प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफ.आई.आर) को आसान भाषा में समझे | Understand First Information Report (FIR) In Easy Language In Hindi
हमने प्रथम सूचना रिपोर्ट के बारेमें कई लेख पढे होंगे और कई लोगों को इसके बारेमें पुरी जानकारी भी नही होती है। तो आईये इस लेख के माध्यम से आज हम प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफ.आई.आर) को आसान भाषा में समझे | Understand First Information Report (FIR) In Easy Language In Hindi और साथ ही इसके कई कानूनी बातों पर नजर डालते है।
प्रथम सूचना रिपोर्ट क्या है?
प्रथम सूचना रिपोर्ट का उद्देश्य फोजदारी कानून को हरकत में लाने से है। जिससे पुलिस छानबीन का कार्य शुरू कर सके। प्रथम सूचना रिपोर्ट ही किसी मुकदमे का आधार होती है। यह रिपोर्ट एक शिकायत या अभियोग के तौर पर होती है, जिससे किसी अपराध के घटित होने या संभवतः घटित होने की सूचना पुलिस को दी जाती है।
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प्रथम सूचना रिपोर्ट किसके विरुध्द और कौन व्यक्ति दर्ज करवा सकता हैः—
- आमतौर पर कानून तोडने वाले व्यक्ति के विरुध्द प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करवाई जाती है।
- कोई भी व्यक्ति जिसके साथ कोई भी आपराधिक घटना घटित हुई हो, वह प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करवा सकता है।
- किसी घटना से संबंधित दोनों पक्षकार भी अपनी—अपनी प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करवा सकते हैं।
प्रथण सूचना रिपोर्ट दर्ज करवाते समय पीडित पक्षकार अपने साथ अपने मित्र रिश्तेदार अथवा अपने वकील को भी साथ थाने में ले जा सकते है।
प्रथम सूचना रिपोर्ट अपराधों की गंभीरता के अनुसार दर्ज की जाती है, जैसे किसी व्यक्ति ने गंभीर प्रकृति का गैर जमानतीय अपराध किया है तो उसके विरुध्द प्रथम सूचना रिपोर्ट दी जाएगी।
परंतु यदि किसी व्यक्ति ने साधारण प्रकृति का जमानतीय अपराध किया है तो उसके विरुध्द एफ.आई.आर. न दर्ज करके पुलिस का हस्तक्षेप न करने वाली रिपोर्ट दर्ज की जाएगी।
अपराध की श्रेणीः—
- जमानतीय अपराध (एन.सी.आर)
- गैर-जमानतीय अपराध (एफ.आई.आर.)
यदि दो जमानतीय अपराध के साथ एक गैर जमानतीय अपराध किसी व्यक्ति द्वारा कारित किया जाता है तो उसके विरुध्द प्रथम सुचना रिपोर्ट दर्ज की जाएगी।
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पुलिस का हस्तक्षेप न करने वाली रिपोप्ट (एन.सी.आर.) दर्ज होने पर वादी के कर्तव्यः—
यदि किसी व्यक्ति की जुबानी सूचना पर थाने द्वारा एन.सी.आर. दर्ज कर ली जाती है, तो ऐसी स्थिति में वह पीडित व्यक्ति अपने प्रतिवादी के विरुध्द कार्यवाही करने के लिए संबंधित न्यायालय में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 155 की उपधारा (2) के अंतर्गत विवेचना (मामले की छानबीन) करने का निवेदन कर सकता है।
यदि संबंधित न्यायालय द्वारा विवेचना (छानबीन) का आदेश पारित कर दिया जाता है तो, प्रतिवादी/अभियुक्तगण के विरुध्द मामले की छानबीन संबंधित थाने के थानेदार द्वारा की जा सकती है और अभियुक्तों के जरिए सम्मन न्यायालय के समक्ष तलब किया जा सकता है।
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प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज नहीं करने पर कहां—कहां शिकायत करेंः—
- अगर पीडित पक्षकार की प्रथम सूचना रिपोर्ट संबंधित थाने द्वारा किसी कारणवश नहीं दर्ज की जाती है तो एसी स्थिति में सर्वप्रथम जिले के पुलिस अधीक्षक को एक शिकायती प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया जा सकता है।
- यदि थाने द्वारा इस पर भी कोई कार्यवाही नहीं की जाती है, तो दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 154 (3) के अनुपालन में शिकायती प्रार्थना पत्र रिजास्टर्ड डाक से पुलिस अधीक्षक को भेजा जा सकता है।
- राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में भी लिखित शिकायती प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया जा सकता है।
- यदि रजिस्टर्ड डाक द्वारा भेजे गए शिकायती प्रार्थना पत्र पर भी कोई कार्यवाही न हो, तो न्यायालय पर मजिस्ट्रेट के समक्ष दं.प्र.सं. की धारा 156 की उपधारा (3) के अंतर्गत प्राथना पत्र प्रस्तुत कर प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करवाने का निवेदन किया जा सकता है।
प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करवाते समय किन बातों का ध्यान रखें:-
- घटना का सही समय लिखवाना चाहिए।
- घटना का सही स्थान।
- घटना का सही दिनांक।
- प्रथम सूचना रिपोर्ट में कभी घटना के सही तथ्यों को तोड-मरोडकर नहीं लिखाना चाहिए।
- अपराध घटित होने के बाद जितनी जल्दी हो सके प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करवाना चाहिए। क्योंकि विलम्ब से सूचना देने पर अभियुक्तगण की तरफ से प्राय: तर्क दिया जाता है। कि प्रथम सूचना रिपोर्ट सोच विचार कर तथा तथ्यों को तोड-मरोडकर मनगढंत तथ्यों के आधार पर लिखायी गई है, जिससे अभियुक्तों को संेह का लाभ मिल सकता है।
- प्रथम सूचना रिपोर्ट लिखवाने के पश्चात अंत में रिपोर्ट लिखाने वाले का नाम, पिता का नाम, पता और हस्ताक्षर भी होने चाहिए। रिपोर्ट दर्ज करने वाले अधिकारी को रिपोर्ट वादी को पढकर सुनाना चाहिए।
- रिपोर्ट लिखवाने के पश्चात रिपोर्ट की प्रतिलिपि संबंधित थाने से वादी को मुफ्त में उपलब्ध करायी जाती है।
- प्रथम सूचना रिपोर्ट में अभियुक्त का नाम और उसका विस्तृत विवरण जैसे उसका रंग, ऊंचाई, उम्र, पहनावा और चेहरे पर कोई निशान आदि जरुर लिखवाना चाहिए।
- अपराध कैसे घटित हुआ (अपराध घटित करते समय अपराधियों द्वारा प्रयोग किए जाने वाले हथियार / औजार का नाम) अवश्य दर्शाना चाहिए।
- अभियुक्त द्वारा चुरायी गयी या ली गयी वस्तुओं की सूची।
- अपराध के समय गवाहों के नाम और उनाक पता।
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प्रथम सुचना रिपोर्ट दर्ज करने के समय को लेकर नियम कानून—
किसी संज्ञेय अपराध की सूचना प्राप्ति और उस सूचना के आधार पर प्रथम सूचना रिपोर्ट के अभिलिखत करने के बीच में बहुत ज्यादा समय नहीं होना चाहिए। इसे तुरंत लिखवाना चाहिए। ऐसा न करने से प्रथम सूचना रिपोर्ट की महत्ता घट जाती है, अगर उसे अपराध के तुरंत बाद न लिखवायी जाए।
इसी संदर्भ में माननीय उच्चतम न्यायालय ने अप्रेम जोसफ के मामले में महत्वपूर्ण निर्णय दिया कि अपराध की सूचना पुलिस को देने के लिए कोई युक्तियुक्त समय अलग से तय नहीं किया जा सकता। युक्तियुक्त समय का प्रश्न एक ऐसा विषय है, जो हर मामले में न्यायालय ही फैसला करेगा।
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सार्वजनिक व्यक्ति के अलावा थाने का भारसाधक अधिकारी भी अपनी जानकारी के आधार पर प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करवा सकता है:-
- थाने का भारसाधक अधिकारी अपनी जानकारी और स्वतः की प्रेरणा से प्रेरित होकर अपने नाम से प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करवा सकता है। यदि उसकी नजर में एक संज्ञेय अपराध (गैर जमानतीय) घटित हुआ है।
- टेलीफोन के जरिए प्राप्त सूचना को प्रथम सूचना रिपोर्ट के तौर पर लिखा जा सकता है। टेलीफोन पर सूचना किसी परीचित व्यक्ति द्वारा दी गई हो, जो अपना परिचय प्रस्तुत करें, तथा सूचना में ऐसे अपेक्षाकृत तथ्य हों, जिससे संज्ञेय अपराध का घटित होना मालूम होता हो तथा जो थाने के भारसाघक अधिकारी द्वारा लिखित रुप में भी दर्ज कर लिया गया हो। ऐसी सूचना को प्रथम सूचना रिपोर्ट माना जा सकता है।
इस लेख के माध्यम से आज हमने हमारे पाठकों को प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफ.आई.आर) को आसान भाषा में समझे | Understand First Information Report (FIR) In Easy Language In Hindi इसके बारेमें संपुर्ण जानकारी देने का पुरा प्रयास किया है। आशा है आपको यह लेख पसंद आया होगा। इसी तरहा कानूनी जानकारी पाने के लिए और सिखने के लिए आप हमारे इस पोर्टल apanahindi.com पर आवश्य भेट दें।
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