हिन्दू विवाह के रस्म रिवाज | Mindu Marriage Ceremony Rituals
हिन्दू विवाह को तीन तरह से सम्पन्न किये जाता हैं। शास्त्रीय विधि, पारंपरिक विधि, और कानूनी विधि। इन तीनों विधियों मैं कोई विवाह तब तक विधिमान्य रूप से पूर्ण नहीं माना जाता है, जब तक कि कुछ औपचारिकताओं या विवाह के रस्म-रिवाजों का पालन नहीं किया गया हो। वैवाहिक रस्में विवाह संस्था को पवित्रता और गरिमा प्रदान करती हैं। हिंदू विवाह में कई तरह की रस्मों का प्रावधान दिया गया है। जैसे कन्यादान, सप्तपदी, गणपति पूजा, नंदी देवता पूजा, गृह यज्ञ, सनातक उत्सव, काशी यात्रा इत्यादि। कानून में इस बारे में अनिश्चय की स्थिति है कि इनमें से कौन सी रस्म या अनुष्ठान का सम्पन्न होना आनिवार्य है। तो आईये इस लेख के माध्यम से आज हम हिन्दू विवाह के रस्म रिवाज | Mindu Marriage Ceremony Rituals के बारेमें जानकारी देनेका पूरा प्रयास करते है।
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हिन्दू विवाह के रस्म रिवाज | Mindu Marriage Ceremony Rituals
हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 7 के अनुसार, विवाह, शादी कर रहे दोनों पक्षों में से किसी एक के पारंपरिक रस्म-रिवाजों के अनुसार सम्पन्न होना चाहिए। यह आनिवार्य नहीं है कि विवाह में, विवाह करने वाले दोनों पक्षों के रस्म-रिवाजों का पालन किया जाए। जब विवाह दोनों पक्षों में से किसी एक के रस्म-रिवाजों के अनुसार सम्पन्न किया गया हो, जिसमें सप्तपदी शामिल नहीं है, तब भले ही दूसरे पक्ष के रस्म-रिवाजों के अनुसार सप्तपदी विवाह के विधिमान्य होने के लिए आनिवार्य हो, फिर भी यह विवाह विधिमान्य होता है।
विधिमान्य विवाह के लिए रस्म रिवाज :-
(1) कन्यादान :-
यह दुल्हन का दान है जो उसके पिता के द्वारा दूल्हे को दिया जाता है। दान करते समय दुल्हन का पिता ये शब्द कहता है, “मेरी कुआँरी कन्या, ,जो आभूषणों से सुसज्जित है और जो हर तरह से एक समर्पित पत्नी बनने के योग्य है, को मैं आप जैसे चरित्रवान और ज्ञानी पुरूष को धर्म, अर्थ, और काम के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए समर्पित करता हूँ”। कन्यादान के बाद कन्या को जन्म देने वाले परिवार का उस पर अधिकार समाप्त हो जाता है।
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(2) होम या विवाह होम तथा सप्तपदी :-
किसी भी हिन्दू विवाह को विधिमान्य होने के लिए होम या विवाह होम का सम्पन्न होना, सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान होता है । जिसमें पवित्र अग्नि प्रज्वलित कर उसमें आहुति दी जाती है, यह मान कर कि यह पवित्र अग्नि इस विवाह की दैवी साक्षी है। और यह विवाह संस्कार को पवित्रता और गरिमा प्रदान करती है> पवित्र अग्नि के पश्चिम दिशा में एक चकी का पत्थर और उत्तर-पश्चिम दिशा में पानी से भरा एक बर्तन रखा जाता है। दूल्हा पवित्र अग्नि में आहुति प्रदान करता है, जिसमें दुल्हन भी उसका हाथ थाम कर शामिल होती है। इन आहुतियों में महावायहतु-होम भी शामिल रहता है, जिसका अर्थ होता है, पृथ्वी, आकाश, और देवताओं को आहुति प्रदान करना। इसमें दूल्हा कुछ पवित्र मंत्रों का भी पाठ करता है।
(3)सप्तपदी :-
सप्त शब्द का अर्थ है सात और पदी का अर्थ है, चलते कदम। इस तरह सप्तपदी का अर्थ है दूल्हे और दुल्हन द्वारा साथ-साथ चल कर, कुछ मंत्रों का पाठ करते हुए और आपस में वफादारी की शपथ लेते हुए पवित्र अग्नि को देवी साक्षी मान कर उसके सात फेरे लेना। इसके बाद दूल्हा कहता है, “अब तुम मेरी जीवनसाथी बनो क्योंकि तुमने सात फेरे पूरे कर लिए हैं। अब हम जीवनसाथी बन गये हैं क्योंकि हमने साथ चल कर सात फेरे पूरे कर लिए हैं। हम साथ जियेंगे और साथ रहेंगे। हम एक दूसरे से प्यार करेंगे एक दूसरे की खुशी का कारण बनेंगे, और हम आपसी सदभावना से एक साथ रहेंगे।”
(4) पारंपरिक रस्म रिवाज :-
विवाह कर रहे दोनों पक्ष अपने-अपने पारंपरिक रस्म - रिवाजों के अनुसार भी विवाह कर सकते है, जो विभिन्न जातियों में अलग अलग होते हैं, जैसे थाली बांधना ।
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(5) विवाह का पंजीकरण :-
हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 8 के अनूसार सभी राज्य सरकारों को यह अधिकार देती है कि वे दो हिन्दू पक्षों के विवाह का पंजीकरण करने के लिए नियम बनायें। विवाह का पंजीकरण होने से किसी विवाद की स्थिति में विवाह को सम्पन्न हुआ प्रमाणित करने मे मदद मिलती है। हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955, की धारा 8 में विवाह के पंजीकरण का प्रावधान किया गया है। लेकिन यह कानूनन आनिवार्य नहीं है। हालाँकि राज्य सरकारों को इस संबंध में कानून बनाने का अधिकार दिया गया है जिससे विवाह का पंजीकरण कराना आनिवार्य किया जा सके परन्तु स्थानीय कारणों और धार्मिक अवरोधों के कारण अधिकतर राज्य ऐसे कानून नहीं बना पाये हैं जिनके तहत विवाह का पंजीकरण कराना अनिवार्य हो। विवाह के पंजीकरण का उद्देश्य सिर्फ विवाह के विवरण की जानकारी को सुरक्षित रखना और विवाह सम्पन्न होने का प्रमाण देने में मदद करना है।
(6) स्वतंत्र सहमति :-
विवाह के इज्छुक दोनों पक्षों को न केवल अपनी सहमति देने में सक्षम होना चाहिए बल्कि उन्हें विवाह के लिए अपनी सहमति भी देनी चाहिए। विवाह के लिए दी गई सहमति स्वतंत्र रूप से दी गई होनी चाहिए। सहमति पद का शाब्दिक अर्थ होता है स्वीकार करना या मान लेना या अपनी रजामन्दी जाहिर करना या मंजूर करना ।
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भारतीय संविदा अधिनियम (Indian Contract Act) , 1872 की धारा 13 में सहमति पद को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि, दो या उससे अधिक पक्ष उस स्थिति में अपनी सहमति देते माने जाते हैं जब वे एक ही बात को एक साथ, एक ही अर्थ में स्वीकार करते हैं। भारतीय संविदा अधिनियम (Indian Contract Act) , 1872 धारा 14 के अनुसार स्वतंत्र सहमति को तभी स्वतंत्र माना जाता है, जब सहमति प्रदान करने में कोई तकनीकी दोष न रहा हो - जैसे, जबरदस्ती, या अनुचित प्रभाव, या धोखा, या गलतबयानी, या गलती ।
भारतीय संविदा अधिनियम (Indian Contract Act) , 1872 धारा 14 में, स्वतंत्र सहमति को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि, सहमति उसी स्थिति में स्वतंत्र मानी जाती है जब इसमें निम्नलिखित कारण न हों :
- दबाव (धारा 15)
- अनुचित प्रभाव (धारा 16)
- छल (धारा 17)
- गलतबयानी (धारा 18)
- गलती (धारा 20, 21 & 22)
बगैर स्वतंत्र सहमति के कोई अनुबंध मान्य नहीं होता है । यदि जबरदस्ती, अनुचित प्रभाव, धोखा, गलतबयानी, या गलती से हासिल की गई हो, तो ऐसा अनुबंध अमान्य करार दिया जा सकता है। हम यह भी कह सकते हैं कि वह व्यक्ति जिससे ऐसी सहमति प्राप्त की गई हो यदि वह चाहे तो उस अनुबंध को नहीं मान सकता है। लेकिन वह व्यक्ति जिसने ऐसा अनुबंध जबरदस्ती वगैरह जैसे गलत तरीकों से हासिल किया है, वह उस अनुबंध से पीछे नहीं हट सकता है। इस तरह हम देखते हैं कि अमान्यकरणीय अनुबंध एक ऐसा अनुबंध है जिसे सिर्फ एक ही पक्ष की मर्जी पर टाला जा सकता है।
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इस लेख के माध्यमसे हमने हमारे पाठकों को हिन्दू विवाह के रस्म रिवाज | Mindu Marriage Ceremony Rituals के बारेमें संपूर्ण जानकारी सरल और आसान भाषामें बताने का प्रयास किया है। आशा है आपको यह लेख पसंद आया होगा। इसी तरह कानूनी जानकारी सिखने के लिए आप हमारे इस पोर्टल apanahindi.com पर आवश्य भेट दें।
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