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सिविल मौत (Civil Death) क्या होती है? | Civil Death Kya Hoti Hai?

सिविल मौत (Civil Death) क्या होती है? | Civil Death Kya Hoti Hai?


परिचय

सिविल डेथ याने के कोई ऐसा व्यक्ति जिसका सात वर्षो से अधिक उसका कोई अता पता नही होता है तब उस व्यक्ति को कानूनी रूप से मृत घोषित करने के कानुनी प्रक्रिया को सिविल डेथ कहते है। जिसमे उस सात वर्ष से अधिक लापता हुवे व्यक्ति को कानूनी रूप से मृत घोषित किया जाता है और उस के समस्त अधिकार को समाप्त किया जाता है।


सिविल मौत (Civil Death) क्या होती है?

हरबार अखबार मे और न्यूज चेनलपर गुमशुदा हुवे लोगो के बारेमे विज्ञापन आए दिन हरबार देखनेको मिल जाते है। लेकिन दुर्भाग्यवंश कुछ ऐसे मामले भी होते है जिस में कोई व्यक्ति अगर गुमशुदा होता है तो वह वापीस कभी भी नही मिलता। इसतरह के मामलो में उस व्यक्ति के परिवार वालों के लिए बेहद कठिन परिस्थितियोसे गुजरना पडता है क्योंकि न जाने कितने ऐसे कानूनी काम होते है जो केवल एक व्यक्ति को मृत घोषित होने के बाद ही किए जा सकता है। जैसे कि उस व्यक्ति के संपत्ति में वारिसो का नाम लगवाना, उस व्यक्ति के सर्विस से जुडा पैसो को प्राप्त करना, लाइफ इंश्योरेंस का पैसा क्लेम करना आदि। आईये इस लेख के माध्यम से हम जानने कि कोशिश करेंगे की ऐसे मामलो मे कोर्ट से किसी गुमशुदा व्यक्ति की मृत्यु की घोषणा कैसे करवाई जाती है।



कितने वर्ष के बाद सिविल मौत कि घोषणा कि जाती है?

यदि कोई व्यक्ति को लापता होकर सात वर्ष से ज्यादा वक्त हो चुका होता है। तब उस व्यक्ति की सिविल डेथ की घोषणा करने के लिए न्यायालय मे आवेदन करना होता है। इस आवेदन को पेश करते समय उस व्यक्ति को गुमशुदा होकर सात वर्ष होने का प्रमाण दिखाने के लिए न्यायालय मे पुलिस कंप्लेंट और पेपर मे दिये गये जाहिरात की एक कॉपी पेश करनी होती है। जिस्से न्यायालय यह अनुमान लगा सकते है के व्यक्ति को गुमशुदा हुवे सात वर्ष से अधिक काल हो चुका है। जिसे न्यायालय उस व्यक्ति की गुमशुदा की घोषणा दे देते है।



कानूनी प्रावधान

मृत्यू की धारणा करवाने के लिए इंडियन एविडेंस एक्ट की धारा 107 और 108 मे समझाया गया है। यह प्रावधान एक ऐसी स्थिति को बताता है जब कोई व्यक्ति सात बर्ष से ज्यादा गायब हो जाता है याने गुमशुदा हो जाता है, तब एसी परिस्थितियों के बाद न्यायालय मे दावा करने के बाद न्यायालय आदेश दे कर उस व्यक्ति को मृत करार देता है, तब उस व्यक्ति को कानूनी रूप से मृत मान जाता है। इस अधिनियम की धारा 108 में बताया गया है की जिस व्यक्ति के बारे में 7 वर्षो से कुछ कही देखा और सुना नही गया है उसे मृत माना जा सकता है। इस प्रक्रिया को सिविल डेथ भी कहा जाता है। उस व्यक्ति को मृत घोषित करने के लिए उस व्यक्ति का समाज मे कोई अस्तित्व का प्रमाण नहीं होना चाहिए। यह साबित होना जरूरी है कि उस व्यक्ति के बारे में पिछले 7 वर्ष से किसीने कुछ नही सुना है और देखा नही है।



क्या मृत्यू के अनुमान का सीधा प्रयोग किया जा सकता है?

यहा पर अब सवाल यह उठता है कि 7 वर्ष के बाद क्या मृत्यू के इस अनुमान को सीधा प्रयोग करते हुए गुमशुदा व्यक्ति को रिकॉर्ड मे मृत घोषित किया जा सकता  है ताकि आगे के कानूनी काम किए जा सकें। इसका जबाब यह है की, ऐसा नहीं किया जा सकता। क्योकी, मृत्यू के अनुमान को तभी इस्तेमाल किया जा सकता है जब किसी कोर्ट में इस अनुमान के उठने पर यह साबित हो जाता है कि उस व्यक्ति  का पिछले 7 वर्ष से कोई अता पता नही है। सुप्रीम कोर्ट अपने कई फैसलों में यह साफ कर चुका है कि इस  प्रावधान के तहत मृत्यु के अनुमान को व्यक्ति के किसी भी प्रकार के मृत्यु रिकॉर्ड को उत्पन्न करने के लिए उपयोग नहीं किया जा सकता।



मृत्यु की घोषणा कैसे करवाएं?

ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न हो जाने पर उचित कानूनी परामर्श लेते हुए सिविल कोर्ट में मृत्यु की घोषणा के लिए डिक्लेरेशन सूट दायर करे। अगर, इस प्रावधान के तहत कुछ जरूरी बातों को साबित करने में सफल हो जाते हैं तो सिविल कोर्ट द्वारा गुमशुदा व्यक्ति के बारेमे सिविल डेथ की घोषित कर दी जाती हैं। कोर्ट के इस आदेश को लेकर किसी भी संबंधित विभाग में व्यक्ति के रिकॉर्ड को अपडेट कराया जा सकता हैँ और उस व्यक्ति के मृत्यु से जुडे अन्य कानूनी काम पूरे किए जा सकते हैं।



पाठको के लिए सुझाव

हमारे देश मे किसी भी व्यक्ति के दो या दो से जादा नाम होना आम बात हैं। अक्सर देखा जाता है के, किसी व्यक्ति को घर का नाम एक होता है जो उसे उस नाम से बुलाया जाता है और बाहर के लोगो को बताने के लिए दूसरा नामा होता है जो के उस व्यक्ति का पक्का नाम होता है। इस वजह से यह भी कई बार देखने को मिला है कि एक व्यक्ति के कुछ डॉक्यूमेंट घर के नाम से बनाए जाते है और कुछ डॉक्यूमेंट बाहर के पक्के नाम से बनाए जाते है। ऐसी परिस्थिति होने पर खासकर क्लेम के मामलों मे बहुत समस्या आती है। क्योंकि, डॉक्यूमेंट्स मे अलग-अलग नाम होने की वजह से क्लेम रोक दिया जाता है। ध्यान दें कि ऐसे मामलों मे भी आप सिविल कोर्ट मे डिक्लेरेशन सूट दायर कर सकते हैं और कोर्ट से यह घोषणा करवा सकते हैं कि दोनो नाम के व्यक्ति यह अलग अलग ना होकर एक ही व्यक्ति के नाम हैं।



इस लेखसे आप को यह अंदाजा आया होगा के एक व्यक्ति के गुमशुदा होने के बाद कुतने वर्ष के बाद उसका सिविल डेथ डिक्लेर किया जाता है। आशा है आपको यह लेख पसंद आया होगा।



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