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Lease Agreement || लीज़ अग्रीमेंट || अचल संपत्ति किराएपर देना

Lease Agreement || लीज़ अग्रीमेंट || अचल संपत्ति किराएपर देना

Photo by Karolina Grabowska from Pexels


परिचय

लीज(पट्टा) का मतलब है, अपनी अचल संपत्ती किसी दूसरे को किरायेपर देना होता है। यह किराये के संबंधीत जो लेन-देन है, वह अचल संपत्ति से संबंधित हैं। यदि कोई चल वस्तु किराए पर दी जाती है, तो उसे अंग्रेजी में "हायर-पर्चेस" कहा जाता है। अचल संपत्ती का मालीकाना अधीकार, कुछ सीमित समयके लिए किसी अन्य किसी अन्य व्यक्ति को अथवा लोगों के समूह को उपभोग के लिए दिजा जाना, उसका कब्जा देना, उसको ईस्तेमाल केने की अनुमती देना। साथ ही इसे इस तरह के सीमित समय के लिए  उपयोग करने की अनुमति देने, उस समय की अवधी को लीजपर या किरायेपर जिसे भाडे पट्टे पर देना कहा जाता है।

ॲग्रिमेंट टू सेल, सेल डीड  जैसे अन्य दस्तावेज के लिये जो सिद्धांत है, वही सिध्दांत लिज अग्रीमंट पर भी लागू होती है। समझौता जब किया गया था, उस दिन की तारीख, समझौते के पार्टी, संपत्ति का पूरा विवरण जिसके तहत समझौता किया गया था, समझोते की शर्तें,  तत्पश्चात, यह करार जिस से संबंधित है। इस तरह की जानकारी को सामान्य रूप से दिए जाने की आवश्यकता है।



अचल संपत्ति के संबंध में, जैसे जमीन, मकान, मकान का हिस्सा ईन किराये के दो प्रकार हैं।

  1. पहला प्रकार एक वर्ष से कम के लिए जो अल्पावधि का है और
  2. दूसरा प्रकार दीर्घकालिक याने लंबी अवधिका होता है। 


पहले प्रकार के करार अल्पावधि का होता हैं, जिनमें आमतौर पर 11 महीने या उससे कम समय के लिये संपत्ती को किराए पर दिया जाता हैं। इस करारनामा को पंजीकरण अधिकारी के समक्ष पंजीकृत करने की आवश्यकता नहीं है। वर्तमान में -------- / - रुपये के स्टांप पर अथवा सरकार द्वारा समय-समय पर तय किेय गये स्टैम्प पेपर पर किरायेदार और मकान मालिक के बीच आपसी मे किया गया करारनामा, जिसे दो गवाहों के समक्ष हस्ताक्षरित किया जाना इतना काफी है।


लंबी अवधि के लिज/पट्टे को पंजीकृत होना आवश्यक है। और ऐसे लीज/पट्टे को कितना पंजीकरण शुल्क देना होगा। यह स्टांप, पंजीकरण शुल्क के परिशिष्ट में दिया गया है। लीज/पट्टा यह संपत्ति के हस्तांतरण का एक रूप है। जिसतराह संपत्ती को बेची जा सकती है, गिरवी रखी जा सकती है, उसीतराह संपत्ती को किराए पर भी दी जा सकती है। संपत्ती हस्तांतरण अधिनियम 1882 की धारा 105 में, लीज/पट्टे को परिभषित किया गया है। यह इस प्रकार है। जब संपत्ती का मालिक कुछ सीमित या अनिश्चित या निरंतर अवधि के लिए अपनी संपत्ती दूसरे को देता है, चाहे वह किराए के पैसे के रूप में हो, या फसल के हिस्से के रूप में, या सेवा के रूप में, एक रक्कम मे हो अथवा किश्तों-किश्तो मे, उसे लीज/पट्टा कहा जाता है।


लिज का मुख्य उद्देश्य यह सिर्फ उस संपत्ती का उपभोग लेना इतना ही है। इसके अलावा और दूसरा कोई अधिकार नहीं हैं। अर्थात्, किरायेदार के पास संपत्ति बेचने, उसे गिरवी रखने, संपत्ति के रूप को बदलने, कोई इमारत आदि होने पर उसे ध्वस्त करने का अधिकार नहीं है। केवल, वह किरायेदार के रूप में उसके पास मौजूद अधिकार से संपत्ति का सिर्फ ईस्तेमाल कर सकता है। और वह उस संपत्ति पर जो कुछ भी करता है, वह लीज की अवधि जबतक है तबतक कर सकता है।



लीज की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं।

किराये मे या लीज मे दी गई संपत्ती को केवल उसके उपभोग के लिए ही दिया जाता है। पूर्ण स्वामित्व से नहीं। साथ ही संपत्ती को केवल कुछ समय के लिए दीया जाता है। लेकिन यह समय कुछ सीमित, अनिश्चित या निरंतर होगा। इसके अलावा, किराए का भुगतान तीन तरह से किया जा सकता है, धन के रूप में, चाहे वह एकमुश्त या किस्तों में हो, या यदि किराएसे प्राप्त होने वाली संपत्ति कृषि भूमि है, तो उस भूमि से निकला हुवा फसल का कुछ हिस्सा किराए के तौरपर लिया जा सकता है। या यहां तक कि एक सेवा किराए का रूप ले सकती है। एकमुश्त किराए को प्रीमियम / अतिरिक्त राशि / प्रीमियम पगड़ी कहा जाता है। लेकिन महाराष्ट्र में, मुंबई किराया नियंत्रण अधिनियम, 1947 की धारा 18-19 के तहत इस तरह के व्यावहार को गैरकानूनी ठहराया गया था। इसलिए, अतिरिक्त राशि के किराए पर लेना गैरकानूनी था। हालांकि, 31 मार्च, 2000 से, 1947 अधिनियम को निरस्त कर दिया गया और इसकी जगह महाराष्ट्र किराया नियंत्रण अधिनियम, 1999 लाया गया। इस अधिनियम के अनुसार, पगड़ी को प्रीमियम / अधिशेष राशि कोर सरकार द्वारा अनुमोदित किया गया है और इस्तरह के किराए से संबंधित भुगतान को अवैध नहीं माना जाएगा। इसलिए किराये पर देना या छोड़ना या किरायेसे हस्तांतरित करना, रक्कम का भुगतान करना संभव हो गया है। किराये की किस्त, मासिक, द्वि-मासिक, छह-मासिक, नौ-मासिक अथवा वार्षिक हो सकती है।


लीज/ पट्टे मे किरायेदार को संपत्ति का कब्जा देना होगा और यह लीज की एक विशेषता मे भी है। कब्जे के बिना लीज पूरा नहीं किया जा सकता है। क्योंकि कब्जे के बिना, संपत्ति का उपभोग नहीं किया जा सकता है। बेशक, इसे पुरितरह कब्जे होने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन किरायेदार को निश्चित संपत्ति का आनंद लेने में सक्षम होना चाहिए। बिना कब्जे के भी बिक्री पूरी की जा सकती है। बंधक का कब्जा देना आवश्यक नहीं है, लेकिन लीज/पट्टा मे कब्जा देना आवश्यक है।



लीज/पट्टे की अवधि क्या है?

एक महीना, तीन महीने, छह महीने, एक साल या अनेक/बहु वर्ष, यह अनिश्चित, या निरंतर हो सकता है। उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति अपने जीवन के शेष समय के लिए एक संपत्ति किराए पर ले सकता है और किसी भी व्यक्ती का अस्तित्व अनिश्चित है।
इसके अलावा, लीज/पट्टे पर एक निश्चित अवधि होनी चाहिए। यदि लीज में कोई शब्द नहीं है, तो वह लीज अमान्य होगा।

जिस संपत्ति में किरायेदार को हक्क प्राप्त होता है, उसे अचल संपत्ति के रूप में माना जाता है। इसलिए, एक किरायेदार के अधिकार का लेन-देन एक अचल संपत्ती के लेनदेन के बराबर माना जाता है। और इस तरह के लेनदेन पर जो कानून लागू होता है, वही कानून किरायेदार के अधिकार पर भी लागू होगा। लेकिन, इस मे कानून थोड़ा बदलाव किया गया है। वह यह है के, प्रत्येक अचल संपत्ति लेनदेन को लिखित रूप में होना चाहिए और वह लेख याने दस्तावेज है।
 इसके अलावा, जिस लीज के मामले में, यदि वर्ष की अवधि के भीतर है, तो  उस लीज को पंजीकृत करनेकी आवश्यक्ता नहीं है। वह लीज मौखिक हो सकता है। यदि मकान मालिक किरायेदार को किराए की रसीद देता है, तो लीज सिद्ध होता जाता है। हालांकि, ऐसी स्थिति में लीज पर एक महीने की अवधि के लिए विचार किया जाएगा। इसलिए, मौखिक रूप से एक महीने से अधिक का लीज प्राप्त करना लगभग असंभव है। और अगर यह एक वर्ष के लिए या एक वर्ष से अधिक के लिए है, तो यह निश्चित रूप से मौखिक करना संभव नहीं है। क्योंकि यह पंजीकरण कानूनों के अनुसार पंजीकृत होना चाहिए और इसके लिए एक दस्तावेज बनवानेकी की आवश्यकता होती है।

पाँच प्रकार के लीज हैं जिन्हें लिखना और पंजीकृत करना आवश्यक है। वे निम्नलिखीत है-

  1. जिनका कार्यकाल एक वर्ष है और
  2. जिनका किराया वार्षिक आधार पर है। 
  3. जिसका कार्यकाल एक वर्ष से अधिक हो।
  4. जिनका कार्यकाल निरंतर है, साथ ही
  5. जिनका कार्यकाल अनिश्चित है।

    संपत्ती हस्तांतरण अधिनियम, 1882 मे लीज के विषय में जो प्रावधान बताया गया है, वह कृषि भूमि के अथवा खेती के लीज के संधर्भमे नहीं हैं। राज्य सरकार के पास कृषि भूमि पर कानून बनाने का पुरा अधिकार है। यह अधिकार केंद्र सरकार को नहीं। इसलिए, कृषि भूमि के अधिनियमों को राज्य सरकार द्वारा लागू किया गया है, और जिस लीज/पट्टे को यह कानून लागू होता है। इसके अलावा, यदि अन्य लेनदेन गैर-कृषि उपयोग के लिए लीज पर दिए जाने हैं, तो 1882 का अधिनियम लागू होगा।

    लीज/पट्टे की अवधि निरंतर हो सकती है। लेकिन इसका क्या मतलब है? ऐसा भ्रमीत होने की संभावना है। क्योंकि, लीज/पट्टा निरंतर हो सकता है। एक किराये में, संपत्तिको केवल किरायेदार के उपभोग के लिए दी जाती है। बिक्री की तरह पूर्ण स्वामित्व नहीं। इसलिए, संपत्ति का आनंद लेने के मूल मालिक के अधिकार को छोड़कर, अन्य सभी अधिकार उसके पास रहते हैं। इस मामले में, संपत्ती के दो मालिक हैं। एक मूल मालिक है और दूसरा किरायेदार है, और जब संपत्ति बेची जाती है, तो मूल मालिक के सभी अधिकार खो जाते हैं और उसे बिक्री को रद्द करने का कोई अधिकार नहीं है।

लेकिन, लीज/पट्टे के मामले में ऐसा नहीं है। क्योकी, लीज/पट्टे को कुछ शर्तों पर दिए गए हैं और उनमें से दो मुख्य हैं। यानी समय पर किराया देना और नियमित रूप से जगह का उपभोग लेना। इसके अलावा, अन्य शर्तें हैं। इसलिए, यदि किरायेदार किसी भी शर्तों का उल्लंघन करता है, तो मूल मालिक को लीज/पट्टे को रद्द करने का अधिकार है। चाहे तो लीज/पट्टे की अवधि जो भी हो। इसलिए, भले ही लीज/पट्टे की अवधि निरंतर हो, यह सर्वव्यापी नहीं है।


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