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आई.पी.सी. धारा 494 क्या है | What is section 494 of IPC

आई.पी.सी. धारा 494 क्या है | What is section 494 of IPC



धारा 494 यह भारतीय दंड संहिता 1860 मे चाप्टर 20 में दिया गया है। इस धारा के अनुसार, जो कोई भी पति या पत्नी के जीवित होते हुए किसी ऐसी स्थिति में विवाह करेगा जिसमें पति या पत्नी के जीवनकाल में विवाह करना अमान्य होता है, तो उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास की सजा जिसे सात वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, और साथ ही आर्थिक दंड से दंडित किया जाएगा। आइये इस लेख के माध्यम से आज हम आई.पी.सी. धारा 494 क्या है | What is section 494 of IPC इसके बारे में पुरी जानकारी हासिल करते है।

भारतीय दंड संहिता
धारा- 494- पति या पत्नी के जीवन काल में पुनः विवाह करना-

जो कोई पति या पत्नी के जीवित होते हुए किसी ऐसी दशा में विवाह करेगा जिसमें ऐसा विवाह इस कारण शून्य है कि वह ऐसे पति या पत्नी के जीवन काल में होता है वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।

अपवाद-  इस धारा का विस्तार किसी ऐसे व्यक्ति पर नही है, जिसका ऐसे पति या पत्नी के साथ विवाह सक्षम अधिकारिता के न्यायालय द्वारा शून्य घोषित कर दिया गया हो, और न किसी ऐसे व्यक्ति पर है, जो पूर्व पति या पत्नी के जीवन काल में विवाह कर लेता है। यदि ऐसा पति या पत्नी उस पश्चात्वर्ती विवाह के समय ऐसे व्यक्ति से सात वर्ष तक निरंतर अनुपस्थित रहा हो, और उस काल के भीतर ऐसे व्यक्ति ने यह नहीं सुना हो कि वह जीवित है, परंतु यह तब कि ऐसा पश्चात्वती विवाह करने वाला व्यक्ति उस विवाह के होने से पूर्व उस व्यक्ति को, जिसके साथ ऐसा विवाह होता है, तथ्यों की वास्तविक स्थिति की जानकारी जहाँ तक की उनका ज्ञान उसको हो दे.


The Indian Penal Code
Section- 494- Marrying again during lifetime of husband or wife-

Whoever, having a husband or wife living, marries in any case in which such marriage is void by reason of its taking place during the life of such husband or wife, shall be punished with imprisonment of either description for a term which may extend to seven years, and shall also be liable to fine.

Exception- This section does not extend to any person whose marriage with such husband or wife has been declared void by a Court of competent jurisdiction, nor to any person who contracts a marriage during the life of a former husband or wife, if such husband or wife, at the time of the subsequent marriage, shall have been continually absent from such person for the space of seven years, and shall not have been heard of by such person as being alive within that time provided the person contracting such subsequent marriage shall, before such marriage takes place, inform the person with whom such marriage is contracted of the real state of facts so far as the same are within his or her knowledge.


Classification Of Offence

  1. Punishment – Imprisonment for 7 years & fine.
  2. Non-Cognizable
  3. Bailable 
  4. Triable by JMFC
  5. Compoundable by the husband or wife of the person so marrying with the permission of the court.


अपराध को साबित करने के लिए आवश्यक तत्व-

इस धारा के तहत अपराध साबित करने के लिए नीचे उल्लिखित आवश्यक तत्वों को साबित करना आवश्यक है।
  1. पहली शादी का पती अथवा पत्नी दूसरी शादी के समय जीवित रहते है। अथवा
  2. उनका पहिला विवाह अस्थित्व मे रहते हुवे दुसरा विवाह कर रहे है।
  3. वादी और अभियुक्त पर लागू कानून के अनुसार अभियुक्त का दूसरा विवाह अवैध है।


टिप्पणी/ न्यायनिवाडे / केस लॉ

  1. हिंदू विवाह अधिनियम के अनुसार दूसरा विवाह अवैध होते हुए भी यह अपराध किया जाता है। (AIR1965(SC)1964)
  2. इस धारा के तहत मामलों में, पहले शादी की पुष्टि की जानी चाहिए। (1985Mah.L.J.295)
  3. धारा 494 तब तक लागू नहीं होगी जब तक जाति प्रथा के अनुसार दूसरा विवाह अवैध न हो। (1984(2)Crimes 387)
  4. अगर कोई व्यक्तिने अपने घर में दूसरी शादी की इजाज़त देती है तो इसका मतलब यह नहीं कि उसने गुनाह में साथ दिया है।
  5. दूसरी शादी के समय यह साबित किया जाए कि सभी रस्में निभाई गई थीं। (1982Cr.L.J.1567)
  6. यदि दत्त होम और सप्तपदी सिद्ध न हो तो कोई अपराध नहीं होता। (AIR1979(SC)848)
  7. दूसरी शादी की स्वीकृति दूसरी शादी का सबूत नहीं है। उसके लिए अन्य प्रमाणों का होना आवश्यक है। (AIR1971(SC)1153)
  8. अगर कोई हिंदू व्यक्ति इस्लाम धर्म अपनाकर मुस्लिम लड़की से दोबारा शादी करता है तो यह इस धारा के तहत अपराध बनता है। (1995Cri.L.J.2926)


क्रॉस एग्जामिनेशन / जरह के लिए नमूना प्रश्न-

आरोपी नं. 1 चूंकि कंप्लेनंट के साथ उसकी पहली शादी के जीवित रहने के दौरान उसने फिर से दुसरी शादी कर ली, इसलीये नं. 1 पति, उसके माता-पिता, उसकी दूसरी पत्नी उसके माता-पिता आदि लोगों के खिलाफ  भारतीय दंड संहिता की धारा 494 के तहत एक निजी शिकायत याने प्राईवेट कंप्लेंट दर्ज की गई है। तदनुसार, पहली पत्नी वादी की जिरह कुछ इस प्रकार है.-
  1. आप की और आरोपी नं. 1 की शादी करीब 4-5 साल पहले हुई है।
  2. आप आरोपी के साथ वैवाहीक जिवन नहीं व्यथित करते हैं, इसलिए आरोपी ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 के अनुसार वैवाहिक अधिकार की बहाली करने के लिए आपके खिलाफ अदालत में आवेदन दायर किया है और यह अभी भी जारी है।
  3. शुरू से ही आपकी यह इच्छा थी कि आरोपी आपके साथ आपके मायके आए और आपके साथ वहीं रहे।
  4. आरोपी ने घर का दामाद बनने से इनकार कर दिया। इसलिए आपने गुस्से में अपने पति का घर छोड़ कर पिछले 2-3 सालों से आपके मायके में ही रह रही हैं।
  5. आप अपने पति और उसके माता-पिता को परेशान करने के इरादेसे भारतीय दंड संहिता कि धारा 498 (ए) के तहत न्यायालय में एक निजी मुकदमा दायर किया गया है और वह आजभी प्रलंबित है।
  6. दूसरी पत्नी के तौर पर बताई गई लडकी आरोपी नं. 1 के एक नजदिकी रिश्तेदार की लडकी है।
  7. उक्त लडकी आरोपी के घर के पास ही रहती है। उससे आरोपी नंबर 1 ने विवाह किया ऐसा आपका शक है।
  8. आपने अदालत में शादी का कोई कानूनी सबूत पेश नहीं किया है।
  9. गवाह नं. 4 मि. कुलकर्णी ने यह गवाही दि है की उन्होने आरोपी नं. 1 की पुनर्विवाह करवाया है और यह गवाही और आपके गवाही के बीच एक बुनियादी अनुरोध है।
  10. तथाकथित दूसरी शादी के दौरान आप सक्षम नहीं थे। तो आप खुद उस शादी के बारे में नहीं जानते।


इस लेख के माध्यम से हमने हमारे पाठकों को आई.पी.सी. धारा 494 क्या है | What is section 494 of IPC इसके बारेमें जानकारी देने का पुरा प्रयास किया है। आशा है आपको यह लेख पसद आया होगा। इसी तरह कानूनी जानकारी पाने के लिए आप हमारे इस पोर्टल apanahindi.com पर आवश्य भेट दें।



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