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झगडों को कैसे रोकें | How To Stop Fights In Hindi

झगडों को कैसे रोकें | How To Stop Fights In Hindi


छोटी-छोटी बातों के वजह से लोगों के बिचमें झगडे होते रहते है। और उन झगडों का बडे विवादों में तब्दिल होकर मनवष्य बडे अपराध करता है। हालाकी इन छोटे मोटे झगडों को दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत दिए गए प्रतिबंधात्मक उपायों का इस्तेमाल करके इन्हे रोका जा सकता है। लेकीन लोगों इन सब बातों की जनकारी नही होनें के कारण या फिर गलत सलहा मिलने के वजाह से सहि फैसला नहीं ले पाते और कोई दुसरा अपराध कर बैठतें है। इन्ही बातों को रोकने के लिए, बडे मुश्कितालोंतों से बचने के लिए और समाजमें शांती बनाए रखने के लिए आईये इस लेख के माध्येसमे आज हम झगडों को कैसे रोकें | How To Stop Fights In Hindi इस बात कों समजनेकी कोशीश करते है।


झगडों को कैसे रोकें?

कभी—कभी छोटी सी बात के लिए लोग आपस में झगडने लगते है और यह झगडा विकराल रुप धारण कर लेता है, जो अप्रिय घटना को निमंत्रित कर लेता है। इसलिए चिंगारी भीषण आग का रुप न ले, उसे वहीं दबा देना लाभकारी होता है। अतः झगडों को रोकने दंड प्रक्रिया संहिता (सी.आर.पी.सी.) की विभिन्न धाराओं की व्यवस्था की गई है। जैसे जब किसी व्यक्ति के द्वारा लोक शांति भंग करने का कार्य किया जाता है अथवा इसकी संभावना व्यक्ति की जाती है तो उसके विरुध्द धारा 107 / 116 के अंतर्गत कार्यपाल मजिस्ट्रेट के सामने कार्यवाही कर सउसे शांति कायम करने हेतु एवं सदाचार बाए रखने के लिए जमानत सहित वचनबध्द किया जा सकता है।


यदि किसी  व्यक्ति के द्वारा किसी स्थान या मार्ग में बाधा उत्पन्न किया जाता है, जिसके गंभीर परिणाम हेने की संभावना व्यक्त की जाती है तो ऐसी स्थिति में सी.आर.पी.सी. की धारा 133 एवं 144 के तहत यह व्यवस्था की गई है, जिसमें झगडा शुरू होने से पहले रोका जा सके एवं न्यूसेंस को हटाने की व्यवस्था की जाती है। इसी प्रकार जमीन जायदाद के जबरन कब्जे को लेकर उत्पन्न विवाद को शांत करने के लिए सी.आर.पी.सी. की धारा 145 का प्रावधान है। झगडों को रोकने के लिए सी.आर.पी.सी. की मुख्य धाराएं 107/116, 133, 144 एवं 145 है।


दंड प्रक्रिया संहिता (सी.आर.पी.सी.) की धारा 107/116

धारा 107:- 

यदि किसी व्यक्ति के विरुध्द परिशांति भंग करने की संभावना व्यक्त करते हुए कार्यपालक मजिस्ट्रेट को सूचना दी जाती है तो सी.आर.पी.सी. की धारा 107 के तहत कार्यवाही की जाती है।

कार्यपालक

यदि किसी व्यक्ति के विरुध्द परिशांति भंग करने की संभावना व्यक्त करते हुए कार्यपालक मजिस्ट्रेट को सूचना दी जाती है तो सी.आर.पी.सी. की धारा 107 के तहत कार्यवाही की जाती है। कार्यपालक मजिस्ट्रेट परिशांति भंग करने वाले व्यक्ति के विरुध्द पर्याप्त आधार मिलने पर उसे नोटिस भेजकर अपना पक्ष प्रस्तुत करने के लिए कहता है कि उसे शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए क्यों नहीं उपबंधित किया जाए। इस धारा के तहत कार्यवाही कार्यपालक मजिस्ट्रेट के समक्ष तब तक चलती है, जब तक शांति व्यवस्था बहाल न हो जाए। यदि व्यक्ति झगडालू चरित्र का है और उसके व्यवहार से शांति भंग होने की संभावना है तो कार्यपालक मजिस्ट्रेट के द्वारा उसे जमानत सहित बंधपत्र भरवाकर एक वर्ष की अवधि तक अपने व्यवहार को ठीक रखकर शांति भंग नहीं करने के लिए पाबंद किया जाता है।


धारा 107 के अंतर्गत प्रार्थना पत्र दाखिल करना:-

शाति भंग करने वाले व्यक्ति के विरुध्द सी.आर.पी.सी. धार 107 के तहत दाखिल किया जाता है। प्रार्थना पत्र में लोक शांति भंग करने वाले व्यक्ति के झगडालून चरित्र होने का प्रमाण भी देना होता है, जिसके आधार पर मजिस्ट्रेट द्वारा उक्त व्यक्ति को नोटिस जारी किया जाता है, वह कारण पेश करें कि उन्हे शांति भंद करने की संभावना के आरोप में क्यों न उपबंधित किया जाए।

जब एस.डी.एम. को धारा 107 के अंतर्गत कार्यवाही करने की गुहार करते हुए प्रार्थना पत्र प्राप्त होता है तो मजिस्ट्रेट धारा 111 के अंतर्गत कार्यवाही शुरू करते हुए उस व्यक्ति को जिसके विरुध्द आरोप दाखिल किया गया है, कारण पेश करने हेतु नोटिस जारी करता है। धारा 111 के अंतर्गत शांति भंग करने वाले व्यक्ति को कारण पेश करने के लिए धारा 114 के अंतर्गत सम्मन या वारंट के माध्यम से भी नोटिस तामिल किया जा सकता है। वारंट जारी करने पर उस व्यक्ति को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया जाता है। तब इसकी जांच धारा 116 के अंतर्गत जांचः धारा 107 की कार्यवाही शुरु करते हुए धारा 116 के अंतर्गत शांतिभंग करने संबंधी साक्ष्य लेखबध्द किया जाता है तथा इसकी कार्यवाही छः माह के अंदर पूरी करने का प्रयास किया जाता है, क्योंकि छः महीने पूरे हो जाने पर यह कार्यवाही स्वतः समाप्त हो जाती है।


धारा 107 के तहत जमानत दाखिल करना:-

धारा 116 के अंतर्गत जांच पूरी होने के बाद उक्त शांति भंग करने वाले व्यक्ति को शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए धारा 117 के अंतर्गत आदेश दिया जाता है कि वह बंध पत्र एवं जमानत के साथ एक वर्ष तक शांति बनाए रखें।


धारा 107 / 117 की कार्यवाही का एक दृष्टांत:-

यदि कोई व्यक्ति क अपने पडोसी ख की शांति भंग करता है तथा समझाने पर भी नहीं मानता है तो क विरुध्द परिशांति भंग करने के एवं शांति कायम करने की गुहार करते हुए ख एस.जी.एम. के न्यायालय में प्रार्थना पत्र दाखिल करता है। जिसे धारा पत्र का अवलोकन कर उससे संतुष्ट होकर एस.डी.एम. धारा 111 के तहत ख को नोटिस जारी करता है। यदि नोटिस की तामिल सम्मन या गिरफ्तारी शांति कायम करने के हित में हो, गिरफ्तारी वारंट किया जा सकता है अन्यथा नहीं। इसके बाद धारा 116 के तहत कार्यवाही शुरु की जाती है। कार्यवाही पूरी होने पर यदि ख के विरुध्द शांति भंग करने की संभावना सही साबित होती है तो धारा 117 सी.आर.पी.सी. के अंतर्गत एक वर्ष या एक निश्चित अवधि के लिए ख से शांति कायम रखने हेतु बंध पत्र जमानत ली जाती है।


चोरी जैसे अपराध को रोकने संदेहास्पद व्यक्ति पर जमानत द्वारा पाबंदी रखना:-

जिस व्यक्ति पर यह आशंका हो कि वह चोरी जैसे अपराध को अंजाम दे सकता है, उस पर पाबंदी लगाने के लिए धारा 109 और नंबरी बदमाशों के लिए धारा 110 के तहत उनके विरुध्द पुलिस द्वारा रिपोर्ट पेश की जाती है, जिस पर एस.डी.एम. द्वारा धारा 107 की कार्यवाही की तरह पूरी कार्यवाही के बाद धारा 11 के तहत जमानत दाखिल करने का आदेश जारी किया जाता है।


सार्वजनिक मार्ग में रुकावट, सार्वजनिक स्वास्थ्य को खतरा एवं दूसरे प्रकार के लोक न्यूसेंस का निवारण:-

जब कोई व्यक्ति सार्वजनिक मार्ग में रुकावट डालता है अथवा सार्वजनिक स्वास्थ को खतरा पहुंचाता है या दूसरे प्रकार का लोक न्यूसेंस पैदा करता है तो इसके निवारण के लिए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 133 की व्यवस्था की गई है। इस धारा के तहत न्यूसेंस हटाने के सशर्त आदेश इस प्रकार है—
    1. किसी सार्वजनिक स्थान या मार्ग, नदी या जलखंड से जो जनता द्वारा उपयोग में लायी जा सकती है, कोई विधि विरुध्द बाधा या न्यूसेंस हटाया जाना चाहिए।
    2. किसी व्यापार या उपजीविका को चलाना या माल या व्यापारिक वस्तु को रखना समाज के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। उसे रखना निषिध्द किया जाना चाहिए।
    3. किसी भवन निर्माण या किसी विस्फोटक का व्ययन जिससे खतरा पैदा हो सके तो उसे बंद कर दिया जाना चाहिए।
    4. कोई मकान या संरचना या वृक्ष इस दशा में हो कि उसके गिरने से पडोसी को क्षति की संभाना हो तो उसकी मरम्मत या उसे हटाने की व्यवस्था की जानी चाहिए।
    5. किसी मार्ग या सार्वजनिक स्थान के पास स्थित तालाब, कुएं या खड्डे जिससे जनता को खतरा होने की संभावना हो, उसमें बाड लगाना चाहिए, ताकि खतरे का निवारण हो।
    6. किसी भयानक जंतु से लोक स्वास्थ्य को खतरा हो तो उसे नष्ट या व्ययन किया जाना ताहिए। उपरोक्त दशाओं से संबंधित व्यक्ति से सशर्त आदेश द्वारा खतरे के निवारण की अपेक्षा की जाती है। यदि संबंधित व्यक्ति को किसी आदेश को मानने में कोई आपत्ति है तो वह कार्यपालक मजिस्ट्रेट के समक्ष उपस्थित होकर आपत्ति के कारण उपबंधित प्रकार से उपस्थित करें।

नोट—सार्वजनिक स्थान के अंतर्गत राज्य की संपंत्ति, पडाव के मैदान और स्वच्छता या आमोद—प्रमोद के लिए खाली छोडे गए मैदान भी है।


लोक न्यूसेंस हटाने की प्रक्रिया—

किसी व्यक्ति के द्वारा सार्वजनिक रास्ते या स्थान में रुकावट डाला जाता है अथवा लोक स्वास्थ्य को खतरा पैदा किया जाता है अथवा अन्य प्रकार का लोक न्यूसेंस पैदा किया जाता है तो उसके विरुध्द धारा—133 के तहत एस.डी.एम. के न्यायालय में प्रार्थना पत्र के द्वारा किया जाता है जिस पर न्यायालय द्वारा उक्त न्यूसेंस को हटाने का आदेश दिया जाता है। यदि संबंधित व्यक्ति को आदेश मानने से आपत्ति है तो वह अपनी आपत्ति का कारण न्यायालय में उपस्थित होकर दिखाता है। ऐसा नही करने पर भा.दं.वि. की धारा 188 के अंतर्गत न्यायालय के आदेश की अवहेलना के अपराध के लिए व्यक्ति के लिए विरुध्द मुकदमा चलाया जा सकता है। जब उक्त व्यक्ति न्यायालय में उपस्थित होकर पब्लिक रास्ता होने से इंकार करता है। तो न्यायालय द्वारा रुकावट हटाने के लिए धारा—136 के तहत आदेश जारी किया जाता है। 


दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा—144 के अंतर्गत रुकावट हटाने की व्यवस्था—

दं.प्र.सं. की धारा 144 के तहत अविलंम्ब रुकावट हटाने के आदेश जारी करने की व्यवस्था है—
    1. इस धारा के तहत उन मामलों में रुकावट तुरंत हटाने का आदेश जारी किया जाता है, जिनमें जिला मजिस्ट्रेट या उपखंड मजिस्ट्रेट या राज्य सरकार द्वारा नियुक्त कार्यपालक मजिस्ट्रेट की राय में कार्यवाही करने हेतु पर्याप्त आधार हो तथा रुकावट तुरंत हटाना वांछनीय हो।
    2. इस धारा के तहत आपात की दशांओं में या उन दशाओं में जब परिस्थितियों में ऐसी है की उस व्यक्ति पर जिसके विरुध्द आदेश निर्दिष्ट है, सूचना की तमील सम्यक समय में करने की गुंजाईश न हो, एक पक्षीय रुप में आदेश पारित किया जा सकता है।
    3. इस धारा के तहत किसी विशिष्ट व्यक्ति को या किसी विशेष स्थान या क्षेत्र में निवास करने वाले व्यक्तियों को अथवा आम जनता को, जब वे किसी विशेष स्थान क्षेत्र में जाते है, या जाएं निषिध्द किया जा सकता है।
    4. इस धारा के तहत कोई आदेश उस आदेश के दिए जाने की तारीख से दो माह से आगे प्रवृत्त नहीं करेगा, किंतु यदि राज्य सरकार मानव जीवन या स्वास्थ को होने वाले खतरे का निवारण या किसी बलवे या दंगे का निवारण करने के लिए ऐसा करना आवश्यक समझती है तो अधिक से अधिक महीने की अतिरिक्त अवधि के लिए उक्त आदेश प्रभावी हो सकता है।
    5. कोई मजिस्ट्रेट स्वप्रेरणा से या किसी व्यक्ति के आवेदन पर इस आदेश को परिवर्तित कर सकता है, जो स्वयं उसने या उसके पूर्ववर्ती या अधीनस्थ ने धारा 144 के तहत जारी किया  है।
    6. राज्य सरकार उपधारा 4 के परंतु – क, के अधीन अपने द्वारा किये गए आदेश को या तो स्वप्रेरणा से या किसी व्यक्ति के आवेदन पर परिवर्तित कर सकती है।
    7. जहां उपधारा 5 या उपधारा 6 के अधीन आवेदन प्राप्त होता है, वहां यथास्थिति मजिस्ट्रेट या राज्य सरकार आवेदक का या तो स्वयं या वकील के द्वारा उसके समक्ष उपस्थित होने और आदेश के विरुध्द कारण दर्शित करने पर उसके कारणों को लेखबध्द किया जाता है।

अचल संपत्ति को लेकर उत्पन्न विवाद के निवारण हेतु धारा 145—

जब किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट के पास पुलिस अधिकारी की रिपोर्ट या अन्य इत्तिला द्वारा यह उल्लेख किया जाता है कि उसकी संपत्ति की स्थानीय अधिकारिता के अंदर किसी भूमि या जल या उसकी सीमाओं से संबंध्द ऐसा विवाद विद्यमान है, जिससे परिशांति भंग होने की संभावना है। न्यायालय द्वारा धारा 145 की कार्यवाही कर झगडे का निवारण किया जाता है। इस धारा के प्रयोजनों के लिए भूमि या जल पद के अंतर्गत भवन, बाजार, मछली का क्षेत्र, फसलें भूमि की अन्य उपज आम है।


धारा 145 के अंतर्गत की जाने वाली कार्यवाही—

जब कोई व्यक्ति किसी अचल संपत्ति के कब्जे को हटाने का प्रयास करता है और इस प्रकार की शांति भंग होती है तो ऐसे व्यक्ति के विरुध्द अशांति को रोकने और कब्जे में किसी प्रकार की गडबडी करने से रोकने के लिए एस.डी.एम. के पास दं.प्र.सं. की धारा 145 के अंतर्गत प्रार्थना पत्र देकर कार्यवाही की जा सकती है। एस.डी.एम. द्वारा इस धारा के अंतर्गत दाखिल प्रार्थना पत्र की जांच रिपोर्ट से पुष्टि होने  पर एस.डी.एम. दोनों पक्षों को नोटिस भेजते हैं कि वे न्यायालय में उपस्थित होकर अपने—अपने पक्ष प्रस्तुत करें। दोनों पक्षों का साक्ष्य लेने के बाद न्यायालय यह मत व्यक्ति करता है कि अचल संपत्ति पर झगडे की तिथि तथा उसे दो माह पहले से किस पक्षकार का कब्जा था और इस तरह कब्जे को उस व्यक्ति का कायम रखते हुए ऐसा आदेश पारित किया जाता है कि झगडे को लेकर शांति भंग होने की संभावना व्यक्त की गई थी, उसका निवारण हो सके।

कोई भी झगडा अपराध का रुप न धारण कर ले, उससे पहले उसका निवारण आवश्यक है। झगडों के निवारण हेतु उपरोक्त धाराओं के तहत एस.डी.एम. के पास प्रार्थना पत्र दिया जा सकता है।


इस लेख के माध्यमसे आज हमने हमारे पाठकों को झगडों को कैसे रोकें | How To Stop Fights In Hindi इसके बारेमें जानकारी देनेका पुरा प्रयास किया है। आशा है आपको यह लेख पसंद आया होगा। इसीतरह कानून जानकारी सिखने के लिए और समझने के इये आप हमारे इस पोर्टल apanahindi.com पर आवश्य भेट दें।




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