सिविल केस में किसी पक्ष की मौत हो जाने पर उसके कानूनी वारिसों को कैसे पार्टी बनाया जा सकता है? | In case of death of a party to a civil case, how can his legal heirs be made a party?
अक्सर हमने देखा है के सिविल केसेस लंबे समय तक चलते रहते हैं। ऐसे मामलों मे दुर्भाग्यवंश कई बार ऐसी परिस्थितियां आती है के जब केस के सुनवाई के दौरान किसी पक्ष की मृत्यु हो जाती है। तब हमारे सामने अब आगे क्या करना है यह सबसे बडा सवाल खडा हो जाता है। इसी सवाल को समजने के लिए आज हम इस लेख के माध्यम से सिविल केस में किसी पक्ष की मौत हो जाने पर उसके कानूनी वारिसों को कैसे पार्टी बनाया जा सकता है? | In case of death of a party to a civil case, how can his legal heirs be made a party? यह जानेने कि कोशिश करते है।
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मुकदमा जारी रखने का अधिकार
जब एक सिविल केस दौरान किसी एक पार्टी की मृत्यु हो जाती है तो पहला सवाल कोर्ट के द्वारा यह तय किया जाता है कि मुकदमें में वारिसों को लाने का अधिकार बचता है या नहीं।
- यदि ऐसा अधिकार नहीं बचता है तो उस पार्टी के संदर्भ में केस का अंत हो जाता है। जैसे कि व्ययक्तिगत हानि या झूठे मुकदमे से होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए केस या मानहानि के लिए केस।
- यदि ऐसा अधिकार बचता है तो मुकदमा खत्म नही होगा। इसे मृतक पक्ष के वारिसों और कानूनी प्रतिनिधियों द्वारा या उनके खिलाफ जारी रखा जा सकता है। जैसे कि पैतृक संपत्ति के बटवारे का केस या मकान मालिक द्वारा किराएदार के खिलाफ कब्जा वापिस लेने का केस।
क्या है यह कानून?
सिविल केस में आम तौर पर दो तरह के पक्ष होते है। केस करने वाले को वादी (प्लेंटिफ) कहा जाता है और सामने वाली पार्टी को याने किसपर केस किया गया है उस पार्टी को प्रतिवादी (डिफेंडेंट) कहा जाता है।
- अगर प्लेंटिफ की मृत्यु हो जाती है तो उसके कानूनी वारिसों को रिकॉर्ड पर आने के लिए सीपीसी के ऑर्डर 22 रूल 3 के तहत कोर्ट में एप्लिकेशन दाखिल करनी होती है।
- अगर डिफेंडेंट की मृत्यु हो जाती है तो उसके कानूनी वारिसों को रिकॉर्ड पर लाने के लिए सीपीसी ऑर्डर 22 रूल 4 के तहत कोर्ट में एप्लीकेशन दाखिल करनी होती है।
- इन एप्लिकेशन में मृत व्यक्ति के कानूनी वारिस बताए जाते है और कोर्ट से याचिका की जाती है कि केस में उन्हे मृतक व्यक्ति के स्थान पर सब्सटीट्यूट कर दिया जाए।
- इन दोनों ही एप्लीकेशन के साथ एफिडेविट देना अनिवार्य होता है।
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समय सीमा
किसी पार्टी की मृत्यू हो जाने पर, कानूनी वारिस को रिकॉर्ड पर लाने की एप्लीकेशन फाइल करने की समय सीमा लिमिटेशन एक्ट के आर्टिकल 120 में दी गई है।
- प्लेंटिफ या डिफेंडेंट की मृत्यु हो जाने के बाद, कानूनी वारिसों को रिकॉर्ड पर लाने के लिए 90 दिन के भीतर कोर्ट में एप्लीकेशन लगानी होती है। यह 90 दिन प्लेंटिफ या डिफेंडेंट की मृत्यु के दिन से गिने जाते है।
- अगर इस समय सीमा के भीतर एप्लीकेशन फाइल नही की जाती है तो जिस पार्टी की मृत्यु हुई है उसके संबंध में मुकदमा समाप्त मान लिया जाता है।
- ध्यान दें कि अगर ऊपर बताई गई समय सीमा के भीतर एप्लीकेशन दाखिल न करने के आपके पास उचित कारण है तो आप अपने कारण का ब्यौरा देते हुए एक एप्लीकेशन फाइल कर सकते है और कोर्ट से याचिका पर सकते है कि कानूनी वारिसों को रिकॉर्ड पर लाने की याचिका मंजूर की जाएं।
वकील की जिम्मेदारी
सीपीसी के ऑर्डर 22 रूल 10ए के अनुसार, किसी सिविल केस में जब भी किसी वकील को अपनी पार्टी की मृत्यु के बारे में पता चलता है तो उसकी यह जिम्मेदारी बनती है कि वह कोर्ट को अपने अपने पक्ष की मृत्यु के बारे में बताएं। उसके बाद कोर्ट द्वारा सामने वाली पार्टी को उसके मौत का नोटिस दिया जाता है। ध्यान दें कि पार्टि की मौत के बाद भी, इस काम के लिए वकिल और मृत पार्टी के बीच में कॉन्ट्रैक्ट लागू माना जाता है।
इस लेख के माध्यम से हमने हमारे पाठकों को सिविल केस में किसी पक्ष की मौत हो जाने पर उसके कानूनी वारिसों को कैसे पार्टी बनाया जा सकता है? | In case of death of a party to a civil case, how can his legal heirs be made a party? के बारेमें जानकारी देनेकी कोशिश कि है। आशा है आपको यह लेख पसंद आया होगा। इसके बारे में आपका कोई सवाल हो तो आप अपना सवाल निचे कमेंट बॉक्स में पुछ सकते है। ऐसे हि कानूनी जानकारी के लिए आप हमारे इस पोर्टल apanahindi.com पर आवश्य भेट दे।
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