हिन्दू विवाह अधिनियम | हिंदू विवाह के लिए शर्तें | Hindu Marriage Act | Conditions for a Hindu marriage
परिचय
पेहलेके जमाने में, विवाह यह शुद्ध रूप से धार्मिक रिवाजो के बंधनोमे था। आज भी धार्मिक तरीको से विवाह की जाती हैं। वास्तव में, ऐसे विवाह को कानूनी माना जाता हैं। लेकिन, पहले की तरह, विवाह को केवल संपूर्णतः धार्मिक दायित्व ही नही, बल्कि अन्य कानूनी दायित्वों का भी पालन करना होगा। हर धर्म के लोगों का विवाह हर धर्म के रीति-रिवाजों के अनुसार होती है।
जब हम सिर्फ हिंदू विवाह अधिनियम के बारे में सोचने जा रहे हैं। तो एक बात का ध्यान रखना होगा,वह यह है के, यह कानून न केवल सिर्फ हिंदू धर्म पर लागू होता है, बल्कि बौद्ध, सिख, जैन, वीरशैव, लिंगायत और अन्य हिंदू संप्रदायों जैसे ब्रह्म समाज और प्रथना समाज जैसे अन्य धर्मों पर भी लागू होता है। इसलिए, भले ही कानून में हिंदू शब्द का उपयोग किया जाता है, इसका मतलब यह है कि, इस कानून के प्रावधान जिन-जिनके धर्म अथवा संप्रदाय से संबंधित व्यक्तियों पर लागू होते हैं, उन सभी पर यह कानून लागू होगा। हमने देखा है कि सामान्य रूप से हिंदू शब्द में कौन से अन्य धर्म या संप्रदाय शामिल हैं। इसके अलावा, यग कानून निम्नलिखित लोगों पर लागू होता है।
हिंदू विवाह अधिनियम कौन-कौन से लोगो पर लागू होता है।
- हिंदू, बौद्ध, जैन या सिख इन विवाहीत जोड़े से पैदा हुवे बच्चे हो।
- हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख संप्रदाय विवाहीत जोडै में से कोई एक हो सकते हैं और उनके बच्चो को उन के संप्रदाय और रीति-रिवाजों के अनुसार संस्कार दिये गये हो।
- यदि किसी ने हिंदू, बौद्ध, जैन, सिख धर्म में धर्मांतरण किया है, तो उपरोक्त कानून उनपर भी लागू होगा।
उपरोक्त चर्चा से हम यह देख सकते हैं कि, हिन्दू शब्द का उपयोग कैसे व्यापक रूप से अपेक्षित है।
इस कानून के अनुसार कौन-कौन शादी कर सकता है आइए यह जानने कि कोशीश करते है। इस अधिनियम की धारा 5 के तहत हिंदू विवाह के अस्तित्व में आने के लिए, कुछ शर्तों को पूरा करना आवश्यक है। ऐसी शर्तों को पूरा करने वाले ही शादी कर सकते हैं। आइये देखते हैं, कि वे किस प्रकार हैं।
विवाह की शर्तें इस प्रकार हैं: -
- विवाह के समय किसी की भी पहली पत्नी अथवा पहला पति जीवित नहीं होना चाहिए। अथवा पहला विवाह अस्तित्व मे नहीं होना चाहिए।
- दोनों व्यक्तियों मे से कोइ भी व्यक्ती पागल नही होला चाहिए। अथवा विवह के लिए कानूनी तौर से सहमति देने के लिए असमर्थ नहीं होना चाहिए।
- मान लीजिए कि यदि व्यक्ति विवाह के लिए सहमती देता है, तो भी उसे अन्य परिणामों के कारण शादी करने में असमर्थ नही होना चाहिए। इसके अलावा बच्चों को जन्म देने में असमर्थ होने या जिसे अंग्रेजी में 'ईम्पोटंट' (नपुंसक) कहा जाता है। ऐसा नहीं होना चाहिए।
- विवाह करने वाला व्यक्ति पागलपन के झटके (इनसॅनिटी) आनेवाला अथवा भ्रमिष्ट होनेवाले झटके (एपिलेप्सी) आनेवाले स्थिति में नहीं होना चाहिए।
- शादी के समय लड़के की उम्र 21 से कम नहीं होनी चाहिए और लड़की की उम्र 18 साल से कम नहीं होनी चाहिए।
- रिश्तों पर कानून द्वारा निर्धारित नियमों का पालन किया जाना चाहिए। हालांकि, अगर ऐसा कोई आदर्श या परंपरा है, तो यह प्रतिबंध नहीं रहेगा। दूसरे शब्दों में, कर्नाटक में कुछ जगहों पर मामा से शादी करने का रिवाज है। अथवा कही जगहो पर मामा के लडकी से विवाह करने का रिवाज है। पारंपरिक रिवाजों को स्वीकार किये जाने वाले रिश्तोमे एसे विवाह किये जाते है।
उपरोक्त बताइ गई शर्तें बहोत महत्वपूर्ण शर्तें हैं। अगर, वे पूरी होती हैं, तो कोई भी दो हिंदू व्यक्ति एक-दूसरे से विवाह कर सकते हैं। इस अधिनियम की धारा 7 मे विवाह करने के संबंधित तौरिके बताये गये है। पुत्र अथवा पुत्री का विवाह रीति-रिवाज के अनुसार किया जा सकता है। अथवा सप्तपदी का औपचारिक विवाह हो जाता है, जिसमे विवाह तब संपन्न होता है जब वर और वधू होमहवन के चारों ओर सातवें चरण को पूरा करते हैं। यानी यह दोनों के लिए बाध्यकारी है।
अब इसके बाद हम विवाह पंजीकरण के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे। इस अधिनियम की धारा 8 मे इस संबंध के बारेमें जानकारी प्रदान करती है। प्रत्येक राज्य सरकार को विवाह का प्रमाण याने के सबूत देने के लिए नियम बनाने का अधिकार दिए गए है। इस नियम के अनुसार कार्य करना प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है, अन्यथा वह व्यक्ति सजा या अन्य दंड के लिए उत्तरदायी हो सकता है। समाज मे ऐसा विवाह होने पर, विवाह पंजीकरण फॉर्म, जो निर्धारित प्रारूप में उपलब्ध होता है, इसे भरकर, कोई भी व्यक्ती विवाह पंजीकरण के लिए आवेदन कर सकता है। और उस पर आवश्यकता नुसार ज्यूडिशियल स्टैंप का मुहर लगाकर भुगतान कर सकता है। आवेदन के बाद, विवाह पंजीकरण स्टैम्प के साथ आवश्यक विवरण भरकर प्रमाण पत्र प्राप्त कर सकते हैं।
रजिस्ट्रार के पास हिंदू विवाह पंजीकरण का रजिस्टर उपलब्ध होता है, साथही एक निश्चित शुल्क देकर पंजीकरण का प्रमाण पत्र भी प्राप्त कर सकते हैं। यहाँ ध्यान रखने योग्य सबसे महत्वपूर्ण बात यह है के, किसी प्रकार, यदि विवाह पंजीकृत होने से रह जाता है, तो केवल यह विवाह पंजीकृत नहीं है, इसलिए विवाह को अवैध नहीं ठहरा जा सकता।
वैवाहिक संबंधों को फिर से स्थापित करने के बारे में:-
हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 में वैवाहिक संबंधों को फिर से स्थापित करने के बारे में जानकारी दी गई है। यदि पति अथवा पत्नी बिना किसी वैध कारण के एक दूसरे से अलग रह रहे हो, तो दूसरा व्यक्ति, चाहे वह पति हो अथवा पत्नी, वे अपने वैवाहिक संबंध को फिर से स्थापित करने के लिए अदालत में आवेदन कर सकता है। और अगर कोई अच्छा कारण नहीं मिलता है, तो अदालत उन्हें एक साथ रहने के लिए मजबूर कर सकता है।
इसके अलावा, यदि कोई व्यक्ति यह दावा कर रहा है कि वह एक निश्चित कारण से वैवाहिक जीवन से अलग होना चाहता है, तो उसे सबूतों से साबित करना होगा और निश्चित रूप से यह कारण देने वाले व्यक्ति के उपर ही जिम्मेदारी होगी। कानूनी रूप से तलाक लेने वाले दंपति के मामले में, साथ रहने का कोई दायित्व नहीं है। यदि धारा 11 के अनुसार अधिनियम के प्रावधानों के खिलाफ किसीका विवाह हुआ है, तो यह निर्णय लिया जा सकता है कि विवाह नहीं हुआ है।
इसके अलावा, इस अधिनियम के और कौन से प्रावधान है वह देखते है:-
यदि इस अधिनियम के तहत निम्नलिखित साबित हो जाते हैं, तो शादी को अदालत के आदेश द्वारा रद्द किया जा सकता है।
- यदि पति अथवा पत्नी ईन दोनोमे से कोई बांझ / नपुसक (ईंपोटंट) हो तो,
- अगर पत्नी या पति नपुंसक है और शादी के बाद शारिरीक संबंध बनाने के लीये असमर्थ हो तो,
- अगर पत्नी पति के अलावा किसी और अंन्य पुरूषसे गर्भवती होती है, तो शादी को रद्द किया जा सकता है।
इस पर अधिक जानकारी धारा 12 में दी गई है। इस मामले में, भले ही अदालत द्वारा इस तरह के विवाह को रद्द कर दिया गया हो, अथवा विवाह बिल्कुल हुवा भी नही एसे जाहीर आदेश लिया हो, तब भी उस समय जो बच्चे पैदा हुवे हैं, या अभी भी गर्भ में हैं, उन्हें संतान माना जाता है।
नोट:- एसेही कानूनी जानकारी हिंदी मे पाने के लिए हमारे टेलिग्राम चैनल Law Knowledge in Hindi को Join करे।
यह भी पढे
- सभि दस्तावेजोका संपूर्ण मार्गदर्शन | Deeds And Documents
- दस्तावेजो के नमुने | प्रारूप | Format of Deeds ans Documents
- चेक बाऊन्स केसेस संबंधीत संपूर्ण मार्गदर्शन | Cheque Bounce Case Procedure
- पारिवारिक कानून को सिखे और समझे | Family Law in Hindi
- फौजदारी कानून का संपूर्ण मार्गदर्शन | Criminal Law In Hindi
- भारतीय दंड संहिता (I.P.C.) को सिखे और समझे
- सिविल कानून का मार्गदर्शन | Civil Law
- सामाजिक और कानूनी लेख तथा मार्गदर्शन | Social And Legal Articals
थोडा मनोरंजन के लिए
0 टिप्पणियाँ