न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948 | Minimum Wages Act 1948
न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948 | Minimum Wages Act 1948 यह भारतय संसद द्वारा पारित किया गया श्रम कानून है जो कुशल तथा अकुशल श्रमिकों को दी जाने वाली मजदूरी का निर्धारण करता है आईये इस लेख के माध्यमसे आज हम न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948 | Minimum Wages Act 1948 इसके बारेमं महत्वपुर्ण जानकारी हासिल करनेकी कोशिश करते है।
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अधिनियम के अंतर्गत परिभाषाए:-
1. मजदूरी :-
इस अधिनियम के अनुसार मजदूरी का अर्थ उस धन से है, जो किसी भी व्यक्ति द्वारा किसी दूसरे व्यक्ति के लिये किये गये श्रम के बदले प्राप्त होती है। मजदूरी के अंतर्गत घर का किराया भी आता है, लेकिन मजदूरी के अंतर्गत कुछ ऐसी चीजें नहीं आती। जैसे- गृहवास सुविधा, बिजली व पानी का खर्च, पेंशन या भविष्य निधि, यात्रा का खर्चा और ग्रेच्युटी इत्यादि।
2. क्रमचारी :-
इस अधिनियम के अंतर्गत वह व्यक्ति कर्मचारी माना जाता है, जो भाडे या पारिश्रमिक के लिए चाहे वह कुशल या अकुशल कार्य शारीरिक या लिपिकिय कार्य करता हो, जिसकी न्यूनतम मजदूरी निर्धारित की जा चुकी हो। इसमें वह बाहरी मजदूर भी आते है जो किसी भी प्रकार के परिसर में निम्नलिखित कार्य करते है:-
- वस्तु को बनाने का कार्य करता हो।
- साफ करने का कार्य करता हो।
- मरम्मत करता हो।
- वस्तु को बेचता हो। या
- हाथ से किया गया क्लर्क(लिखा—पढा) का कार् करता हो।
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3. नियोजक/मालिक:-
इस अधिनियम के अंतर्गत नियोजक या मालिक वह व्यक्ति कहलाता है जो किसी कर्मचारी को कोई कार्य करने के लिए स्वयं या दूसरे के द्वारा उन प्रतिष्ठानों में जिने पर न्यूनतम मजदूरी अधिनियम लागू होता है, कार्य पर लगाता है।
- इसके अतिरिक्त फैक्ट्री मालिक या मैनेजर।
- कोई भी ऐसा कार्य जिसका नियंत्रण सरकार के हाथो में है वहॉ पर सरकार द्वारा नियंत्रण एवं देखरेध के लिये नियुक्त व्यक्ति मालिक कहा जावेगा और जहॉ ऐसे किसी व्यक्ति की नियुक्ति नही हुई है, वहॉ उस विभाग का प्रधान अधिकारी मालिक कहा जायेगा।
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मजदूरी की न्यूनतम दर क्या है?
मजदूरी की न्यूनतम दर को सरकार समय—समय पर तय करती है। यह न्यूनतम दर रहने के खर्च के साथ भी हो सकती है और उसके बिना भी।
सरकार हर पॉच वर्ष के अंतराल पर मजदूरी की न्यूनतम दर तय करेगी।
वेतन के स्थान पर वस्तु:-
इस अधिनियम के अंतर्गत वेतन—भत्ता रुपये में दिया जायेगा लेकिन अगर सरकार को ऐसा लगता है कि किसी क्षेत्र में यह रीति – रिवाज चली आ रही है कि काम के बदले धन की जगह वस्तु प्रदान की जाती है तो सरकार इसे अधिसूचित कर सकती है। आवश्यक वस्तुओं को रियायती दरों पर देने के लिए प्रावधान बनाया जाना जरुरी हो तो वह ऐसा कर सकती है।
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कार्य पर अतिरिक्त समय:-
कोई मजदूर जिसकी न्यूनतम मजदूरी इस अधिनियम के अंतर्गत घंटे, दिन इत्यादी के अनुसार तय की गई हो, अगर अपने काम के साधारण समय से ज्यादा काम करता है तो मालिक अतिरिक्त समय (ओवरटाईम) का वेतन भी मजदूर को देगा।
असमान कार्यों के लिए न्यूनतम वेतन:-
अगर कोई मजदूर एक से ज्यादा कार्य करता है तो एक समान नहीं है और जिनकी न्यनतम मजदूरी की दर भी एक समान नहीं होती तो मालिक को उसके कार्य के समय के अनुसार उस संबंधित कार्यकी उपलब्ध न्यूनतम मजदूरी देनी होगी।
अगर किसी कार्य की मजदूरी वस्तु बनाने पर आधारित है एवं उसकी न्यूनतम मजदूरी समय पर आधारित है तो मालिक को उस समय की तय न्यूनतम मजदूरी देनी होगी। इस अधिनियम के अंतर्गत मजदूरों के द्वारा किये जाने वाले काम के घंटे भी तय किये जायेंगे और मजदूरों को सप्ताह में एक दिन छुट्टी भी दी जायेगी।
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रजिस्टर एवं रिकार्ड आदि का रखना:-
प्रत्येक मालिक का यह कर्तव्य है कि वह अपने यहॉं काम करने वाले मजदूरों के बारें में जानकारी देगा और उनके द्वारा किया जाने वाला काम और उनको मिलने वाली मजदूरी आदि को रजिस्टर में दर्ज करेगा।
निरिक्षक:-
सरकार न्यूनतम मजदूरी अधिनियम के अंतर्गर निरीक्षक नियुक्त कर सकती है और उसके कार्य करने के अधिकार शक्तियॉ और सीमाओं को निशित कर सकती है। निरीक्षक किसी भी स्थान जहॉं मजदूर काम करते हों, वहां निरीक्षण कर सका है, किसी भी रिकार्ड को जप्त कर सकता है और उस रिकार्ड की छाया प्रति भी ले सकता है। निरीक्षक इस बात की भी जानकारी ले सकता है कि मजदूरी की न्यूनतम दर क्या है।
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दावे:-
यदि किसी मजदूर को उसकी मजदूरी की न्यूनतम दर नहीं मिलती है तो वह श्रम—आयुक्त के सामने इसकी शिकायत कर सकता है। सरकार श्रम—आयूक्त की नियुक्ति करेगी। मजदूर इस अधिनियम के अंतर्गत अपने दावे के लिये खुद अपना पक्ष प्रस्तुत कर सकता है, उसे वकील की आवश्यकता नहीं है। अगर वह चाहे तो किसी वकील को या किसी मजदूर यूनियन के अधिकारी को अपने दावे को प्रस्तुत करने के लिए नियुक्त कर सकता है लेकिन यह जरुरी है कि जिस दिन से न्यूनतम मजदूरी की दर न मिली हो आवेदन उस दिन से छः महीने के भीतर पेश किया गया हो।दावे का आवेदन सम्मिलित होने के बाद श्रम—आयुक्त मजदूर और मालिक के पक्ष को सुनेगा और पूरी जॉंच के बाद निर्देश देगा।
श्रम आयुक्त मजदूर (आवेगनकर्ता) को यह रकम यदि उसे न्यूनतम मजदूरी से कम मिली हो तो देने का निर्देश दे सकता है और साथ ही मुआवजा भी दिला सकता है, जो कि ऐसे रकम से 10 गुना से ज्यादा नहीं होगी।
आवेदन पर सुनवाई करने वाले अधिकारी को दीवानी न्यायालय के समान माना जावेगा और वह सारी प्रक्रिया जो दीवानी मुकदमों में होती है, वही प्रक्रिया चलेगी। इस अधिनियम के अंतर्गत सुनवाई करने वाले अधिकारी का निर्णय अंतिम होगा।
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जुर्म के लिए दंड:-
अगर कोई भी मालिक किसी भी मजदूर को इस अधिनियम के अनुसार न्यूनतम मजदूरी नहीं देता है तो उसे छः महीने की जेल या 500/- रुपये का जुर्माना दोनों हो सकता है।
इस लेख के माध्यम से आज हमने हमारे पाठकों को न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948 | Minimum Wages Act 1948 इसके बारेमें महत्वपुर्ण जानकारी देनेका पास प्रयास किया है। आशा है आपको यह लेख पसंद आया होगा। इसी तरह कानूनी जानकारी सिखने के लिए आप हमारे इस पोर्टल apanahindi.com पर आवश्य भेट दें।
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