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बाल विवाह निवारण अधिनियम, 1929 | The Child Marriage Restraint Act, 1929

बाल विवाह निवारण अधिनियम, 1929 | The Child Marriage Restraint Act, 1929


यह अधिनियम सन 28 सितंबर 1929 को इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल ऑफ इंडिया में पारित किया गया। जिसके अनुसार लड़कियों के लिए विवाह की आयु 14 वर्ष तय कर दि गयी थी और लड़कों के लिए विवाह की आयू 18 वर्ष तय की गई। जिसे बाद लड़कियों के लिए विवाह के लिए उनकी आयू वढाकर 18 और लड़कों के लिए 21 कर दिया गया। इस कानून के प्रायोजक हरविलास शारदा थे जिसकी वजह से इस कानून को पहले 'शारदा अधिनियम' इस नाम से जाना जाता था। यह कानून छह महीने बाद 1 अप्रैल 1930 को लागू हुआ उसके बादमें इस कानून को बाल विवाह निवारण अधिनियम, 1929 इस नाम से जाना जाने लगा। आईये इस कानून से माध्यम से आज हम बाल विवाह निवारण अधिनियम, 1929 | The Child Marriage Restraint Act, 1929 इसके बारेमें जानकारी हासिल करने की कोशीश कते है।


बल विवाह कानूनी अपराध है:-

बाल विवाह अधिनियम 1929 के अंतर्गत यदी कोई लडकी का विवाह उसके आयू के 18 साल से कम उम्रमे और किसी लडके का विवाह उसके आयू के 21 साल से कम उम्र में कि जाती है तो यह इस कानून के अनूसार अपराध कहलाया जाता है।


बाल विवाह में सहयोग करने वाले लोगों को इस कानून के अनूसार सजा हो सकती हैः-

इस तरह के बाल विवाह करवाने वाले अथवा उसे योगदान देने वाले सभी व्यक्तियों को जैसे वर एवं वधु पक्ष के माता-पिता, रिश्तेदार, बाराती एवं विवाह करवाने वाले पंडित को बाल विवाह निवारण अधिनियम 1929 के धारा 5,6 के अंतर्गत तीन महीने की कैद अथवा जुर्माना, दोनों हो सकते है।


21 साल से कम उम्र के पुरुष द्वारा किया गया बाल विवाह कानूनी अपराध है:-

जो कोई पुरुष जो कि 21 साल से कम आयू का है तथा 18 साल से अधिक आयू का है, वह एक बच्चे के साथ विवाह करता है, तो ऐसे व्यक्ति को बाल विवाह निवारण अधिनियम, 1929 की धारा 3 के अंतर्गत 15 दिन का सामान्य कारावास अथवा 1000/- रुपये जुर्माना अथवा दोनों हो सकते है।


21 साल से अधिक उम्र के पुरुष द्वारा किया गया बाल विवाह कानूनी अपराध है:-

जो कोई पुरुष जो कि 21 साल से अधिक आयू का है और वह बच्चे के साथ विवाह करता है, तो ऐसे व्यक्ति को बाल विवाह निवारण अधिनियम, 1929 की धारा 3 के अंतर्गत 3 महीने का सामान्य कारावास तथा जुर्माना भी हो सकता है।


न्यायालय द्वारा बाल विवाह अपराध की सुनवाई:-

  • न्यायालय बाल विवाह होने के पहले 1 साल के अंदर ही सुनवाई कर सकता है (धारा 9 के अंतर्गत)
  • बाल विवाह अपराध से संबंधित शिकायत जो न्यायालय के सामने आती है, वह न्यायालय स्वय उसकी जॉच कर सकता है या उसकी प्राथमिक जॉच करवाने के लिए बाल विवाह अधिनियम, 1929 की धारा 10 के अंतर्गत किसी भी मजिस्ट्रेट को निर्देशित कर सकता है।


बाल विवाह अपराध की सुचना किसको दें:-

  • अगर किसी व्यक्ति को जानकारी मिलती है कि कहीं पर बाल विवाह करवाया जा रहा है तो वह इसकी सूचना संबंधित मजिस्ट्रेट अथवा पुलिस अधिकारी को दें सकता है।
  • वह अधिकारी बाल विवाह रोकने के लिये संबंधित पक्षकार को आधिकारिक आदेश की जानकारी देगा।
  • यदि उसके बाद भी कोई व्यक्ति इस आदेश का उल्लंघन करेगा तो ऐसे व्यक्ति को बाल विवाह निवारण अधिनियम, 1929 की धारा 12 के अंतर्गत 3 माह का कारावास या 1000 रुपये जुर्माना अथवा दोनों हो सकता है।
  • बाल विवाह रोकने के लिये कोई भी व्यक्ति मेट्रोपोलिटिन मजिस्ट्रेट (प्रथम श्रेणी) के न्यायालय के समक्ष भी आवेदन पत्र प्रस्तुत कर सकता है।


इस लेख के माध्यम से हमने हमारे पाठकों को बाल विवाह निवारण अधिनियम, 1929 | The Child Marriage Restraint Act, 1929 इसके बारेमें पुरी जानकारी देने का पुरा प्रयास कीया है। आशा है आपको यह लेख पसंद आया होगा। इसी तरह कानूनी जानकारी को सिखने के लिए और समझने के लिए आप हमारे इस पोर्टल apanahindi.com पर आवश्य भेट दें। और साथ ही हमारे पोस्ट को शेयर कें।


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