बक्षीसपत्र क्या है | Gift deed in Hindi
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बक्षिस याने इनाम, इसका मतलब यह है के, एक व्यक्ती द्वारा दुसरे व्यक्ती को किसी भी "मुआवजा" याने compensation की उम्मीद किए बिना दी गई कोईभी चीज़ अथवा वस्तू "इनाम" याने बक्षिस कहते है। कोई भी वस्तू इनाममे दिया हो तो उसे वापीस नही किया जा सकता है। जैसे यह नियम वस्तू पर लागू है वैसे यह नियम संपत्ती पर भी लागू है।
संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम में बक्षिस की परिभाषा संक्षेप में दी गई है। वह इस्तराह है के, "बक्षिस याने किसी भी प्रकारका मुआवजे के बिना स्वेच्छा से दिए गए अचल या चल संपत्ति को बक्षिस कहते है।" इसके अलावा, जैसा के मुआवजे का लेना यह सिर्फ संपत्ति के खरीदने या बेचने अथवा गिरवी रखने जैसे कार्य में महत्वपूर्ण होता है। वैसा इनामपत्र याने बक्षीसपत्र में नहीं होता है।
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इसके अलावा, अगर कुछ समय के लिए मुआवजे का सवाल आता है , जैसे उदाहरण के लिए, मे आपकी संस्था में रुपये 1 लाख राशी जमा करता हू, जिस पर संस्था द्वारा छह प्रतिशत ब्याज का भुगतान मै जीवित हू तबतक मुझे किया जाना चाहिए, और मेरे मृत्यू के बाद सभी राशि का उपयोग संस्था द्वारा छात्रवृत्ति याने स्कॉलरशिप के वितरण के लिए किया जाना चाहिए। इस तरह की शर्त कभी-कबार इनाम याने बक्षीसपत्र बनाते समय भी किए जा सकती है।
किसी भी संपत्ति को, चाहे वह संपत्ति अचल हो अथवा चल हो उसे बक्षिसपत्र करते समय थोडी सावधानिया बरतनी चाहिए। वे निम्नलिखीत है।
जिन दस्तावेज के जरिये संपत्ती को गिफ्ट दिया जाता है, उन दस्तावेजो को पंजीकरण करने की आवश्यकता होती है, जो अचल संपत्ति बक्षिस के रुपमे दि जा रही है उस संपत्ती के बाजार मूल्य पर जो किमत निकाली जाती है। उस मूल्य के अनुसार, परिशिष्ट याने स्टाम्प अधिनियम में दर्शाई गई दरों के अनुसार, जिस क्षेत्र में संपत्ति स्थित है, उस क्षेत्र में पंजीयक के कार्यालय में जाकर स्टाम्प ड्यूटी का भुगतान करना चाहिए। और गिफ्ट डिड को पंजीकृत करना चाहिए।
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संपत्ति हस्तांतरण कानून की धारा 122 के अनुसार, जब संपत्ति का मालिक, चाहे वह संपत्ति चल हो अथवा अचल हो, लेकिन वह वस्तू उस मालिक की है और अस्तित्व मे है। उस संपत्ती को स्वेच्छा से और बिना किसी मुआवजे के देता है। और दूसरा व्यक्ती उसे संपत्ती को स्वीकार करता है, तो उस लेनदेन के व्यावहार को बक्षिस याने इनाम कहा जाता है। वास्तविक में, प्रत्येक लेनदेन व्यावहार मे मुआवजा होना चाहिए, अन्यथा वह लेनदेन व्यावहार अवैध माना जाता है। लेकिन गिफ्ट /बक्षिस/ इनाम इन व्यावहारो मे यह नियम के लिए एक अपवाद(Exception) है। आमतौरपर, दोनो पार्टीमे एक दुसरे के साथ का स्नेह ही एक मुवावजा होता है। इसके अलावा इनाम देना यह दान अथवा मदद करने के लिए किया गया है यह उद्रेश हो सकता है। तो इसे पुरस्कृत कहा जा सकता है, लेकिन यहा पर आर्थिक सौदा नहीं होना चाहिए।
जो व्यक्ती इनाम दे रहा है उस व्यक्ती की सहमति लिखित रूप में भी हो सकती है। या वह मौखिक हो सकता है। अथवा वह कार्रवाई में देखा जा सकता है। लेकिन उस मान्यता को सिद्ध किया जाना चाहिए। Gift Deed / बक्षीसपत्र के अनुसार, यदि इनाम संपत्ती पर कोई अन्य ऋण है अथवा कही गिरवी रखिगई है, तो संपत्ती प्राप्त करने वाला व्यक्ति उस संपत्ती के मुल्य उतनी राशि के लिए जिम्मेदार होगा। उदाहरण के लिये मान लीजिए कि राजेश ने कमलेश को 50,000 / - का इनाम दिया। श्री राजेश के आय पर 1,00,000 / - का कर्ज था। श्री कमलेश को दी गई आय में से केवल उस आय का मूल्य ही वसूला जा सकता है और अधिक राशि नहीं वसूली जा सकती है।
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एकत्र हिंदू परिवार की किसी भी संपत्ती को इनाम या गिफ्ट के रूप में स्विकार करना एक जोखिम भरा काम है। क्योंकि यह किसी ना किसी को तो विरासती अधिकार हो सकता है। कोई भी व्यक्ती अपनी स्व-अर्जित आय को पुरस्कृत / गिफ्ट कर सकता है और किसी के लिए भी ऐसा करना मुश्किल नहीं है। लेकिन, वह परिवार में अपने आश्रितों, उचित भोजन या प्रति माह एक निश्चित मात्रा में गुजारा भत्ता देने कोई उपाय किया होना चाहिए। उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति अपनी पत्नी और बच्चों के पढाई के खर्चोपर कोई विचार किए बिना और अपने खर्चों के लिए धन की व्यवस्था किए बिना, अपने प्रेमीका को इनाम देता है, तो विवाद का विषय उत्पन्न हो सकता है।
एक फायदेमे चल रही कंपनी और एक घाटे में चल रही कंपनी के शेयर, यदि ऐसी दो कंपनियों के शेयर्स पेशकश किये गए, तो केवल फायदेमे चल रही कंपनी के शेयर लेने की इच्छा, और घाटे में चल रही कंपनी के शेअर्स को इनकार हो, तो एक कंपनी नुकसान मे चल रही है उसे इनकार करके सिर्फ केवल फायदे मे चल रही कंपनी के ही शेयरों को गिफ्ट नहीं लिया जा सकता है।
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सिर्फ एक मामूली कीमत पर किए गए हस्तांतरण को भी बक्षिस माना जाता है। बक्षिस का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा यह है कि यह स्वेक्षा पूर्वक होना चाहिए। देने वाले पर कोई दबाव नहीं होना चाहिए। यदि स्थितियां / शर्त हैं, तो उन्हें सीमित होना चाहिए। उदाहरण के लिए, एक विद्यालय / स्कूल के निर्माण के लिए भूमि पुरस्कार के रूप में दी जाती है। उस पर विद्यालय / स्कूल का निर्माण होना चाहिए, यह एक उचित शर्त है। अन्यथा, जिस संस्था याने संगठन को जमीन दि जाती है, वह संगठन जमीन को बेच देगा।
यदि जिस कारण के लिए भूमि बक्षिस दि गई थी, उस कारण के लिये भूमि का उपयोग नहीं किया जाता है, तो देनेवाला बक्षिस रद्द करके भूमि को वापस ले सकता है। इसके अलावा, यदी बक्षिस देनेवालेने, बक्षिस लेने वाले को उसके जीवनकाल के लिए सिर्फ ईस्तेमाल करनेके लिए बक्षिस दिया है। यदि यह कहा जाता है कि संपत्ती पर बक्षिस लेनेवाले के बच्चों से कोई लेना-देना नहीं है, तो जिसको इनाम दिया गया है वह मरने के बाद वह संपत्ती देने वाले को वापस मिल जाएगी। महिलाओं को दिए जाने वाले पुरस्कारों को बहुत सावधानी से और दूरदर्शिता के साथ किया जाना चाहिए।
इनाम दिए जाने के बाद और प्राप्तकर्ता इनामको स्वीकार कर लेनेके बाद, इनाम की कार्रवाई पूरी हो जाती है। तब इनाम देने वाला इसे वापस नहीं ले सकता। हालांकि, अगर इनाम से जुड़ी हुई कुछ शर्तें हो, और यदि उन शर्तोका उल्लंघन किया गया हो, तो इनाम देनेवाले को उसकी संपत्ती वापस लेने का अधिकार भी होता है।
यदि संपत्ति पर कोई ऋण याने कर्जा है अथवा इनाम दाता पर कोई ऋण है, तो उसके द्वारा किया गया इनाम पत्र संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम की धारा 53 के तहत एक धोखाधड़ी हस्तांतरण हो जाता है।
इनाम देते समय इनामीसंपत्ती अस्तित्व मे होनी चाहिए। भविष्य मे आनेवाले संपत्ती का इनाम नहीं किया जा सकता। साथ ही, जिस व्यक्ति को इनाम मिलनेवाला हो, उस व्यक्ति द्वारा इसे स्वीकार किया जाना चाहिए। क्योकी, एक तरफा इनाम नहीं दिया जा सकता है। लेकिन इनाम सशर्त हो सकता है, जिसका अर्थ यह है कि, अगर किसी एक शर्तों की पूर्ति पर निर्भर करता है तो इनाम वैध होगा।
इसके अलावा, भले ही कोई व्यक्ति संपत्ती परसे अपना अधिकार छोड़ देंता है। तो भी यह एक इनाम हो सकता है। क्योंकि अधिकार छोड़ना भी यह एक हस्तांतरण का हिस्सा है।
जब इनाम कोई शर्त पर, चाहे वह कितना भी मुश्किल क्यों न हो, दिया जा रहा है। और जिसे इनाम दिया जा रहा है उसने उस शर्त को स्वीकार कर लिया, जो उस पर बाध्यकारी थी। उदाहरण के लिए - यदि कोई व्यक्ति अपनी पत्नी और भतीजे को एक संयुक्त इनाम के रूप में अपनी संपत्ति देता है, और यह शर्त रखता है कि, यदि उसकी पत्नी नि: संतान मर जाती है, तो उसकी संपत्ति अकेले भतीजे के पास चली जानी चाहिए। यह शर्त कानुनी सही है। इसके अलावा, भले ही इनामी संपत्ति पर कर्ज का बोझ है और इनाम स्वीकार किया जाता है, तो वह बोझ भी प्राप्तकर्ता पर बाध्यकारी होता है।
पुरस्कार अधिनियम- 1958 के अनुसार, जिसको संपत्ती इनाम मे दी जाती है। उन्होंने इसे स्वीकार किया अथवा नहीं, वह इनाम टॅक्स के लिए हकदार थे। इसके अलावा, इनाम पत्र पर किए गए हस्ताक्षर को प्रमाण की आवश्यकता है ऐसे नहीं है। लेकिन यह कानून उस अधिनियम के कार्यान्वयन तक सीमित है।
अचल संपत्ति का विलेख लिखित रूप में होना चाहिए, भले ही संपत्ति का मूल्य कम हो, और इनाम कर्ता के हस्ताक्षर पर कम से कम दो गवाहों द्वारा हस्ताक्षर किए जाने चाहिए। अब वर्ष 1998-99 से पुरस्कार का टॅक्स समाप्त कर दिया गया है। केवल मुस्लिम कानून के अनुसार इनाम मौखिक हो सकता है।
आम तौर पर इनाम लेनदेन में, इनाम देने वाले व्यक्ती की संपत्ति के मालिकाना के बारेमे पूछताछ नहीं की जाती है। खासकर जब इस तरह का इनाम एक सार्वजनिक ट्रस्ट को दिया जाता है, तो पूछताछ करना वांछनीय है। ऐसा इसलिए है क्योंकि यदि पुरस्कार का मालिक दोषपूर्ण है, तो संभावना है कि पुरस्कार नुकसान देनेवाली हो जाएगा।
अचल संपत्ती का बक्षीसपत्र करते समय उन दस्तावेजोको स्टांप शुल्क का भुगतान उसके बाजार मूल्य पर किया जाता है। जब इनाममे एक निश्चित राशि दी जाती है, तो इनाम कर देना योग्य होता है। साथही किसी संगठन को भी दान दिया जा सकता है।
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