हिन्दू विधि की शाखायें कौन-कौनसी है। Schools of Hindu Law
मूल रूप से हिंदू विधि की दो शाखाएं हैं एक मिताक्षरा तथा दूसरी दायभाग। मिताक्षरा विज्ञानेश्वर द्वारा लिखित भाष्य है जो 11वीं शताब्दी में की गई थी। दायभाग किसी संहिता विशेष पर आधारित नहीं है। दायभाग जीमूतवाहन की कृति है दायभाग के सिद्धांत बंगाल में प्रचलित है तथा मिताक्षरा के सिद्धांत भारत के अन्य भागों में सबसे अधिक मान्य ग्रंथ है। दायभाग बंगाल में सर्वोपरि माना जाता है। मिताक्षरा शाखा का इतना सर्वोपरि प्रभाव है कि बंगाल और आसाम में जहां दायभाग कुछ विषयों पर कौन है वह मिताक्षरा शाखा ही मान्य है मिताक्षरा सभी स्मृतियों का सार प्रस्तुत करती है और दायभाग मूल रूप से विभाजन और उत्तरदायित्व पर एक निबंध है। आईये इस लेख के माध्यम से हिन्दू विधि की शाखायें कौन-कौनसी है। Schools of Hindu Law इसके बारेमें जानकारी हासिल करने की कोशीश करते है।
हिन्दू विधि की शाखायें कौन-कौनसी है। Schools of Hindu Law
हिन्दू विधि की शाखाओं की उत्पत्ति भाष्यों तथा टीका के माध्यम से हुई है। इसकी मुख्य दो शाखायें हैं वे निम्नप्रकार है :
1. मिताक्षर शाखा
2. दयाभाग शाखा
याज्ञवल्क्य रचित स्मृति पर विज्ञनेश्वर रचित टिप्पणी को मिताक्षर कहा जाता है । इसका शाब्दिक अर्थ होता है, “शब्दों द्वारा मापा गया।” दयाभाग शाखा का नामकरण जीमूतवाहन रचित दयाभाग नामक प्रमुख स्मृति के आधार पर किया गया है। मिताक्षर शाखा, बंगाल तथा आसाम के अलावा, पूरे भारत में मान्य है । जबकि, दयाभाग शाखा सिर्फ बंगाल और आसाम में मान्य है । मिताक्षर शाखा हिन्दू विधि की सभी प्रावधानों से सम्बन्धित है, जबकि दयाभाग शाखा सिर्फ बंटवारे तथा उत्तराधिकार से संबंधित मुद्दों पर आधारित है।
- यह भी पढे- रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम, 2016
मिताक्षर की प्रशाखायें :
मिताक्षर शाखा को और चार प्रशाखाओं में बाँटा जा सकता है :
1. द्रविड़ या मद्रास प्रशाखा
2. महाराष्ट्र या बम्बई प्रशाखा
3. बनारस प्रशाखा
4. मिथिला प्रशाखा
मिताक्षर तथा दयाभाग शाखा में क्या अंतर है :
1. संयुक्त परिवार
मिताक्षरा शाखा में पुत्र, पौत्र तथा प्रपौत्र को जन्म के साथ ही वंशानुगत सम्पत्ति का अधिकार प्राप्त हो जाता है। लेकीन दयाभागा शाखा में ऐसा कोई अधिकार जन्म के साथ ही प्राप्त नहीं होता। इसमें पिता की मृत्यु के बाद ही पुत्र को सम्पत्ति का अधिकार प्राप्त होता है।
2. उत्तरजीवी
मिताक्षरा शाखा में ऐसे भाई जिन्हें पिता से सम्पत्ति का उत्तराधिकार प्राप्त होता है उन्हें उत्तरजीवी अधिकार भी स्वाभाविक रूप से प्राप्त हो जाता है। लेकीन दयाभाग प्रशाखा में उत्तरजीवी अधिकार की मान्यता नहीं है।
3. विधवा का अधिकार
मिताक्षरा शाखा में किसी भाई की मृत्यु हो जाने की स्थिति में उसकी विधवा को उसके हिस्से का अधिकार प्राप्त हो जाता है। लेकीन दयाभागा शाखा में विधवा को उत्तराधिकार का अधिकार नहीं होता किंतू भरण-पोषण का अधिकार होता है ।
4. सपिण्ड़
मिताक्षरा शाखामें सपिण्ड सम्बन्ध रक्त संबंधों के अनुसार ही होते हैं। और दयाभागा शाखा में पिण्डदान के हिसाब से उत्तराधिकारी का निर्णय होता है।
- यह भी पढे- विधि क्या है?। विधि के कितने प्रकार है?
इस लेख के माध्यमसे आज हमने हामारे पाठकों को हिन्दू विधि की शाखायें कौन-कौनसी है। Schools of Hindu Law इसके बारेमें जानकारी दैनेका पुरा प्रयास किया है। आशा है आपको यह लेख पसंद आया होगा। इसी तरह कानूनी जानकारी सिखने के लिए आप हमारे इस पोर्टल apanahindi.com पर आवश्य भेट दें।
यह भी पढे
- सभि दस्तावेजोका संपूर्ण मार्गदर्शन | Deeds And Documents
- दस्तावेजो के नमुने | प्रारूप | Format of Deeds ans Documents
- चेक बाऊन्स केसेस संबंधीत संपूर्ण मार्गदर्शन | Cheque Bounce Case Procedure
- पारिवारिक कानून को सिखे और समझे | Family Law in Hindi
- फौजदारी कानून का संपूर्ण मार्गदर्शन | Criminal Law In Hindi
- भारतीय दंड संहिता (I.P.C.) को सिखे और समझे
- सिविल कानून का मार्गदर्शन | Civil Law
- सामाजिक और कानूनी लेख तथा मार्गदर्शन | Social And Legal Articals
थोडा मनोरंजन के लिए
0 टिप्पणियाँ