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दहेज निवारण कानून क्या है | दहेज क्या है? | दहेज अपराध के लिए दण्ड की व्यवस्था | दहेज अपराध के लिए न्यायालय द्वारा संज्ञान | क्रूरता की परिभाषा क्या है

दहेज निवारण कानून क्या है | दहेज क्या है? | दहेज अपराध के लिए दण्ड की व्यवस्था | दहेज अपराध के लिए न्यायालय द्वारा संज्ञान | क्रूरता की परिभाषा क्या है


परिचय

दहेज प्रथा भारतीय समाज में कोढ में खाज का काम कर रही है। दहेज के कारण बेटी का जन्म लेना मां-बाप के लिए अभिशाप बन जाता है। जहां पर बेटों के जन्मपर खुशियां मनाई जाती है वहीं बेटीयों के जन्म होने पर मातम मनाया जाता है। मां-बाप की लाचारी को देखकर हजारों लडकियां आत्महत्या कर लेती है। शादी के समय दहेज में अच्छी खासी रकम नहीं मिलने पर वर पक्ष द्वारा वधुओं को कष्ट दिया जाता हैं। दहेज के कारण वधुओं के द्वारा आत्महत्या की खबरें अक्सर समाचार पत्रों में एवं टी.वी. न्यूज चैनल पर देखने को मिलती है। आईये इस लेख के माध्यम से आज हम दहेज निवारण कानून क्या है | दहेज क्या है? | दहेज अपराध के लिए दण्ड की व्यवस्था | दहेज अपराध के लिए न्यायालय द्वारा संज्ञान | क्रूरता की परिभाषा क्या है इसके बारेमें जानने की कोशइश कते है।


“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते। रमन्ते तत्र देवता”
इस उक्ति में विश्वास करने वाले समाज में नारियों को जलाना केवल अपराध ही नहीं बल्कि महापाप है।

दहेज प्रथा का उन्मूलन केवल कानून से संभव नहीं है, इसके लिए सामाजिक चेतना की जरुरत है। इस क्रुप्रथा को समाप्त करने के लिए 1961 में दहेज प्रतिशेध अधिनियम पारित किया गया, जिसमें दहेज लेना, दहेज देना या दहेज मांगने के लिए अभिर्पेरित करना आदि को अपराध के घेरे में लेकर अपराधियों को सजा दिलाने का प्रावधान किया गाया है, लेकिन इस अधिनियम का कोई कारगर असन नहीं हुआ। समय-समय पर इसमें संशोधन करके इस प्रथा पर कठोर नियंत्रण लाने की चेष्टा की गई। क्रिमिनल लॉ (द्वितीय संशोधन) अधिनियम 1983 जो 25 सितम्बर 1983 को प्रभावी हुआ, के द्वारा- पति और उसके संबंधियों को सजा देने की व्यवस्था की गई, जिन्हे स्त्री के साथ क्रुरता के व्यवहार को दोषी पाया गया। वर्ष 1984 में दहेज प्रतिषेध (वर-वधू को दिये गए उपहारों की सूची का रखरखाव) नियम 1984 पारित करके उपहार के नाम पर दहेज लेने की प्रवृत्ति पर रोक लगाने का प्रयास किया गाया। पुनः वर्ष 1986 में दहेज प्रतिषेध (संशोधन) अधिनियम 1986 द्वारा दहेज मृत्यु को परिभाषित करके उसके लिए कडी सजा की  व्यवस्था की गई। दहेज मृत्यु कारित ने करने का साक्ष्य अधिभार भी अभियुक्त पर रखें जाने का प्रावधान किया गाया।

दहेज क्या है?

दहेज को परिभाषित करते हुए दहेज प्रतिषेध अधिनियम में कहा गाया है कि वह विवाह के लिए विवाह के पहले या बाद में या विवाह के समय एक पक्ष के द्वारा या उसके किसी संबंधी द्वारा दूसरे पक्ष को प्रत्यक्ष या परोक्ष रुप से कुछ मूल्यवान प्रतिभूति या संपत्ति दी जाती है, वह दहेज कहलाता है। लेकिन मुस्लिम कानून (शरियत) के अंतर्गत ही मेहर दिया जाता है, वह इस परिभाषा में नहीं आता है। ऐसा कोई उपहार जो कि विवाह करने के एवज में नहीं दिया जाता, वह दहेज के अंतर्गत नहीं आता है। मुल्यवान प्रतिभूति का अर्थ ऐसे दस्तावेज से है, जिसके द्वारा कोई कानूनी अधिकार सृजित, विस्तृत, अंतरित, निर्बंन्धित किया जए या छोजा जाए या जिसके द्वारा कोई व्यक्ति यह भी स्वीकार करता हो कि वह कानूनी दायित्व के अंतर्गत है या नहीं।

दहेज अपराध के लिए दण्ड की व्यवस्था:-

दहेज लेना या देना या दहेज की मांग करना दंडनीय अपराध है। दहेज प्रतिषेध अधिनियम में इसे गैर-जमानतीय एवं संज्ञेय आपरध माना गया है, दहेज देने या लेने संबंधी कोई भी करार अवैध माना जाता है। उन व्यक्तियों के लिए भी सजा का प्रावधान किया गया है, जो दहेज जैसे अपराध को अभिप्रेरित करते है। 2 अक्टूबर 1984 से लागू नियमावली के अनुसार विवाह के अवसर पर वर-वधू के हस्ताक्षर व अंगूठे का निशान के साथ रखने की कानूनी अनिवर्यता बतायी गई है।


इस अधिनियम की धारा 8 में दहेज के अपराध को संज्ञेय बताते हुए पुलिस को इसकी जांच करने का पूरा अधिकार है, किंतु पुलिस किसी मजिस्ट्रैट के आदेश या वारंट के बिना इस अपराध में किसी व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं कर सकती है। दहेज कानून की धारा-3 के अनुसार दहेज लेने या देने या लेन-देन को अभिप्रेत करने वाले व्यक्ति के लिए कारावास एव 15,000/- या दहेज की धनराशि जो भी अधिक हो, द्वारा दंडित किया जाता है। दहेज संबंधी अपराध के लिए कम से कम 5 वर्ष के कारावास का प्रावधान है।


यदि कोई व्यक्ति सीधे या परोक्ष रुप से वर या वधू के माता-पिता या संरक्षक या अन्य संबंधियों से दहेज की मांग करता है तो उसे 2 वर्ष तक के कारावास एवं 10,000/- रुपये जुर्माने के साथ दंडित किया जा सकता है। ऐसे अपराध में कम से कम 6 माह के कारावास की सजा का प्रावधान है। दहेज प्रतिषेध (संशोधन) अधिनियम 1986 द्वारा मूल अधिनियम में 4-क जोडकर किसी समाचार पत्र, पत्रिका या किसी अन्य माध्यम से किसी भी व्यक्ति द्वारा ऐसे विज्ञापन देने पर प्रतिबंध लगाया गया है, जिसके द्वारा वह अपने पुत्र या पुत्री या किसी अन्य संबंधी के विवाह के बदल में प्रतिबंध है। इसका पालन नहीं करने पर हक कायम करने का प्रस्ताव करता है। इस तरह के विज्ञापन छपवाने तथा प्रकाशित करने या बांटने पर इस अधिनियम की धारा-6 में व्यवस्था है कि स्त्री (वधू) के अलावा कोई दूसरा व्यक्ति दहेज लेता है तो वह विवाह की तिथि से 3 माह के अंदर या यदि विवाह के समय वधू नाबालिग हो तो उसके 18 वर्ष की आयु प्राप्त होने के एक वर्ष के अंदर दहेज की राशि उसको ट्रांसफर कर देगा तथा जब तक दहेज उसके  पास है, वह वधू के लाभ के लिए ट्रस्टी के रुप में रखेगा।


यदि संपत्ति की अधिकारिणी स्त्री की मृत्यु ट्रांसफर से पहले हो जाती है तो संपत्ति पर उसके कानूनी उत्तराधिकारियों का हक होगा। यदि ऐसी स्त्री की मृत्यु विवाह के सात वर्ष के भीतर असामान्य परिस्थिति में हो जाऐ और उसके कोई बच्चे न हो तो उस संपत्ति का मालिक उसके माता-पिता होंगे।
इन प्रावधानों का उल्लंघन करने वाले को दो वर्ष तक का कारावास एवं 10,000/- रुपये जुर्माने की सजा हो सकती है। यह सजा कम से कम 6 माह एवं जुर्माना 50,000/- रुपये है।


निर्धारित समय सीमा में वधू या उसके उत्तराधिकारी या उसके माता-पिता की संपत्ति ट्रांसफर नहीं करने वाले व्यक्ति को केवल सजा ही नहीं होती, बल्कि उनसे संपत्ति के समतुल्य धनराशि भी वसूल की जाती है।


दहेज अपराध के लिए न्यायालय द्वारा संज्ञान:-

क- इस अधिनियम के तहत आने वाले अपराधों की सुनवाई का अधिकार मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट/प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट के नीचे के किसी भी अधिकारी के पास नहीं होता है।
ख- इन अपराधों में न्यायालय द्वारा प्रसंज्ञान स्वयं की जानकारी, पुलिस रिपोर्ट, अपराध से पीडित व्यक्ति या उसके माता-पिता या अन्य संबंधित के परिवार या किसी मान्यता प्राप्त सामाजिक संगठन/संस्था के परिवाद पर लिया जा सकता है।
ग- सुनवाई करने वाले मेट्रोपालिटन मजिस्ट्रेट/प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट को इस अधिनियम के अंतर्गत आने वाले अपराधों में उस सीमा तक दंड देने के लिए शक्ति प्रदान की गई है, जो विभिन्न अपराधों के लिए इस अधिनियम में निर्धारित है, चाहे ये शक्तियां दंड प्रक्रिया संहिता में प्रदत्त शक्तियों से अधिक क्यों न हो? इस अधिनियम के अंतर्गत आने वाले अपराधों के विषय में संज्ञान लेने के लिए कोई समय सीमा तय नहीं है। महत्वपूर्ण प्रावधान यह है कि दहेज संबंधी अपराध से पीडित व्यक्ति को उसके द्वारा दिये गए किसी बयान के आधार पर अभियोजित नहीं किया जा सकता है।

साक्ष का भार-

प्रायः आपराधिक मामलों में किसी अभियुक्त पर दोष सिध्द करने का भार अभियोजन पक्ष पर होता है, लेकिन इस अधिनियम की धारा-3 एवं धारा-4 के तहत दहेज संबंधी मामलों में अपारध नहीं किये जाने का सबूत पेश करने का भार अभियुक्त पर होता है।


वधू को प्राप्त उपहार-

वधू को विवाह से पहले, विवाह के समय या विवाह के बाद जो उपहार माता-पिता के पक्ष से या ससुराल पक्ष से मिलता है, उसे स्त्री धन कहा जाता है। वधू स्त्री धन की पूरी तरह से मालकिन या स्वामिनी होती है।


दहेज के लिए वधू के साथ दुर्ववहार के लिए दंड-

दहेज प्रतिषेध अधिनियम में वधू के साथ क्रूरता या उत्पीडन के व्यवहार के लिए कठोर दंड की व्यवस्था है।
क्रूरता के लिए पति के साथ उसके संबंधियों को भी दंडित करने का प्रावधान है, जो भारतीय दंड संहिता की धारा 498-क में जोडी गई है। धारा 498-क यदि किसी स्त्री के पास उस/उन्हे पति या पति के रिश्तेदार उसके साथ क्रूरता का व्यवहार करता है तो तीन साल तक कारावास एवं जुर्माने से दंडित किया जाएगा।

क्रूरता की परिभाषा क्या है?

क- जान-बूझकर कोई ऐसा व्यवहार करना, जिससे वह स्त्री का आत्महत्या के लिए प्रेरित करना हो या उस स्त्री के जीवन अंग या स्वास्थ्य को गंभीर क्षति या खतरा पैदा हो।
ख- किसी स्त्री को इस दृष्टि से तंग करना कि उसको या उसके किसी रिश्तेदार को कोई संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति देने के लिए बाध्य किया जाए या किसी स्त्री को इस कारण तंग करना कि उसका कोई रिश्तेदार ऐसी मांग पूरी न कर पाया हो।

भारतीय दंड संहिता में संशोधन करके एक नई धारा 304-ख जोडा गया है, जिसमें “दहेज मृत्यु” को परिभाषित किया गया है।


धारा 304-ख दहेज मृत्यु-

  1. यदि किसी स्त्री की मृत्यु किसी दाह या शारीरिक क्षति के कारण होती है या उसके विवाह के सात वर्ष के भीतर परिस्थितियां होती है और यह प्रदर्शित होता है कि उसकी मृत्यु के कुछ समय पहले उसके पति या पति के किसी रिश्तेदार ने दहेज की मांग के लिए उसके साथ क्रूरता का व्यवहार किया है तो ऐसी मृत्यु को दहेज कारित मृत्यु कहा जाता है।
  2. दहेज मृत्यु कारित करने वाले व्यक्ति को सात साल से आजीवन कारावास तक की सजा हो सकती है।

भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1972 धारा 133-क एवं ख जोडकर एक शक्ति दी गई है कि विवाह के 7 वर्ष के भीतर किसी स्त्री द्वारा आत्महत्या करने या दहेज मृत्यु के मामलों में अभियुक्त के विरुध्द अपराध करने की अवधारणा कर सके जब कि अन्यथा सिध्द न हो।


धारा 113-क

यदि कोई स्त्री विवाह के 7 वर्ष के भीतर आत्महत्या करती है तो न्यायालय मामले की सभी अन्य परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए यह अवधारणा करता है कि ऐसी आत्महत्या उसके पति या पति के किसी रिश्तेदार द्वारा दुश्प्रेरित कि गई है।


धारा 113-ख

जब किसी व्यक्ति ने अपनी स्त्री की दहेज मृत्यु कारित की है और दर्शित किया जाता है कि मृत्यु के कुछ पहले ऐसे व्यक्ति दहेज की किसी मांग के लिए या उसके संबंध में उस स्त्री के साथ क्रूरता की थी तो न्यायालय के द्वारा यह अवधारणा की जाती है कि उस व्यक्ति ने दहेज मृत्यु कारित की है।
इस तरह कानून में संशोधन करके दहेज अपराध के लिए कठोर दंड की व्यवस्था की गई है। अतः दहेज प्रथा के उन्मूलन के लिए बनाए गए कानून का उपयोग करने की आवश्यकता है।


आज हमने हमारे पाठकों को दहेज निवारण कानून क्या है | दहेज क्या है? | दहेज अपराध के लिए दण्ड की व्यवस्था | दहेज अपराध के लिए न्यायालय द्वारा संज्ञान | क्रूरता की परिभाषा क्या है। इसके बारेमें जनकारी देनेका प्रयास कीया है। आशा है आपको यह लेख पसंद आया होगा। इसी तरह कानूनी जानकारी सिखने के लिए आप हमारे इस पोर्टल apanahindi.com पर आवश्य भेट दें।



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