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भ्रष्टाचार रोकने के कानून (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988) | Prevention of Corruption Act-1988 | Anti-Corruption Law

भ्रष्टाचार रोकने के कानून (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988) | Prevention of Corruption Act-1988 | Anti-Corruption Law



यह अधिनियम भरत सरकार द्वारा सरकारी तंत्र एवं सार्वजनिक क्षेत्र में हो रहे भ्रष्टाचार को रोक ने के लिए और कम करने के उद्देश्य से बनाया गया है। इस कानून में भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के साथ-साथ ईमानदार कर्मचारियों को संरक्षण देने का भी प्रावधान दिया गया है। इस अधिनियम त तहत लोकसेवकों पर भ्रष्टाचार का मामला चलाने से पहले केन्द्र सरकारी कर्मचारी के मामले में लोकपाल से और राज्यों सरकार के कर्मचारी के मामले में लोकायुक्तों से अनुमति लेने की आवश्यक्ता है। यह कानून यह 9 सितंबर,1988 को लागू किया गया है। आईये इस लेख के माध्यम से आज हम भ्रष्टाचार रोकने के कानून (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988) | Prevention of Corruption Act-1988 | Anti-Corruption Law इसके बारेमें जानकारी हासिल करने की कोशिष करते है।


भ्रष्टाचार रोकने के कानून (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम—1988)

भ्रष्ट लोक सेवक समाज की कोढ में खादः-

जनतांत्रिक शासन प्रणाली में किसी भी व्यवस्था के संचालन का दायित्व लोक सेवकों पर होता है। यदि लोक सेवक भ्रष्ट हो जाए तो राष्ट्र की जडें कमजोर हो जाती है। इसका असर राष्ट्र के विकास पर पडता है। लोक सेवक ठीक ईमानदारीपूर्वक अपने कर्तव्यों का पालन करें और भ्रष्टाचार को रोका जा सके, इसलिए भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 का सृजन किया गया है।

क सेवक कौन है?

प्राप्त लोक सेवक से सरकारी सेवक का बोध होता है, किंतु लोक सेवक का दायरा इससे बडा है। लोक सेवक के अंतर्गत सरकारी सेवक के अलावा वो सभी व्यक्ति आते है, जो ऐसे किसी पद पर आसीन हैं, जिसके आधार वे किसी लोक कर्तव्य का पालन करने के लिए प्राधिकृत हैं। जैसे गांव का प्रधान, एम.एल.ए. एम.पी. न्यायालय द्वारा नियुक्त वकिल आदि भी लोक सेवक हैं। अतः इस अधिनियम में ऐसे सभी व्यक्ति आते है, जो लोक कर्तव्य प्रकृति के पद पर हैं और उन्हे लोक कर्तव्य का पालन करने के लिए अपेक्षित या प्राधिकृत किया गया है।


भ्रष्टाचार का अर्थ क्या है? :-

प्रायः भ्रष्टाचार का मतलब घूस या रिश्वत लेना समझा जाता है, किंतु इस अधिनियम की धारा- 7 में की गई परिभाषा के अनुसार यदि कोई परितोषण या ईनाम अपने पदेन कार्य में अपने पदीय कृत्यों के प्रयोग में अनुग्रह दिखाने के लिए लेना, यदि किसी लोक सेवक के द्वारा ईनाम परितोषण के लिए अपने पद का दुरूपयोग किया जाता है, जो भ्रष्टाचार माना जायेगा इसके लिए कारावास की सजा दी जा सकती है।

इस अधिनियम की धारा- 13 के तहत लोक सेवक द्वारा रिश्वत लेने को आपराधिक अनाचार के अंतर्गत माना गया है, जिसके लिए एक वर्ष से लेकर 7 वर्ष तक कारावास की सजा हो सकती है तथा अर्थदंड से भी दंडित किया जाएगा। अतः रिश्वत लेने पर धारा- 7 के अलावा धारा- 13 में भी लोक सेवक को भ्रष्टाचार के लिए दायित्व किया जाता है।


रिश्वत देने के लिए भी दंड का प्रावधानः-

रिश्वत लेना ही नही, बल्कि रिश्वत देना भी दंडनीय अपराध है। यदि कोई व्यक्ति किसी लोक सेवक को रिश्वत देता है या लोक सेवक को भ्रष्ट या अवैध साधनों द्वारा पदेन कृत्य अनुग्रह करने के लिए उत्प्रेरित करता है तो ऐसे रिश्वत देकर लोक सेवक को गुमराह करने वाले व्यक्ति को इस अधिनियम की धारा-6 के अंतर्गत 6 माह से लेकर 5 वर्ष तक के कारावास की सजा से दंडित किया जा सकता है। यदि कोई व्यक्ति किसी उच्च पद पर आसीन हो और अपने व्यक्तिगत प्रभाव से किसी लोक सेवक को उत्प्रेरित करने के लिए या ईनाम के लिए प्रतिग्रहित करते हुए अपने पद के दुरूपयोग से लोक सेवक के पदेन कृत्यों में अनुग्रह करने के लिए कहता है या उस पर प्रभाव डालकर परितोषण के लिए उत्प्रेरित करता है तो उसे व्यक्ति को इस अधिनियम की धारा-9 के अंतर्गत 6 माह से लेकर 5 वर्ष तक के कारावास की सजा हो सकती है तथा जुर्माने से भी दंडित किया जाएगा।


भ्रष्ट लोक सेवक को रंगे हाथों पकडने वाली प्रक्रियाः-

रिश्वत देने वाले और रिश्वत लेने वाले दोनों को यदि देने या लेले पर कोई एतराज नहीं हो तो यह प्रक्रिया चलती रहती है। भ्रष्ट लोक सेवक को पकडना मुश्किल हो जाता है। इसलिए जब लोक सेवक रिश्वत की मांग करता हो और दूसरा व्यक्ति रिश्वत देने को तैयार न हो तभी किसी लोक सेवक को रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों पकडना संभव होता है।

भ्रष्टाचार रोकने के लिए भ्रष्टाचार निरोध एक अलग विभाग भी बनाया गया है, जिसका कार्य संबंधित व्यक्ति के संबंध में कोई शिकायत मिलने पर विभाग द्वारा उसे पकडने के उपाय किए जाते है। अधिनियम की धारा- 17 के प्रावधान के अनुसार किसी लोक सेवक के द्वारा रिश्वत मांगने की शिकायत गोपनीय ढंग से की जाती है, जिस पर विशेष पुलिस अधिकारी उक्त लोक सेवक को रंगे हाथों पकडने की योजना बनाता है। शिकायत कर्ता को रिश्वत देने की धनराशि के नोटों पर फिलैथीन पाउडर लगाया जाता है या हस्ताक्षर भी किया जाता है। ये नोट जब भ्रष्ट अधिकारी हाथ से स्पर्श करते है और हाथ पानी में डालते है तो पाउडर लगने के कारण हाथ लाल हो जाता है। इस तरह सबूत के साथ भ्रष्ट लोक सेवक को पकडना संभव होता है।


थो पकडे बिना भ्रष्ट सेवक को दंडित करने की प्रक्रियाः-

प्रायः रिश्वत लेने वाले सेवक कानूनी दावपेंचों को जानते है और वे पकजे जाने के उपाय ढुंढ लेते हैं। वे रिश्वत रुपये में न लेकर भिंन्न-भिंन्न रुपों में लेते है। ऐसी स्थिति में अधिनियम की धारा – 13 के अंतर्गत लोक सेवक को भ्रष्टाचार मेंम लिप्त होने के लिए पकडने की व्यवस्था है। धारा के अंतर्गत कोई लोक सेवक भ्रष्ट समझा जाता है।
(क) यदि वह अपने लिये या किसी अन्य व्यक्ति के लिए वैध पारिश्रमिक से भिंन्न कोई ईनाम प्राप्त करता है।
(ख) यदि वह अपने लिये या किसी अन्य व्यक्ति के लिए कोई मूल्यवान वस्तु प्रतिफल के रुप में प्राप्त करता है या सहमत होता है। इसमें अन्य व्यक्ति में उसका नातेदार या जिसके साथ उसका हित संबंध हो जाता है।
(ग) यदि वह लोकसेवक के रुप में अपने को सौपी गई किसी संपत्ति का अपने उपयोग के लिए अवैध तरीके से दुर्विनियोग करता है या अंन्य व्यक्ति को करने के लिए देता है।
(घ) यदि वह भ्रष्ट या अवैध साधनों सो अपने लिये या किसी अन्य व्यक्ति के लिए कोई मूल्यवान वस्तु या धन संबंधी लाभ अभिप्राप्त करता है अथवा

यदि उसके या उसकी और से किसी व्यक्ति के पास आय के ज्ञात स्त्रोतों से अधिक धन है, जिसका वह लेखा जोखा नहीं दे सकता।

दंण्डः- उपरोक्त अपराध में आरोप सिध्द सजा होने पर एक वर्ष स सात वर्ष तक के कारावास तक की सजा हो सकती है और अर्थदंड से भी दंडित किया जा सकता है।


केंद्र सरकार के लोक सेवकों पर सी.बी.आई. द्वारा कार्यवाहीः-

केंद्र सरकार के लोक सेवकों पर कार्यवाही करने केलि सी.बी.आई. की विशेष पुलिस ही प्राधिकृत है। चूंकि प्रत्येक जिला से सी.बी.आई. कार्यालय नहीं होता है, इसलिए जहां इसका कार्यालय हो, वहां इसकी गुप्त सूचना दी जाती है।
  • बैंक बीमा कंपनी तथा केंद्र सरकार के उपक्रमों के कर्मचारी भी केंद्रीय लोकसेवक के दायरें मे्ं आते है, इसलिए इन पर कार्यवाही करने का दायित्व सी.बी.आई. के विशेष बल का है।
  • अपने पद का दुरूपयोग करके किसी व्यक्ति द्वारा ईमानदार लोक सेवक के नाम पर रिश्वत लेना अपराध है। ऐसे अपराध के लिए इस अधिनियम की धारा- 9 के अंतर्गत 6 माह से लेकर 5 वर्ष तक कारावास एवं अर्थदंड का प्रावधान है।
  • इस अधिनियम के द्वारा ईमानदार लोक सेवक की रक्षा भी होती है। किसी लोक सेवक के विरुध्द भ्रष्टाचार का मुकदमा न्यायालय में तभी चल सकता है, जब ऐसे लोक सेवक के विभागाध्यक्ष द्वारा इस अधिनियम की धारा-19 के तहत अनुमति प्रदान की जाती है। अतः ईमानदार लोक सेवक पर झूठा आरोप लगाने की दशा में उसके विभागाध्यक्ष के द्वारा उसकी रक्षा ती जाती है।
  • भ्रष्टाचार के मामलों का क्षेत्राधिकार केवल विशेष न्यायाधीश का है। इस अधिनियम की धारा 4 के अंतर्गत सेशन जज या विशेष न्यायाधिश के पास ही ऐसे मामलों की सुनवाई की जाती है।


इस लेख के माध्यम से आज हमने हामारे पाठकों को भ्रष्टाचार रोकने के कानून (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988) | Prevention of Corruption Act-1988 | Anti-Corruption Law इसके बारेमें जानकारी देनेका पुरा प्रयास किया आहे आशा है आपको यह लेख पसंद आया होगा। इसीतरह कानूनी जानकारी सिखने के लिए और हासिल करने  के लिए आप हमारे इस पोर्टल apanahindi.com पर आवश्यं भेट दें। आशा है आपको हमारार यह लेख पसंद आया होगा। यदि आपको हमारा यह लेख पसंद आया है तो आप इस पोस्ट को अपने नजदिकी  लोगों को जरूर श्योकर करें।


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