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सम्पत्ति का विभाजन विलेख | Partition deed in Hindi | बटवारा

सम्पत्ति का विभाजन विलेख | Partition deed in Hindi | बटवारा

Photo by Andrea Piacquadio from Pexels


परिचय

    कई बार, हर आम आदमी के जिवन मे उनके संपत्ती को विभाजन करने का समय आता है। कभी-कभी पैतृक भूमि संपत्ति होती है। इसके संबंध में भाईयोमे, लिगल हेअर्श याने कानूनी उत्तराधिकारियों के बीच ये विवाद उत्पन्न होते हैं। और फिर आगे वभाजन करने की आवश्यकता होती है। कभी-कभी यह व्यवसाय बंद होने के बादभी विभाजन यामे बटवारा करनेका वक्त आता है। 

कई बार जब कोई व्यक्ति हिंदू संयुक्त परिवार प्रणाली को छोड़ देता है और वह अपना हिस्सा मांगता है तब विभाजन करनाही उचीत होगा। हम वह भी करलेते हैं; लेकिन बहुत से लोगों को यह नहीं पता होता है कि जो विभाजन किया गया है, उस को वैध कैसे बनाया जाए अथवा कैसे किया जाए, और इसीलिए हम इसके बारे में इस लेख के जरिए जानकारी हासिल करने वाले हैं। 



विभाजन विलेख कब और कैसे किया जाता है? 

    विभाजन विलेख कब और कैसे किया जाता है?  यह समझने से पेहले कुछ महत्वपुर्ण बातो पर गौर करना जरूरी है। जबकि विभाजन विलेख के संबंध में जानकारी प्राप्त करते समय हमे हिस्सेदारी/शेयरधारक कैसे और कितने प्रकारके होते है उन्हें जानना जरूरी है।

हिस्सेदारी/शेयरधारक के दो प्रकार होते है।

(1) संयुक्त शेयरधारक

(2) सामांन्य शेयरधारक

    आइए हम इसके बारे में संक्षिप्त मे जानकारी हासिल करते है वे इस निम्न प्रकार हैं।


हिस्सेदार/शेयरधारक के प्रकार:-

 (1) संयुक्त शेयरधारक:-

    यदि कई अनेक लोग किसी प्रोपर्टीका उपभोग ले रहे हैं, तो यह कहना असंभव है कि उस प्रोपर्टी में हर एक व्यक्ति का कितना हिस्सा है। प्रत्यक्ष विभाजन के समय ही यह समजमे आयेगा के किस व्यक्ती को कितना हिस्सा मिला है। यदि संयुक्त शेयरधारक की मृत्यु हो जाती है, तो उसका हिस्सा उसके उत्तराधिकारियों के बिना संयुक्त शेयरधारक के पास जाता है। उदाहरण के लिए, अगर मिताक्षरी हिंदू परिवार में छह भाई हैं, तो उनमें से प्रत्येक का सटीक हिस्सा कहना संभव नहीं है। क्योकी; यह हिस्सा परिवार में होनेवाले हर जन्म और मृत्यु के साथ बदलता रहता है।
 

 (2) सामांन्य शेयरधारक:-

    जब कई अनेक लोग सामाजिक रूप से प्रोपर्टी का उपभोग ले रहे होते हैं, तो उन्हें सामान्य शेयरधारक कहा जाता है। इसमें प्रत्येक हितधारक का कितना हिस्सा है यह सभीको पता होता हैं। यदि शेयरधारक की मृत्यु हो जाती है, तो उसका हिस्सा उसके उत्तराधिकारियों को जाता है। उदाहरण के लिए, यदि एक मुस्लिम व्यक्ति अथवा एक दयाभाग हिंदू परिवार के पिता की मृत्यु हो जाती है, तो उत्तराधिकारियों को विरासत में उनकी संपत्ति में निश्चित हिस्सा मिलता है, क्योंकी, वे संपत्ति के सामान्य हिस्सेदार हैं।


    अब जब आप समझही गए हैं कि, ये दो प्रकार के हितधारक क्या हैं, तो आपको यह तय करना आसान होगा कि किस आधार पर विभाजन किया जाए। किसी संपत्ति के इस तरह विभाजित होने पर जो दस्तावेज बनाए जाते हैं, उन्हें विभजन विलेख कहा जाता है। जिसे अंग्रेजी में पार्टीशन डीड कहते हैं। अब, यह प्रश्न उठता है कि क्या विभाजन पत्र लिखीत स्वरूप से होना आवश्यक है, तो इसका उत्तर नहीं है। विभाजन जुबानी भी किया जा सकता है। मध्यस्थता के माध्यम से भी विभाजन किया जा सकता है; लेकिन जब सर्वसम्मति से विभाजन होता है, तो विभाजन के कार्य को एक दस्तावेज के रूप में रखना आवश्यक है, ताकि कल भविषमे फिरसे विवाद उत्पन्न न हों। हालांकि, विभाजन विलेख एक विशिष्ट प्रारूप में लिखनेकी कोई आवश्यकता नहीं है । कुछ प्रोपर्टी को अलग करने और इसका उपभोग करने का उद्देश्य उस दस्तावेज़मे स्पष्ट लिखा होना चाहिए।


    विभाजन पत्र के मामले में, मूल प्रति एक शेयरधारक के पास रखी जाती है। और दूसरों के पास इसकी प्रतियां दिये जाती हैं अथवा अन्य किसी एक के पास विभाजन पत्र की मुल प्रत रखकर बाकी हिस्सेदारोको विभाजन विलेख के प्रतियाँ निकालने का अधिकार दिया गया है। विभाजन विलेख में महत्वपूर्ण बात यह होना चाहिए कि विभाजन विलेख में संपत्ति का स्पष्ट विवरण, उसका स्वामित्व, विभाजन का उद्देश्य, प्रत्येक व्यक्ति द्वारा प्राप्त होनेवाला हिस्सा या शेयर और उस हिस्से का स्पष्ट विवरण होना चाहिए। यदि संपत्ति अचल है, तो आय नकाशा, मकान नंबर, समूह संख्या, उप-शेयर और चातुर्मास का उल्लेख करना आवश्यक है। साथ ही साथ विभाजन पत्र में निम्नलिखित मुद्दे भी होना चाहिए:-

  1. विभाजन में समानता सुनिश्चित करने के लिए, यदि एक शेयरधारक ने दूसरे शेयरधारक को कुछ नकद दिया हो, तो विभाजन पत्रमे उसका उल्लेख करें,
  2. संयुक्त प्रोपर्टी पर बोझ / ऋण, आदि का उल्लेख करे।
  3. उस बोझ / ऋण के पुनर्भुगतान की व्यवस्था कैसे करे उसका उल्लेख होना चाहिए।
  4. कब्जे का अधिकार,
  5. यदि कोई किरायेदार आदि है, तो भविष्य में किसे किराया देना होगा उसका उल्लेख करें।
  6. उन्हें इसके प्रति जागरूक करने के लिए जो किये है उन बातो का उल्लेख किया जना चाहिए।
    ये सभी महत्वपूर्ण बातो को विभाजन पत्रमें आनी चाहिए।

    यदि विभाजन पत्रमे कुछ हितधारक अज्ञानी याने छोटे बच्चे हैं, तो उनके शेयरधारकों के हितों की रक्षा करना महत्वपूर्ण है। अन्यथा जब एक अज्ञानी व्यक्ति सज्ञान हो जाता है, तो पुन्हः विभाजन के लिये वह अदालत में एक मुकदमा दायर कर सकता है और वह पहले के विभाजल को रद्द करने की मांग कर सकता है क्योंकि यह विभाजन  उसके हित में नही है। और कोर्ट हमेशा अज्ञान व्यक्ती के हित का सोचता है। क्योकी "मायनर ईज आलवेज बेनिफिशरी" के रुल मे आता है। यदि कुछ प्रोपर्टी बेची जाती है, तो उस प्रोपर्टी के मूल्य का उल्लेख विभाजन पत्र मे किया जाना चाहिए। हमें यहापर ध्यान रखने की आवश्यकता है कि बंधक(Mortgage) लेने वाले को बंधक देनेवाले व्यक्ती के सहमती के बिना हिंदू संयुक्त संपत्ति में हिस्सा मांगने का अधिकार नहीं है। 

    मुंबई स्टैम्प अधिनियम, 1958 की धारा 2 के अनुसार, विभाजन पत्र में निम्नलिखित दस्तावेज भी शामिल हैं।

  1. सिविल अधिकारी और सिविल कोर्ट द्वारा जारी अंतिम आवंटन आदेश,
  2. मध्यस्थ न्यायाधिकरण,
  3. मौखिक विभाजन विलेख का खुलासा करने के लिए शेयरधारकों द्वारा हस्ताक्षरित दस्तावेज,

अब देखते हैं कि क्या हमें वितरण पत्र पर कुछ मुहर(stamp) लगाना है।

    सामान्य रूप से विभाजन पत्र जनरल स्टॅम्प पेपर पर लिखा जाना है। विभागीत भाग को बड़े भाग से बाहर निकाल दिया जाता है, या एक से अधिक भाग निकाल लिया जाता है। इसलिए यहाँपर बड़े हिस्से को छोड़कर अन्य सभी छोटे हिस्सो की कीमत पर मुहर लगानी होगी। अंतिम डिक्री स्टाम्प पर दी जानी है, भले ही वह किसी दिवाणी या  प्राधिकरण द्वारा विभाजन की गई हो। बॉम्बे कोर्ट फीस अधिनियम, 1959 (बॉम्बे कोर्ट फैक्ट 1959) की धारा 51 के तहत विभाजन विलेख  के दावे में अदालत की कोर्ट फीस का भुगतान किया जाता है, तो अंतिम आदेश के समय स्टांप लगाने की कोई आवश्यकता नहीं है। आइए ईसपर एक उदाहरण के साथ समझते हैं। मान लीजिए कि  संपत्ती 10,000 / - रुपये की है।  यह रु 5,000 / -, रु 2,000 / - और रु 1000 / - इसतरह संपत्ती का बटवारा हो  रहा है। तब एक संपत्ती को छोडकर बचे हुवे संपत्ती के सभी हिस्सो की कीमत पर अपनी मुहर लगानी होगी। 


    विभाजन विलेख का पंजीकरण (रजिस्ट्रेशन) अनिवार्य नहीं है। हालांकि, यदि आय अचल प्रकृति की है, तो इसका दस्तावेज़ पंजीकरण सही है। तो हर कोई समझ सकता है कि उन्हें कितना हिस्सा मिला। यदि दस्त वास्तव में बनाया नहीं गया है, केवल विभाजन को मंजूरी या स्वीकार किया जाता है, तो इस तरह के दस्त पंजीकरण का कोई कारण नहीं है। 


    यदि उपर्युक्त सूचनाओं को ध्यान में रखते हुए विभाजन विलेख तैयार किया जाता है, तो इसमें आने वाली कठिनाइयाँ कम होंगी और इसका काम आसान होगा और परेशानी से बचा जा सकेगा।


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