Header Ads Widget

Ticker

6/recent/ticker-posts

औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 के अनुसार मजदूरों के अधिकार क्या है | Industrial Disputes Act 1947

औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 के अनुसार मजदूरों के अधिकार क्या है | Industrial Disputes Act 1947


औद्योगिक विवाद अधिनियम सम्पूर्ण भारत में 1 अप्रेल 1947 से लागू हुआ है। यह नियम सामाजिक सुरक्षा व न्याय के सिध्दांन्त पर औद्योगिर विवादों का निपटान करने के उद्देश्य से बनाया गया है। इस कानूनों को आज़ाद भारत के अनुरूप में तैयार करने के लिये वर्ष 1947 में औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 | Industrial Disputes Act 1947 के रूप में पेश किया गया था। श्रम कानूनों की सबसे अहम बात यह है कि यदि किसी भी स्थिति में श्रमिकों और प्रबंधन के बीच किसी प्रकार कोई भी विवाद उपजता है तो यह उनके मध्य सुलह करानेमें मदत करता है। औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 सभी औद्योगिक विवादों की जाँच पड़ताल करने तथा उनका निपटान करने हेतु विद्यमान एक प्रमुख विधान है। इसका मुख्य उद्देश्य देश के विकास हेतु आवश्यक एक ऐसे कार्यबल का निर्माण करना है, जिसका शोषण न किया जा सके बल्कि जो उच्च स्तरीय उत्पादन कार्य में भी सक्षम हो। तो आईये इस लेख के मध्यमसे आज हम औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 के अनुसार मजदूरों के अधिकार | Industrial Disputes Act 1947 इसके बारेमें जानकारी हासील करने की कोशीश करते है।


औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 के अनुसार मजदूरों के अधिकार | Industrial Disputes Act 1947

जब मजदूर काम करता है तो यह जरुरी नहीं कि मालिक एवं मजदूर के रिश्ते सदर मधुर हो, बल्कि कभी-कभी वह आपस में विवाग भी उठा सकते है। चूंकि मालिक एंव श्रामिक दोनों के ही सहयोग से फैक्ट्री की समृध्दी निर्भर करती है इसलिए निश्चय ही दोनों के रिश्तों में खटास आने से इसका प्रतिकूल प्रभाव फैक्ट्री पर पडता है और कभी झगडा बढ जाने पर फैक्ट्री के मालिक को अधिक नुकसान होने की सम्भावना बन जाती है। इसलिए ऐसी सभी समस्याओं के समाधान के लिए इस औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 का सृजन किया गया है। इसका उद्देश यह है कि मजदूर एवं मालिक के आपसी मतभेद को सुलह समझौते के आधार पर निस्तारण का प्रयास किया जाये। इन झगडों का निस्तारण किस प्रकार किया जायेगा, और इसकी क्या व्यवस्था होगी इसके लिए पूर्ण प्रावधान इस अधिनियम में किया गाये है। मालिक एक शक्तिशाली व्यक्ति होता है जबकि श्रमिक कमजोर व्यक्ति होता है। इस वास्तविक स्थिति को ध्यान में रखते हुए मजदूर के हितों की रक्षा हेतु उक्त कानून की व्यवस्था की गयी है। इस प्रकार एक श्रमिक को उसकी नौकरी करने के अन्तर्गत वेतन से लेकर नौकरी के दौरान उसको जो परेशानी हो सकती है या दुर्घटना हो सकती है उससे निपटने के साथ-साथ भविष्य में बुढापे में होने वाले कष्ट के निवारण के लिए भी पर्याप्त प्रावधान इस अधिनियम में सृजित किये गये हैं इसलिए हर मजदूर को अपने अधिकारों की जानकारी करने के लिए इन सभी कानूनों के बावत संक्षिप्त जानकारी होना परम आवश्यक है ताकि वह अपने हितों को भली प्रकार सुरक्षित कर सकें। जब कभी फैक्ट्री मालिक एवं उसमें कार्यरत मजदूर के बीच में मजदूरी सम्बन्धीत एवं सेवा शर्तों सम्बन्धी कोई विवाद होता है तो उना निस्तारण सुलह समझौते के आधार पर करने की व्यवस्था भी इसी अधिनियम के अन्तर्गत की गयी है। यदि इन विवादों को आपस में सुलह समझौते के आधार पर निस्तारित किया जाना सम्भव नहीं होता तो उस स्थिति में लेबर/श्रम न्यायालय के माध्यम से इसका निस्तारण करना होता है। प्रत्येक राज्य में ऐसे श्रम न्यायालयों की स्थापना की गयी है।


इस लेख के माध्यम सहे आज हमने हमारे पाठकों को औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 के अनुसार मजदूरों के अधिकार | Industrial Disputes Act 1947 इसके बारे में जानकारी देनेकी कोशिश की है। आशा है आपको यह जनकारी पसंद आया होगा। इसीतरह कानूनी जानकारी सिखने और पढने के लिए हाप हमारे इस पोर्टल apanahindi.com पर आवश्य भेट दें।


यह भी पढे


थोडा मनोरंजन के लिए




एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ