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आई.पी.सी. धारा 463 और 465 क्या है | What is section 463 & 465 of IPC

आई.पी.सी. धारा 463 और 465 क्या है | What is section 463 & 465 of IPC



धारा 463 और 465 यह भारतीय दंड संहिता 1860 मे चाप्टर 18 में दिया गया है। इस धारा के अनुसार जो कोई कूटरचना करेगा, तो उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास जिसे दो वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, या आर्थिक दण्ड, या दोनों से दण्डित किया जाएगा। आईये इस लेख के माध्यम से आज हम आई.पी.सी. धारा 463 और 465 क्या है | What is section 463 & 465 of IPC यह जानने की कोशिश करते है। आशा है।


भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 465 में दिये गये सजा के प्रावधान को समझने से पहले कुटरचना क्या है इसे समझना जरूरी है उसके लीये भारतीय दंड संहिता की धारा 463 को समझना जरूरी है।


भारतीय दंड संहिता
धारा 463- कूटरचना-

जो कोई किसी मिथ्या दस्तावेज या मिथ्या इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख अथवा दस्तावेज या इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख के किसी भाग को इस आशय से रचता है कि लोक को या किसी व्यक्ति को नुकसान या क्षति कारित की जाए, या किसी दावे या किसी हक का समर्थन किया जाए, या यह कारित किया जाए कि कोई व्यक्ति, संपत्ति अलग करें या कोई अभिव्यक्त या विवक्षित संविदा करे या इस आशय से रचता है कि कपट करें, याकपट किया जा सके, वह कूटरचना करता है।



In The Indian Penal Code
Section 463-Forgery-

Whoever makes any false documents or false electronic record or part of a document or electronic record, with intent to cause damage or injury, to the public or to any person, or to support any claim or title, or to cause any person to part with property, or to enter into any express or implied contract, or with intent to commit fraud or that fraud may be committed, commits forgery.



जैसेकी हमने कूटरचना के बारेमें समझने के लिये धारा 463 को पढा है उसी के अनुसार जो कोई अपराध करता है उसे भारतीय दंड संहिता की धारा 465 के तहद दंडित किया जाएगा। तो आईये हम इसे समझने के लए धारा 465 को भी समझते है।


भारतीय दंड संहिता
धारा 465- कूटरचना के लिए दंड-

जो कोई कूटरचना करेगा, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दंडित किया जाएगा।


In The Indian Penal Code
Section 465-Punishment for forgery-

Whoever commits forgery shall be punished with imprisonment of either description for a term which may extend to two years, or with fine, or with both.


Classification of Offence

  1. Punishment – Imprisonment for 2 years, or fine or both.
  2. Non-Cognizable
  3. Bailable
  4. Triable by JMFC
  5. Non-Compoundable


कूटरचना साबित करने के लिए आवश्यक मुद्दे-

नीचे उल्लिखित उद्देश्यों के लिये कूटरचना या जाली दस्तावेज़ बनाया जाना चाहिए।
  1. जनता या किसी व्यक्ति को हानि या क्षति पहुँचाना।
  2. किसी अधिकार, मांग या स्वामित्व का दावा करना, अथवा
  3. किसी व्यक्ति को अपनी संपत्ति का कब्जा छोड़ने के लिए मजबूर करना।
  4. कोई व्यक्त या निहित अनुबंध करने के उद्देश्य से या
  5. एक व्यक्ति जो धोखाधड़ी करने या उस धोखाधड़ी को सुविधाजनक बनाने के इरादे से एक गलत दस्तावेज या उसका हिस्सा बनाता है, जालसाजी करता है।


उदाहरण-

  1. अ द्वारा की गई वसीयत में कहा गया है कि, "मैं निर्देश देता हूं कि मेरी शेष सभी संपत्ति को क, ख और ग के बीच समान रूप से विभाजित किया जाए।" सभी संपत्तियां अपने लिए रखी गई हैं इसे समझने के लिए इस उद्देश्य के साथ क यह व्यक्ति ख और ग के नाम हटा देता है, यहांपर क ने कुटरचना जैसा अपराध किया है।
  2. खाताधारक द्वारा हस्ताक्षरित किया गया लेकिन, अन्य मामलों में पूरी तरह से खाली चेक ए द्यारा गायब कराया जाता है, और राशि रु. को दो लाख लिखकर वह चेक पूरा करता है। यहाँ अ द्वार फोर्जरी किया गया है।


टिप्पणी-

  1. भारतीय दंड संहिता की धारा 465 के तहत आरोपी द्वारा पेश किए गए किसी भी दोषी जालसाज वाले दस्तावेज या उसके हिस्से को आरोपी द्वारा बनाया गया होना होना चाहिए। यदि अभियुक्त द्वारा किसी अन्य व्यक्ति को जाली दस्तावेज प्रस्तुत करने के लिए कहा जाता है, तो यह अपराध नहीं बनता है। (1953Cr.L.J.1926)
  2. दस्तावेज़ जिस तारिख को बनाया गया है।उसपर पिछली तारिख डालना इस धारा के तहत एक अपराध है। नकली दस्तावेजों से तीसरे पक्ष को नुकसान जरूरी है। यहाँपर नुकसान पहुंचाने का इरादा होना महत्वपूर्ण है। वास्तविक क्षति है या नहीं यह मुद्दा अप्रासंगिक है।


केस लॉ / साईटेशन

  1. भारतीय दंड संहिता की धारा 465 के अनुसार, अभियुक्त को दोषी ठहराए जाने से पहले, यह साबित करना आवश्यक है कि अभियुक्त ने किसी दस्तावेज़ या दस्तावेज़ के किसी भाग की कूटरचना की है। अगर ऐसा कोई सबूत नहीं है, तो आरोपी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। (1980 All Criminal Reporter 22)
  2. यदि किसी महाविद्यालय में प्रवेश पाने के लिए जाली प्रमाण पत्र तैयार किया जाता है, तो ऐसा जाली पत्र मूल्यवान दस्तावेज के अंतर्गत नहीं आता है। लेकिन इसलिए आरोपी भारतीय दंड संहिता की धारा 465 और 471 के तहत दोषी ठहराया जा सकता है। (AIR1981(SC)297) = (1980 Cr.L.J. 1345)
  3. यदि दोनों पक्षों ने आपसी सहमति से समझौता किया है, तो समझौते को जाली नहीं कहा जा सकता है। (1992 Cr.L.J. 1448)
  4. यह सबूत होना जरूरी है कि जाली दस्तावेज़ किसी अन्य व्यक्ति को नुकसान पहुंचाने के इरादे से बनाया गया था। अन्यथा इस धारा के अनुसार अभियुक्त को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। (1984 Cr.L.J. 545)
  5. बी.डी.वी. धारा 463 के तहत दायर मामले में, अभियोजन पक्ष के लिए यह साबित करना आवश्यक है कि विवादित दस्तावेज जाली है और अभियुक्त द्वारा गढ़ा गया है। यह साबित करने की जिम्मेदारी आरोपी की नहीं है कि विवादित दस्तावेज सही है। (AIR1932(Bom)406)
  6. हस्तलिपि विशेषज्ञ के साक्ष्य की न्यायालय द्वारा किसी अन्य गवाह के साक्ष्य की तरह जांच की जानी चाहिए। (AIR1993(Patana)262)
  7. यदि अभियुक्त के हस्ताक्षर हस्तलिपि विशेषज्ञ को जांच के लिए नहीं भेजे गए हैं और अभियुक्त के विरुद्ध कोई अन्य साक्ष्य नहीं है, तो अभियुक्त को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। (AIR1963Cr.L.J.3987)


आज हमने इस लेखके माध्यम से आई.पी.सी. धारा 463 और 465 क्या है | What is section 463 & 465 of IPC इसके बारेमें जानने कि कोशिश किया है। आशा है आपको यह लेख पसंद आया होगा। इसी तरह कानूनी जानकारी पढने के लिए आप हमारे इस पोर्टल apanahindi.com पर आपश्य भेट दें।




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