आई.पी.सी. धारा 468 क्या है | What is section 468 of IPC
धारा 468 यह भारतीय दंड संहिता 1860 मे चाप्टर 18 में दिया गया है। इस धारा के अनुसार यदि कोई व्यक्ति इस आशय से कूटरचना करता है कि वह कूटरचित दस्तावेज़ों के मध्यमसे छल करने के लिए इस्तेमाल किया जा सके तो उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास की सजा हो सकती है जिसकी अवधी सात वर्ष तक बढ़ाया जा सकती है, और साथ ही वह आर्थिक दंड भी हो सकता है। आईये इस लेख के माध्यम से आज हम आई.पी.सी. धारा 468 क्या है | What is section 468 of IPC इसके बारेमें जानकारी हासिल करते है।
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भारतीय दंड संहिता
धारा 468 – छल के प्रयोजन से कूटरचना-
जो कोई कूटरचना इस आशय से करेगा कि वह दस्तावेज या इलेक्ट्रानिक अभिलेख, जिसकी कुटरचना की जाती है छल के प्रयोजन से उपयोग में लायी जाएगी, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।
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The Indian Penal Code
Section-468- Forgery for purpose of cheating-
Whoever commits forgery, intending that the document or electronic record forged shall be used for the purpose of cheating, shall be punished with imprisonment of either description for a term which may extend to seven years, and shall also be liable to fine.
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Classification of Offence
- Punishment for 7 years & fine
- Cognizable
- Non-Bailable
- Triable by JMFC
- Non-Compoundable
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अपराध साबित करने के लिए महत्वपूर्ण तत्व-
इस धारा के तहत अपराध साबित करने के लिए अभियोजन पक्ष को नीचे उल्लिखित तत्वों को साबित करना आवश्यक है।
- विवादित दस्तावेज जाली है।
- आरोपी ने जाली दस्तावेज बनाए हैं।
- एक जाली दस्तावेज़ इस इरादे से बनाया जाता है कि जाली दस्तावेज़ का उपयोग धोखाधड़ी करने के लिए किया जाए।
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न्यायनिवाडे / केस लॉ
- यदि इस धारा द्वारा अपेक्षित आशय सिद्ध हो जाता है, तो यह सिद्ध हो जाएगा कि अभियुक्त ने जालसाजी की है। (1980Cr.L.J.369)
- भारतीय दंड संहिता की धारा 420 और 468 दोनों धाराओं में समान प्रावधान हैं। उसमें आरोपी की मंशा अहम होती है इन धाराओं को कंपनी के खिलाफ लागू नहीं किया जा सकता है।
- कोरे कागज पर किसी व्यक्ति के हस्ताक्षर प्राप्त करना जालसाजी या उस प्रकृति का कोई अन्य अपराध नहीं है। लेकिन यदि कागज को दस्तावेज़ के रूप में बनाया जाता है, तो उस मामले में भारतीय दंड संहिता के प्रासंगिक प्रावधान लागू होंगे। (AIR1999(SC) 1202)
- हाईकोर्ट में एक स्टेनोग्राफर द्वारा झूठा जमानत का आदेश तैयार किया गया इस मामले में यह कहा जा सकता है कि यह एक गलत काम हुआ है और इसलिए आरोपी सजा का भागी होगा. (AIR1999(SC)1201)
- आरोपी एक जीवन बीमा कंपनी का प्रतिनिधि है। उसके द्वारा जाली दस्तावेजों के आधार पर जीवन बीमा पॉलिसियां जारी कीया गया। उसी से कमीशन की राशि आरोपी के खाते में जमा करा दीया गया। इस बात के सबूत हैं कि सह-अभियुक्तों ने जाली दस्तावेजों को बनाया है। मुख्य आरोपी की सहमति से जालसाजी का कोई सबूत नहीं है। आरोपी बरी होने लायक है। (AIR1992(SC)1939) = (1992Cr.L.J.3587)
- दवाई की कीमत की फर्जी मांग कर आरोपी के खिलाफ धोखाधड़ी मामले में आरोपी ने यह बचाव किया कि उसने झूठा आवेदन और फर्जी बिल जमा नहीं किया उसने यह भी कहा कि उसके द्वारा दस्तावेजों पर हस्ताक्षर नहीं किए और हस्तलिपि विशेषज्ञ के पास सत्यापन के लिए दस्तावेज़ नहीं भेजे गए हैं, ऐसे में सिर्फ शक के आधार पर आरोपी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। (1981Cr.Law Cases432)
इस लेख के माध्यम से आज हमने हमारे पाठकों को आई.पी.सी. धारा 468 क्या है | What is section 468 of IPC इसके बारेमें जानकारी देने का पुरा प्रयास किया है। आशा है आपको यह लेख पसंद आया होगा। एसे ही कानूनी जानकारी सिखने के लिए आप हमारे पोर्टल apanahindi.com पर आवश्य भेट दे।
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