हिन्दू विधि के अनुसार विवाह की शर्तें क्या है | What are the conditions of marriage according to Hindu law?
भारत में बिना विधिके हिन्दू समाजमें वैध्य विवाह नाही होता. हिन्दू विवाह के लिए कुछ शर्तों का होना जरूरी है। वे शर्ते क्या है। आईये इस लेख के माध्येम से आज हम हिन्दू विधि के अनुसार विवाह की शर्तें क्या है | What are the conditions of marriage according to Hindu law? इसके बारेमें जानकारी हासिल करने की कोशिश करते है।
हिन्दू विधि के अनुसार विवाह की शर्तें क्या है
हिंन्दू विधि के अनूसार विवाह की शर्तों की निम्नलिखित दो संदर्भों में व्याख्या की जा सकती है:-
(A) प्राचीन ग्रंथों में वर्णित शर्तें - (प्राचीन विधि)
(B) हिन्दू विवाह अधिनियम में वर्णित शर्ते (संहिताबद्ध विधि)
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(A) प्राचीन ग्रंथों में वर्णित शर्तें - (प्राचीन विधि) :
प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, किसी विवाह के विधिमान्य होने के लिए निम्नलिखित शर्तों का पूरा 'होना आवश्यक है:-
(i) जाति का परिचय
(ii) एक विवाह प्रथा
(iii) सपिंड संबंध
(iv) निषिद्ध संबंध सीमा
(v) सगोत्र तथा सप्रवार संबंध निषेध
(vi) वैवाहिक अनुष्ठान
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(i) जाति का आधार :
विवाह कर रहे दोनों पक्ष (दूल्हा और दुल्हन ) एक ही जाति के होने चाहिए। पुराने जमाने में अंतर्जातीय विवाह करना निषिद्ध था। यदि पुरूष नीची जाति का हो और स्त्री उँची जाति की हो तो ऐसा विवाह प्रतिलोम विवाह कहलाता है, और इस्तरह के विवाह इस प्राचीन ग्रंथो के नुसार निषिद्ध था। यदि पुरूष उँची जाति का हो और स्त्री नीची जाति की हो तो ऐसा विवाह अनुलोम विवाह कहलाता है, और ऐसा विवाह करना स्वीकृत था।
(ii) एक पत्नी प्रथा :
इस नियम के अंर्तगत, विवाह कर रहे दोनों पक्षों चाहे (पुरूष या स्त्री) हो दोनों में से किसी का कोई जीवित जीवनसाथी (पत्नी या पति) नहीं होना चाहिए। विवाह कर रहे दोनों पक्षों में से किसी का पहले से कोई विवाह नहीं होना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति विवाह करना चाहता है तो विवाह के समय उसका कोई जीवित जीवनसाथी नहीं होना चाहिए। विवाह के समय दोनों पक्षों (पुरूष और स्त्री) को कुँआरा होना चाहिए। पुराने समय में (विधवा विवाह अधिनियम से पूर्व) विधवा स्त्री को विवाह की इजाजत नहीं थी।
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(iii) सपिंड संबंध :-
विवाह कर रहे दोनों पक्षों का आपस में कोई सर्पिङ संबंध नहीं होना चाहिए, जब तक कि उनकी परम्परा इसकी स्वीकृति न देती हो। विवाह कर रहे दोनों पक्षों के शरीर में एक ही वंश का रक्त नहीं प्रवाहित होना चाहिए। पिता के शरीर के अंश पुत्र के शरीर में मौजूद होते हैं, इसलिए पिता और सपिंड होते हैं। सपिंड संबंधों की सीमा पिता के पक्ष से सात पीढियों पुत्र तक होती है, और माता के पक्ष से पाँच पीढ़ियों तक होती है। अब इन्हें कम करके क्रमशः 5 और 3 कर दिया गया है।
(iv) निषिद्ध संबंध सीमा :-
विवाह कर रहे दोनों पक्षों (स्त्री-पुरूष) को निषिद्ध संबंधों की सीमा में नहीं होना चाहिए। निषिद्ध संबंध याने इसके मायने उन संबंधों के बीच विवाह करना वर्जित है और ऐसा विवाह अमान्य होता है। उदाहरण के लिए, पिता और पुत्री के बीच, माँ और बेटे के बीच, सास और दामाद के बीच, भाई और बहन के बीच, चाचा और भतीजी के बीच, दो भाईयों या दो बहनों के बच्चों के बीच विवाह संबंध वर्जित हैं क्योंकि ये निषिद्ध संबंधों की सीमा में आते हैं। किसी पुरूष को ऐसी विधवा से विवाह नहीं करना चाहिए जो उसके भाई की पत्नी रही हो अथवा चाचा या मामा की पत्नी रही हो। परन्तु कुछ विभागों में संबंधों के बीच विवाह उस स्थिति में मान्य होता है, जब उनकी प्रचलित परम्परा इसकी इजाजत देती हो और हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955, भी इसकी मान्यता देता है। उदाहरण के लिए दक्षिण भारत में मामा और भाँजी के बीच विवाह, और इसी तरह भाई की बेटी और बहन के बेटे के बीच का विवाह।
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(v) सगोत्र और सप्रवार विवाह निषेध :
यदि विवाह कर रहे दोनों पक्ष (दूल्हा और दुल्हन) एक ही गोत्र के हों तो वे सगोत्र या सप्रवार कहलाते हैं। सगोत्रों के बीच विवाह निषिद्ध है और ऐसा विवाह अमान्य होता है। लेकिन यह नियम शूद्रों पर लागू नहीं होता है। लेकिन बाद में हिन्दू विवाह अयोग्यता उन्मूलन अधिनयम, 1946, के माध्यम से सगोत्र विवाह को भी मान्य करार दिया गया और इस नियम को हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955, की धारा 29 (1) शामिल कर लिया गया है।
(vi) विवाह अनुष्ठान :
किसी विवाह के विधिमान्य होने के लिए कुछ शास्त्र सम्मत विधि-विधानों का अथवा परम्परागत रस्म रिवाजों का पालन होना आनिवार्य है। ये अनुष्ठान हैं (i) होम तथा पाणिग्रहण (पवित्र अग्नि का आवाहन) और (ii) सप्तपदी। विवाह अनुष्ठान उस स्थिति में पूरा हुआ माना जाता है जब दूल्हा और दुल्हन पवित्र अग्नि की सात परिक्रमा पूरी कर लेते है।
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(B) हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955, के अंतर्गत विवाह की शर्तें:
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955, की धारा 5 में किसी विवाह के विधिमान्य होने के लिए कुछ शर्तों का प्रावधान किया गया है वे निम्नलिखित है।। :-
(i) एक पत्नी प्रथा :
एक पत्नी विवाह का अर्थ होता है सिर्फ एक जीवनसाथी का होना । जीवनसाथी का अर्थ है विधिपूर्वक विवाहित पत्नी या पति । द्विविवाह का अर्थ है दो जीवनसाथी का होना । बहुविवाह का अर्थ एक से अधिक पत्नियों का होना । बहुपति प्रथा का अर्थ है एक से अधिक पति होना। हिन्दुओं में एक से अधिक जीवनसाथी का होना वर्जित है। इसलिए यदि कोई व्यक्ति विवाह करना चाहता है तो विवाह के समय उसका कोई जीवित जीवनसाथी नहीं होना चाहिए। विवाह के समय दोनों पक्षों (पुरूष और स्त्री) को कुँआरा होना चाहिए अथवा विधवा या विधुर होना चाहिए । यदि ऐसा व्यक्ति जिसका कोई जीवनसाथी हो (विवाह को समय जीवित और बिना तलाक के) फिर से विवाह करता है तो वह व्यक्ति हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955, की धारा 17 के अंतर्गत द्विविवाह करने का दोषी करार दिया जाता है। हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955, धारा 11 के अंतर्गत ऐसे विवाह को अमान्य करार दिया जाता है। द्विविवाह के दोषी व्यक्ति आई. पी. सी. की धारा 494 तथा 495 के अंतर्गत सजा के पात्र होते हैं ।
(ii) मानसिक क्षमता :
विवाह कर रहे व्यक्ति (पुरूष या स्त्री) को विवाह की जिम्मेवारी पूरा करने के लिए सक्षम होना चाहिए। विवाह कर रहे दोनों पक्षों में से किसी को भी मानसिक अस्वस्थता, मानसिक विकार या पागलपन का शिकार नहीं होना चाहिए। दोनों पक्षों को अपनी स्वतंत्र सहमति देने में सक्षम होना चाहिए। यदि ऐसा नहीं है तो वह व्यक्ति बच्चों को जन्म देने के योग्य नहीं है (धारा 5 (ii))। अधिनियम की धारा 5 के खंड (ii) में यह प्रावधान है कि हिंदू विवाह की एक प्रमुख शर्त यह है कि दोनों पक्षों में से किसी को भी मानसिक असंतुलन, मानसिक विकार, या पागलपन का शिकार नहीं होना चाहिए। अधिनियम की धारा 5 (ii) (b) में यह प्रावधान है कि यदि विवाह के समय कोई एक पक्ष किसी मानसिक रोग का शिकार हो, तो दूसरे पक्ष के चाहने पर यह विवाह अमान्यकरणीय (voidable) करार दिया जा सकता है।।
(iii) विवाह कर रहे दोनों पक्षों की उम्र (उम्र सीमा) :
विवाह के समय दूल्हे की उम्र कम से कम 21 साल और दुल्हन की उम्र कम से कम 18 साल होनी चाहिए ।
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(iv) निषिद्ध संबंध सीमा :
विवाह कर रहे दोनों पक्षों को निषिद्ध संबंध सीमा में नहीं होना चाहिए, सिवाय उस स्थिति के जब विवाह कर रहे दोनों पक्षों की परम्परायें ऐसे संबंध की इजाजत देते हों।
(v) सपिंड संबंध :
विवाह कर रहे दोनों पक्षों के बीच सपिंड संबंध नहीं होना चाहिए, सिवाय उस स्थिति के जब दोनों पक्षों की परम्परायें ऐसे संबंध की इजाजत देते हों।
(C) अंन्य अतिरिक्त शर्तें :
उपरोक्त शर्तों के अलावा अधिनियम में और शर्तें भी शामिल की गई हैं जो निम्नलिखित हैं: कुछ
(i) विवाह की रस्मों का पालन
(ii) विवाह का पंजीकरण
(iii) विवाह कर रहे दोनों पक्षों की स्वतंत्र सहमति
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इस लेख के माध्यम से आज हमने हामारे पाठकों को हिन्दू विधि के अनुसार विवाह की शर्तें क्या है | What are the conditions of marriage according to Hindu law? इसके बारेमें जानकारी देनेका पुरा प्रयास किया है आशा है आपको यह लेख पसंद आया होगा। इसी तरह कानूनी जानकारी सिखने के लिए आप हमारे इस पोर्टल apanahindi.com पर आवश्य भेट देँ।
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