती हैं। वसीयतनामा करने से टैक्स प्लानिंग भी आसान हो जाती है।


हालांकि, उस व्यक्ति को यह ध्यान रखना चाहिए कि जो वसीयतनामा बनाने जा रहा है वह प्रचलित कानून के खिलाफ नहीं होना चाहिए और साथ ही यह अनिश्चितताओं पर निर्भर नहीं होना चाहिए। अनिश्चित परिसंपत्तियों पर, उदाहरण के लिए, बैंक बैलेंस, आदि जानकारी पर एक स्पष्ट पैराग्राफ होना चाहिए और मृत्यु के समय राशि को ध्यान में रखा जाना चाहिए। एसा वसियतनामा मे स्पस्ट होना चाहिए।


वसीयतनामा का भारतीय विरासत अधिकार अधिनियम और आयकर अधिनियम जैसे कानूनों से ईनका संबंध होता है। आइए उस संबंध में, कुछ महत्वपूर्ण प्रावधानों पर विचार करें। वह वसीयतकर्ता की मृत्यु के समय मौजूद नहीं है, उसके लिए किया गया दान स्वतः निरस्त हो जाता है।

  1. भारतीय विरासत अधिकार अधिनियम की धारा ११२ के तहत, जिस व्यक्ति को विरासत के अधिकार दिए गए हैं, वह वसीयतकर्ता की मृत्यु के समय मौजूद नहीं है, उसके लिए किया गया दान स्वतः निरस्त हो जाता है।
  2. किसी व्यक्ति को उसके जन्म से पहले वसीयतनामा द्वारा कोई संपत्ती दी जाती है। लेकिन ऐसा करने के लिए, किसी अन्य जीवित व्यक्ति के संपुर्ण जिवनकाल मे उपयोग करनेके लिए उपलब्ध होना चाहिए। आइए अब इन प्रावधानों को एक उदाहरण के साथ समझनेकी कोशीश करते है। मान लीजिए कि अजय को जीवन भर आनंद लेने केलिये कुछ मालमत्ता वसीयत द्वारा प्राप्त हूई। अजय की मृत्यु के बाद, उसकी संपत्ति उसके सबसे बड़े बेटे को दी जाए और उस बड़े बेटे की मृत्यु के बाद। उसके बड़े बेटे को दी जाए। वसीयत निर्माता ने अपनी वसीयत में ऐसा प्रावधान किया है। लेकिन जब तक वसीयतकर्ता की मृत्यु हो जाती, तब तक अजय को एक बेटा नहीं हुआ। इसका मतलब है कि जिस व्यक्ति को इस स्थान पर संपत्ति दी जानी थी, वह मौजूद नहीं था।अर्थात् यह एक गैर-मौजूद व्यक्ति को संपत्ति देने जैसा था। सरल रूप से देखा जाए तो, यह प्रावधान वंशानुक्रम अधिनियम की धारा 112 के तहत शून्य हो जाता है।

आइए हम इसका एक और उदाहरण देखते है। एक वसियत निर्माता ने अपनी बेटियों के कल्याण के लिए एक ट्रस्ट बनाया। उन्होंने ट्रस्ट को कुछ पैसे दिए और सुझाव दिया कि अगर अठारह वर्ष की आयु तक पहुंचने से पहले उनकी किसी भी एक बेटी की शादी कर ली, तो उनके हिस्से की जो संपत्ती अथवा राशि है वह उस लडकी के मृत्यू के बाद उस लड़के अथवा लड़की को जाएगी जिसकी आयू 18 वर्ष की हो गई हो। इस जगह पर बच्चे मौजूद हैं। केवल इतना ही नहीं, बल्कि ये सभी प्रावधान कानून के अनुसार मान्य हैं क्योंकि उनकी मृत्यु के बाद अठारह साल के भीतर इन्हें लागू किया जाएगा। 


कानूनी तौर पर वसीयत में आने पर कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए। वे इस प्रकार हैं-

  1. यदि कोई व्यक्ति वसीयतनामा करने के बाद विवाह करता है, तो उसका बनाया हुवा वसीयतनामा स्वत: निरस्त नहीं होती है।
  2. वसीयतनामा के नुसार मिली हूवी संपत्ती पर होने वाले उत्पंन और प्राप्त संपत्तीपर कर लगाया जाता है। इसके अलावा, ईसके अलावा जिस संपत्ती का बटवारा नही हूवा उसपर कोई कर नहीं लगाया जाता है।
  3. इस प्रकार के माध्यमसे आयकर कानून के संदर्भ में एक नया करदाता तैयार हो जाता है। इस तरह से के कितने वर्षों तक रहता है, इसके बारे में कोई नियम नहीं हैं। लेकिन ऐसी स्थिति को लंबे समय तक नहीं रखा जाना चाहिए। इसलिए, बेवजह आयकर खाता को शंका हो सकती है।
  4. संक्षेप में, वसीयतनामा करने से कर के बोझ को कम करने में मदद मिलती है।
  5. यदि वसीयतनामा में कोई प्रावधान रद्द हो जाता है, तो भी पुरा वसियतनामा रद्द नहीं हाता हैं।
  6. वसीयतनामा को कभी भी बदला जा सकता है।
  7. यदि वसियतनामा मे जो प्रावधान है वे कानूनी हैं तो उन प्रावधानों को चुनौती नहीं दी जा सकती। कहने का तात्पर्य यह है कि एक बेटे को ही उसकी संपत्ति का अधिक हिस्सा क्यों दिया जाना चाहिए, इस तरह की आपत्ति को वसीयतनामा के मामले में नहीं लिया जा सकता।
  8. वसीयतनामा में, प्रबंधकों को उनके सभी खर्चों को कवर करने का भी प्रावधान किया जा सकता है।
  9. वसीयतनामा द्वारा, हस्तांतरित की जा रही संपत्ति पर स्टैंप ड्यूटी लागू नहीं होती है।

                संक्षेप में, कानून के दृष्टिकोण से भी वसीयत बनाना बहुत फायदेमंद है। यदी, कानून के कुछ प्रावधान, वसीयतनामा के मामले में जटिल हैं, तो भी जीन-जीन की उम्र हो चुकी है, यह उन सभी के लिए बेहतर और फायदेमंद है के वे अपनी वसीयत बनवाकर रखे। इससे उस व्यक्ति के पश्चात उसके परिवार वालो के बीच कोई झगड़े नहीं होते हैं।



                प्रत्येक व्यक्ति वसीयतनामा में अपने दिल की इच्छा और पुर्वईतिहास की कहानी लिखकर कहता है। इसलिए, वसियतकर्ता को उसके लिए जो उपयुक्त भाषा है, उस भाषा में वसीयत करना ठीक रहेगा। इस तरह से लिखा गया, एक वसीयतनामा भी एक विशेषज्ञ द्वारा की गई वसीयतनामा की तरह ही कानूनी है और दोनों की वैधता समान है। तो ध्यान रखने वाली पहली बात यह है के, वसीयतनामा की भाषा के बारे में जो गलतफैमी लोगोके दिलोमे है, उससे कई जादा गलतफैमी वसीयतनामा किस चिज पर बनवाना चाहिए उसके के बारे में है। यहां तक कि एक उच्च-शिक्षित व्यक्ति का यह मानना है कि वसियतनामा स्टँम्पपर बनाया जाता है। लेकिन यह भी एक गलत धारणा है। हकिकत यह कै के यह वसियतनामा जो सादे कागज पर बनाये जाने पर भी काम करता है। इसे टाइप करने की भी आवश्यकता नहीं है। सादे कागजपर लिखा गया वसियतनामा, जो पढ़ा जाये इस तरह से बनाया गया हो तो वह वसीयत भी कानूनी है।

                इन सभी बातो पर कहा जाये तो वसियतनामा के पंजीकरण के बारे में गलत धारणा है। यह सच है कि एक बार वसीयत बन जाने के बाद उसे पंजीकृत किया जा सकता है। हालाँकि, पंजीकरण भी अच्छा है। लेकिन अगर कोई व्यक्ति वसीयत बनाता है, और उसे पंजीकरण करना भूल जाता है तो इसलिए वह वसियतनामा गलत नहीं होता है। क्योंकि कानून की दृष्टि से, पंजीकृत वसीयत और अपंजीकृत वसीयत की कीमत एक समान है। यदि कोई व्यक्ती अपना वसीयतनामा को पंजीकृत करता है, तो यह पंजीकृत किया हूवे वसीयतनामा की वैधता नहीं बढ़ाता है। पंजीकरण यह साबित करने में मदद करेगा कि किसी व्यक्तीने अपना बनवाया था। बस ईतनाही वसियतनामा को पंजीकृत करनेका फायदा है। हम इस बात को एक उदाहरण से स्पष्ट कर सकते हैं। मान लीजिए कि कोई व्यक्ति अपनी वसीयत पंजीकृत करता है, तो उस व्यक्ति के बाद उसके उत्तराधिकारी / लाभार्थियों के बीच विवाद होता है, भले ही वसीयत पंजीकृत हो गई हो, उस वसियतनामा का अदालत से एक्सिक्यूशन का आदेश प्राप्त करना ही होगा। इसे अंग्रेजी में प्रोबेट कहते हैं। यहां तक कि अगर उस व्यक्ति ने वसीयतनामा को पंजीकृत नहीं किया है, तो भी उसे प्रोबेट देना ही होगा। 

                एक पंजीकृत वसीयतनामा के वजाहसे, अगर इसे प्रचलित कानून के खिलाफ कुछ करने के लिए कहा जाता है, तो ऐसा वसीयतनामा अगर पंजीकृत किया गया भी हो, तो इसलिए इसे वैध नहीं माना जाता है। जो मौजूदा कानून के खिलाफ लिखा गया है, उस बात को छोड़कर। अंन्य बचा हुवा जो हिस्सा है,  अदालत उस हिस्सेवाले वसीयतनामा को एग्ज्यूक्यूशन करनेका आदेश देती है। इसका मतलब यह नहीं होता है कि, पंजीकृत वसीयतनामा यह किसी विशेष लाभ की है। मृतक व्यक्ती के वारिस किसी भी वसीयतनामा को अदालत में चुनौती दे सकते हैं, चाहे वसीयत पंजीकृत हो या न हो। इस सब बातो से, आपको यह महसूस होगा कि, पंजीकरण का मतलब वसीयतनामा की वैधता को सील लगाना नहीं है। इसके विपरीत, यदि कोई व्यक्ति 40 साल की उम्र के बाद, यानी कुछ साल बाद अपना वसीयत बनाता है, यदि वह कुछ साल बाद अपना विचार बदलता है, तो उसे अपनी वसीयत बदलनी होगी। ऐसे मामले में, यदि उसने पहली वसीयत पंजीकृत की है, तो उसे दूसरी वसीयत अथवा सप्लिमेंटरी वसियतनामा भी पंजीकृत करना होगा। और ये राय समय के साथ दो-तीन बार बदल सकती है। उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि अजय ने 45 वर्ष की आयु में वसीयत बनाई। उन्होंने अपने तीन बच्चों में से दूसरा पुत्र को संपत्ति दी। उस समय दूसरा पुत्र गुणवान था। उनका मत था कि वे अपने बुढ़ापे में उनका अच्छेसे ध्यान रखेगा। लेकिन जब उसकी शादी हुई, तो उसकी पत्नी की सलाह के कारण उसका व्यवहार बिगड़ गया। ऐसे में अगर तीसरा बेटा अपने पिता की ठीक से सेवा करना शुरू कर दे, तो अजय का मन अपने आप बदल जाएगा और तदनुसार उसे दूसरी वसीयतनामा बनानी होगी और उसे पंजीक्रूत कराना होगा। यानी, उसे दूसरी वसीयतनामा को भी पंजीकृत करना होगा, क्योंकि उसने पहली वसीयतनामा पंजीकृत की थी। बेशक, किसी की राय में कोई बदलाव नहीं है, उसका कोई करीबी रिश्तेदार नहीं है, ऐसे व्यक्ति के लिए अपनी वसीयत को पंजीकृत कराना वांछनीय है। हालांकि इससे एक बात स्पष्ट हो जाएगी कि पंजीकृत और अपंजीकृत दोनों की वैधता एक समान है। अब यह तय करना वांछनीय है कि वसीयतनामा को उसके आसपास की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए पंजीकृत करना है या नहीं।

                वसीयत के संबंध में ध्यान रखने योग्य सबसे महत्वपूर्ण बातें निम्नलिखित हैं: -

                1. यदि व्यक्ति वसीयत के पंजीकरण के लिए कार्यालय जाने में असमर्थ है, तो व्यक्ति घर पर रजिस्ट्रार को कॉल कर सकता है और उनके सामने हस्ताक्षर कर सकता है। इसके लिए, रजिस्ट्रार के आने जाने की व्यवस्था करके, अन्य मामलों को ध्यान रखा जाना चाहिए।
                2. वसीयत करने वाला व्यक्ति विचार करने के लायक है, पुरे होशो हवासमे है। इसके लिये एक डॉक्टर का प्रमाण पत्र प्राप्त करना सबसे अच्छा रहेगा। क्योकी, इसवजाहसे वसीयतकर्ताने पागलपन मे वसीयत बनाई है इस तरह के आपत्ति जनेक ईसल्जामोसे बचा जा सकता है।
                3. वसीयत में दो प्रबंधको को नियुक्त किए जाने चाहिए। और, प्रबंधको को वसीयत करने वाले व्यक्ति से उम्रमे छोटा होना चाहिए।
                4. छोटे वाक्यों में वसीयत लिखें। यदि संभव हो तो अस्पष्ट शब्दों से और दो अलग अलग मतलब निकलनेवाले शब्दरचना से बचा जाना चाहिए। क्योकी ईस्तरह के शब्दरचनासे लोग भ्रमीत हो जाते है।
                5. पूर्व-इतिहास को संक्षेप में दिया जाना चाहिए। स्थिर संपत्ति का विवरण और साथ ही अस्थिर वस्तु का अनुमानित वजन और संख्या लिखी जानी चाहिए।
                6. वसीयतनामा में अवैध चीजोंको शामिल नहीं करना चाहिए।
                7. यह ध्यानमे ‍रखना चाहिए की हालाँकि, जिसतरह एक व्यक्ती वसीयतनामा द्वारा स्व-अधिग्रहित संपत्ति का निपटा कर सकता है, उसीतरह एक महिला अपने पिता से अपनी संपत्ति के रूप में जो प्राप्त करती है, उसका निपटान वसीयत द्वारा कर सकती है।


                उपरोक्त जानकारी से आप समझ सकते हैं कि वसीयतनामा द्वारा स्व-अधिग्रहित संपत्ति का निपटान कैसे करते है। यह मानना सुरक्षित है कि भविष्य की वसीयत और उनके कामकाज के सवाल का जवाब आपको मिल गया है।

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