चैकों का अनादरण क्या है?| What is dishonor of cheques?
आजकल बडे से बडे व्यापारों में कानूनी लेन-देन दिखलानेके लिए चैकों के जरिये व्यावहार किया जा राहा है। जिससे रुपया हाथ के बजाय सिधे बैंको में जमा हो जाता है। जब चैकों से व्यावहार होता है तब चैकों का अनादरिकरण होने की संभावना जादा होती है। जिससे देनदार को पैसा नही मिलता। ऐसे परिस्थिती में क्या करना चाहिए। आइये आज हमा इस लेख के माध्यम से चैकों का अनादरण क्या है?| What is dishonor of cheques? इसके बारेमें जानकारी हासिल करने की कोशिश करते है।
- यह भी पढे-झूठा शपथ पत्र देने पर सजा
चैकों का अनादरण क्या है? :-
आज के युग में प्रायः लेने –देने का कार्य बैंकों के माध्यम से किया जाना अधिक सुविधापूर्ण हो चुका है। बैंक एक वैश्वासिक संस्थान है, जो आपके मध्य हुए अनुबंध शर्तों के अध्यधीन आपके खाते में जमा राशि को आपके आदेशानुसार ही आहरित कर आपको अथवा आपके द्वारा आदेशित व्यक्ति को भुगतान करता है। जमा धन का आहरण बैंक निकासी फार्म, बैंक चैक या एटीएम के माध्यम से किया जा सकता है। इन सबमें चैकों का महत्वपूर्ण एवं अहम भूमिका होता है, जिसके मध्यम से आप स्वयं ही नही वरना अन्य किसी व्यक्ति को भी किसी लिए गए ऋण या अन्य दायित्व के पूर्णतः या अंशतः उन्मोचन के लिए किसी बैंक में अपने खाते में जमा राशि में से जो उक्त बैंक के साथ अनुबंधित ठहराव के लिए पर्याप्त हो, छोडकर बचत राशि में से भुगतान हेतु ऐसे व्यक्ति के पक्ष में चैक जारी कर सकते हैं। यदि आपके द्वारा लिखा गया चैक, बैंक द्वारा बिना भुगतान किए गए इस कारण वापस लौटा दिया जाता है कि आपके खाते में भुगतान हेतु पर्याप्त धन राशइ नही है या उस रकम से अधिक है, जिसका बैंक के साथ किए गए करार के द्वारा उस खाते में से संदाय करने का ठहराव किया गया है, तो आपका यही कृत्य चैक के प्रति अनादरण अर्थात उपेक्षापूर्ण आचरण होगा। जो धारा 138 चैकों का अनादरण अधिनियम अर्थात पराक्रम्य निखत अधिनियम के अंतर्गत दंडनीय अपराध है।
- यह भी पढे- कोर्ट में प्राइवेट कंप्लेंट कैसे फाइल करे?
पीडित व्यक्ति के लिए ध्यान देने योग्य बातें:-
पीडित व्यक्ति अत्थात जिसके पक्ष में जरी चैक की अनादरित होने की सूचना सहित उक्त चैक बिना भुगतान किये बैंक द्वारा वापस लौटा दी जाती है, तो ऐसे व्यक्ति को चैक जारीकर्ता के विरुध्द न्यायालय में परिवाद संस्थित करने के पूर्व चैक अनादरण के संबंध में निम्नलिखित आवश्यक तत्व को ध्यान में रखा जाना जाहिएः-
चैक अनादरण के आवश्यक तत्वः-
अधिनियम के तहत अपराध के गठन हेतु आवश्यक है।
- चैक ऋण के संपूर्ण अथवा आंशिक उन्मोचन अथवा अन्य किसी दायित्व के संबंध में राशि भुगतान हेतु होना चाहिए।
- चैक बिना भुगतान किए बैंक द्वारा वापस आया हो।
- चैक के भुगतान होने के कारण धन की अपर्याप्तता अथवा खाते में से भुगतान की व्यवस्था की गई राशि से अधिक हो।
- यह भी पढे- चेक बाउन्स का केस कैसे करे?
अधिनियम में दिए गए परन्तुक यह भी अपेक्षा करते हैं कि –
(क) बैंक में चैक को उस दिनांक से छह माह के भीतर प्रस्तुत किया जाना चाहिए, जिस पर कि इसको लिखा गया था अथवा इसकी विधिमान्यता की अवधि के भीतर जो भी पहले हो, इसे प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
(ख) भुगतान पाने वाले अथवा सम्यक, अनुक्रम में बँक के धारक को चैक के अधीन होने वाली राशि की मांग बैंक से चैक के अनादरण के संबंध में जानकारी प्राप्त होने के 15 दिनों के भीतर लेखीवाल अर्थात चैक जारीकर्ता से करना चाहिए।
(ग) चैक का लेखीवाल कथित सूचना के 15 दिनो के भीतर राशि का भुगतान करने में विफल रहा हो।
अपराधों का संज्ञानः—
अधिनियम की धारा 142 के उपबंध के अनुसार दं.प्र.सं. 1973 (1974 का 2) के किसी बात के होते हुए भीः—
(क) कोई भी न्यायलय धारा 138 के अधीन दंण्डनीय किसी अपराध का संज्ञान, चैक के पाने वाले या धारक द्वारा सम्यक अनुक्रम में किये गए लिखित परिवाद पर ही करेगा अन्यथा नहीं।
(ख) ऐसा परिवाद उस तारीक के एक माह के भीतर किया जाता है, जिसको धारा 138 के परन्तुक के खण्ड (ग) के अधीन वाद हेतु उद्भुत होता है। परन्तु यह कि विहित अवधि के उपरांत न्यायालय के द्वारा परिवाद पर संज्ञान लिया जा सकेगा, यदि परिवादी न्यायलय को यह संतुष्ट कर देता है कि ऐसी अवधि के भीतर परिवाद न करने का उसके पास समुचित कारण था।
(ग) महानगर मजिस्ट्रैट या प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रैट के न्यायालय से और कोई न्यायालय धारा 138 के अधीन दंडनीय किसी अपराध का विचारण नहीं करेगा।
- यह भी पढे- मौलिक कर्तव्य | Fundamental Duties
न्यायालय की क्षेत्रीय अधिकारिताः—
मामला संस्थित करने की क्षेत्रीय अधिकारिता के संबंध में न्यायदृष्टांत मुरलीधरन बनाम परीद (1992 भाग – 1 केरल लॉ टाइम्स - ) के मामले मे यह प्रकट किया गया है कि परिवाद पेश करने हेतु निम्न स्थानों पर वाद कारण उत्पन्न होता हैः—
- जहां से चैक जारी किया गया था, अथवा
- जहां चैक परिदान किया गया था, अथवा
- वह स्थान जाहां पर की व्यक्त रुप से अथवा विवक्षित रुप से राशि भुगतान योग्य हो।
उपरोक्तानुसार न्यायालय जिसकी अधिकारित के अधीन उपरोक्त वर्णित स्थानों में से कोई स्थान आता है, को अधिनियम की धारा 138 के अंतर्गत अपराध का विचारण करने की अधिकारिता होगी।
इस लेख के माध्यम से आज हमने हमारे पाठकों को चैकों का अनादरण क्या है?| What is dishonor of cheques? इसके बारेमें जानकारी देनेका पुरा प्रयास किया है। आशा है आपको हमारा यह लेख पसंद आया होगा। इसी तरह के कानूनी जानकारी हासिल करने के लिए और सिखनेके लिए। आप हमारे इस पोर्टल apanahindi.com पर आवश्य भेट दें।
यह भी पढे
- सभि दस्तावेजोका संपूर्ण मार्गदर्शन | Deeds And Documents
- दस्तावेजो के नमुने | प्रारूप | Format of Deeds ans Documents
- चेक बाऊन्स केसेस संबंधीत संपूर्ण मार्गदर्शन | Cheque Bounce Case Procedure
- पारिवारिक कानून को सिखे और समझे | Family Law in Hindi
- फौजदारी कानून का संपूर्ण मार्गदर्शन | Criminal Law In Hindi
- भारतीय दंड संहिता (I.P.C.) को सिखे और समझे
- सिविल कानून का मार्गदर्शन | Civil Law
- सामाजिक और कानूनी लेख तथा मार्गदर्शन | Social And Legal Articals
थोडा मनोरंजन के लिए
0 टिप्पणियाँ