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आई.पी.सी. धारा 408 क्या है | What is section 408 of IPC

आई.पी.सी. धारा 408 क्या है | What is section 408 of IPC


धारा 408 यह भारतीय दंड संहिता 1860 मे चाप्टर 17 में दिया गया है। इस धारा के अनुसार, जो कोई लिपिक अथवा सेवक के रूप में नियुक्त या लिपिक या सेवक होने के नाते किसी प्रकार की संपत्ति से जुड़ा हुवा है या संपत्ति पर कोई भी प्रभुत्व होते हुए उस संपत्ति के विषय में किसीके विश्वास का आपराधिक हनन करता है, तो उसे किसी एक अवधि की कारावास की सजा जो के सात वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, और साथ ही वह आर्थिक दण्ड के लिए भी उत्तरदायी होगा। आई ये इस लेख के माध्यम से आज हम आई.पी.सी. धारा 405 और 406 क्या है | What is section 405 & 406 of IPC इसके बारेमें विस्तार से जानकारी हासिल करते है।

 


भारतीय दंड संहिता
धारा-408- लिपिक या सेवक द्वारा आपराधिक न्यासभंग-

जो कोई लिपिक या सेवक होते हुए, या लिपिक या सेवकके रुप में नियोजित होते हुए, और इस नाते किसी प्रकार संपत्ति, या संपत्ति पर कोई भी अख्तयार अपने में न्यस्त होते हुए, उस संपत्ति के विषय में आपराधिक न्यासभंग करेगा, यह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगाऔर जुर्माने से भी दंडनीय होगा।

Section 408 in The Indian Penal Code
Criminal breach of trust by clerk or servant-

Whoever, being a clerk or servant or employed as a clerk or servant, and being in any manner entrusted in such capacity with property, or with any dominion over property, commits criminal breach of trust in respect of that property, shall be punished with imprisonment of either description for a term which may extend to seven years, and shall also be liable to fine.

Classification of Offence

  1. Punishment – Imprisonment for 7 years or fine
  2. Cognizable
  3. Non-Bailable 
  4. Triable by JMFC
  5. Compoundable by the owner of the property in respect of which the breach of trust has been committed with the permission of the court.


उदाहरण

  1. जहां अभियुक्त पर किसी सहकारी समिति में खजांची के रूप में कार्य करते हुए झूठी प्रविष्टियां करके गबन करने का आरोप लगाया जाता है, यदि प्रविष्टियां अभियुक्त द्वारा की गई साबित नहीं होती हैं, तो अभियुक्त को लाभ मिलता है। (1984(1)Crimes191)
  2. हिसाब-किताब कोर्ट में दाखिल करने से ही साबित नहीं हो जाते। यह साबित होना चाहिए कि यह उस समय लिखा जा रहा था। (AIR1974(SC)386)


भारतीय दंड संहिता की धारा 408 के तहत दर्ज मामले में आरोपी वादी की सेवा में लिपिक या नौकर के रूप में था और इस प्रकार अभियुक्त के पास संपत्ति अथवा संपत्ति का कोई अधिकार सोपा गया था इन बातों की पुष्टि करने की जरूरत है।


नमूना प्रश्न-

इस धारा के तहत एक मामलों में अभियोजन पक्ष की जिरह करते समय निम्नलिखित प्रश्न पूछे जा सकते हैं।

  1. जिस समय विवाद की घटना घटी उस समय अभियुक्त वादी की सेवा में नहीं था।
  2. घटना के दो माह पूर्व आरोपी ने फरियादी के साथ नौकरी से इस्तीफा दे दिया था इसके बाद से आरोपी काम पर नहीं आ रहा था।
  3. घटना के समय आरोपी की तरह 25-30 अन्य कर्मचारी फरियादी के संस्था में काम कर रहे थे।
  4. घटना के दौरान आरोपी के पिता की तबीयत खराब होने के कारण आरोपी 6 माह तक काम पर नहीं आया।
  5. घटना के दौरान आरोपी लंबी छुट्टी पर था।
  6. इस बात का कोई दस्तावेजी प्रमाण नहीं है कि संपत्ति फरियादी द्वारा आरोपी को सौंपी गई थी।
  7. फरियादी पक्ष द्वारा परीक्षित गवाह फरियादी पक्ष के नौकर हैं और सिर्फ इसी दबाव में वे आरोपी के खिलाफ झूठी गवाही दे रहे हैं।
  8. अभियोजन पक्ष द्वारा दी गई गवाही और प्रस्तुत साक्ष्य परस्पर अनन्य नहीं हैं।
  9. सरकार पक्ष द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य आरोपी के विरूद्ध अपराध को सिद्ध नहीं करते हैं।
  10. फरियादी ने संपत्ति आरोपी को सौंप दी थी। इसका कोई विश्वसनीय प्रमाण नहीं है।
  11. आरोपी ने फरियादी की मर्जी के खिलाफ नौकरी से इस्तीफा दे दिया, जिससे फरियादीनें नाराज होकर आरोपी के खिलाफ झूठा मुकदमा दायर कर दिया है।


आज हमने हमारे पाठकों को आई.पी.सी. धारा 405 और 406 क्या है | What is section 405 & 406 of IPC क्या है इसके बारेमें जानकारी देने का पुरा प्रयास किया है। आशा है आपको यह लेख पसंद आया होगा। इसी तरह कानूनी जानकारी सिखने के लिए आपे हमारे इस पोर्टल apanahindi.com पर व्हिजीट करे।



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