उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 क्या हैं | what is consumer protection act 1986
भारतीय संविधान के अंतर्गत उपभोक्ताओं को शोषण, मिलावटी वस्तुओं और सेवाओं की कमी से संरक्षण देने के लिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम बनाया गया है। इस अधिनियम का उद्देश्य है कि प्रत्येक उपभोक्ता को शीघ्र व सरल तरीकों से कम धन खर्च करके न्याय मिल सके। इसीके बारेमें जानकारी हासिल करनेके लिये आईये इस लेख के माध्यमसे आज हम उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 क्या हैं | what is consumer protection act 1986 इसके बारेमें संपुर्ण जानकारी हासिल करते है।
उपभोक्ता फोरम वस्तु की कीमत और कार्यवाही का वाद कारण पैदा होने के स्थान के आधार पर तीन प्रकार के होते हैः-
1. जिला उपभोक्ता फोरमः-
प्र्येक जिले में उपभोक्ता विवाद विचारण फोरम का गठन किया गाय है। उपभोक्ता द्वारा 20 लाख तक की कीमत के लिए क्षतिपूर्ति का दावा जिला उपभोक्ता फोरम में शिकायत दर्ज करके किया जा सकता है। जिला उपभोक्ता फोरम का एक अध्यक्ष होता है एवं दो सदस्य होते है, जिनमें से एक महिला सदस्य एवं एक पुरुष का होना अनिवार्य है।
2. राज्य उपभोक्ता कमीशनः-
राज्य उपभोक्ता विवाद कमीशन प्रत्येक राज्य में होता है। जब वस्तु की कीमत, सेवा अथवा प्रतिकर (मुआवजा) 20 लाख से 1 करोड रुपये तक हो तो, राज्य उपभोक्ता कमीशन में शिकायत कर सकते है।
3. राष्ट्रीय उपभोक्ता कमीशनः-
राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण कमीशन का क्षत्राधिकार 1 करोड रुपये से भी अधिक मूल्य की वस्तु सेवा या प्रतिकर (मुआवजा) के लिए होता है।
शिकायत कहां दर्ज कराई जा सकती हैः-
- जहां पर वाद का कारण पैदा हुआ हो।
- जहां दूसरा पक्ष रहता हो।
- जहां दूसरा पक्ष अपना व्यवसाय करता हो।
शिकायत कौन व्यक्ति कर सकता हैः—
कोई भी उपभोक्ता जब कोई सामान खरीदता है, और उसमें खराबी या कमी होने के कारण उसका नुकसान होता है, या कोई सेवा उपलब्ध कराने के लिए उसे फीस देता है और उस सेवा में कमी होती है, तो उपभोक्ता फोरम में शिकायत दर्ज करवा सकता है, या दावा दायर कर सकता है।
यद्यपि अधिनियम में डाक्टर, वकील आदि का उल्लेख नहीं है, परंतु जब ऐसे व्यवसायिक व्यक्तियों को पैसा देकर सेवा प्राप्त की जाती है और उसमें कमी होने के कारण नुकसान होता है, तो उसके विरुध्द भी उपभोक्ता फोरम में शिकायत की जा सकती है।
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शिकायत के लिए आवेदन पत्र कौन दे सकता हैः—
- कोई भी उपभोक्ता
- कोई भी उपभोक्ता संघ जो कि भारतीय कम्पनीज अधिनियम 1956 के अंतर्गत रजिस्टर्ड हो।
- राष्ट्रीय अथवा राज्य सरकार
- कोई उपभोक्ताओं के समान हित के लिए कोई एक या अधिक उपभोक्ता।
शिकायत में निम्नलिखित सूचनाएं होनी चाहिएः—
- शिकायतकर्ता का नाम और पता
- दूसरे पक्ष का नाम और पता आरोपी के समर्थन में निम्नलिखित दस्तावेजों का होना आवश्यक है।
- कोई भी सामान या वस्तु खरीदने की पक्की रसीद पूर्ण विवरण सहित।
- वारण्टी कार्ड की छायाप्रति
- शिकायतकर्ता द्वारा मांगा गया प्रतिकर (मुआवजा)
- शिकायतकर्ता या उसके एजेंट द्वारा शिकायती प्रार्थना पत्र पर नाम, पता और हस्ताक्षर।
इस अधिनियम के अंतर्गत शिकायत करने का तरीका अत्यंत सरल है। कोई भी उपभोक्ता शिकायतकर्ता के रुप में स्वय या अपने प्रतिनिधि द्वारा शिकायत कर सकता है। शिकायत डाक द्वारा भी भेजी जा सकती है। शिकायत करने के लिए कोई शुल्क नहीं देना होता है और न ही किसी वकील की आवश्यक्ता होती है। शिकायतकर्ता स्वयं अपना पक्ष प्रस्तुत कर सकता है।
उपभोक्ता का अधिकारः—
जब वस्तु के दोष या सेवा में कमी सिध्द हो जाती है, तब उपभोक्ता को निम्नलिखित अधिकार होते हैः—
- दोष वाली वस्तु के बदले दोष रहित नई वस्तु लेना या,
- वस्तु सेवा के लिए दिया गया पैसा वापस लेना, या
- नुकसान या क्षति के लिए प्रतिकर (मुआवजा) लेना, या
- उपभोक्ता द्वारा खरीदे गए सामान या वस्तु के कारण हुई मानसिक क्षति का भी दावा कर सकता है।
शिकायत करने की समय सीमाः—
उपभोक्ता द्वारा वस्तु में दोष पाए जाने से सेवा से नुकसान होने के दो साल के भीतर शिकायत की जा सकती है, परंतु फोरम इसके बाद शिकायत करने की अनुमति दे सकता है, अगर देरी का कारण उचित हो।
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अपीलः-
जिला उपभोक्ता फोरम के विरुध्द अपील राज्य उपभोक्ता कमीशन में, राज्य उपभोक्ता कमीशन के विरुध्द अपील राष्ट्रीय उपभोक्ता कमीशन में की जाती है और राष्ट्रीय उपभोक्ता कमीशन के विरुध्द उच्चतम न्यायालय में की जाती है। अपील, आदेश के तीसदिन के भीतर की जा सकती है। अपील के साथ आदेश की प्रमाणित छायाप्रति भी लगाना जरुरी है।
इस लेख के माध्यम से आज हमाने हमारे पाठकों को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 क्या हैं | what is consumer protection act 1986 इसके बारेमें जानकारी देनेका पूरा प्रयास किया है। आशा है आपको यह लेख पसंद आया होगा। इसी तरहा कानूनी जानकारी सिखने के लिये आप हमारे इस पोर्टल apanahindi.com पर आवश्य भेट दें।
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