सिविल मुकदमों में अनावश्यक या आपत्तिजनक बातें कैसे हटवाएं? | How to get unnecessary or objectionable things removed in civil lawsuits?
जब कभी दो पार्टियों के बीच में कोई सिविल विवाद उत्पन्न होता है तो दोनों तरफ से काफी आरोप-प्रत्यापोप लगाए जाते है। अक्सर देखा जाता है कि जब विवाद कोर्ट में पहुंच जाता है तो पार्टियों द्वारा केस में या केस के जवाब में काफी ऐसी बातें भी लिखी जाती हैं जो केस को देखते हुए बिल्कुल अनावश्यक या आपत्तिजनक होती है। ये बातें सामने वाली पार्टी को बदनाम करने के लिए होती है या फिर कोर्ट को गुमराह करने के लिए लिख दी जाती है। आइए इस लेख के माध्यम से आज हम यह जानने की कोशिश कते है कि सिविल मुकदमों में अनावश्यक या आपत्तिजनक बातें कैसे हटवाएं? | How to get unnecessary or objectionable things removed in civil lawsuits? इस तरह के प्रावधान जिसका इस्तेमाल करके सिविल मुकदमों में गैर जिम्मेदारी वाली बातें हटवाई या बदलवाई जा सकती है।
प्लीडिंग्स क्या होती है?
सिविल विवाद में एक पार्टी सिविल सूट फाइल करती है। सामने वाली पार्टी उस सूट का लिखित जवाब देती है जिसे रिप्लाई या रिटर्न स्टेटमेंट कहा जाता है। जब पहली पार्टी सामने वाली पार्टी के जवाब का भी जावाब देना चाहे तो उसे रिजॉइंडर कहा जाता है। इन सारी लिखित दलीलों को ही आमतौर पर कोर्ट की भाषा में प्लीडिंग्स कहा जाता है।
कानूनः सीपीसी ऑर्डर 6 रूल 16
इस रुल को एक पार्टी के द्वारा अपने प्रतिद्वंदी की पूरी या कुछ प्लीडिंग्स अथवा दलीलों को हटवाने के लिए बदलने के लिए मजबूर करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। इस रुल में तीन आधार दिए गए हैं। जीसके तहत कोर्ट के समक्ष प्लीडिंग्स हटवाने या बदलवाने की एप्लीकेशन फाईल की जा सकती है। वे कुछ इस प्रकार हे-
- जा बातें अनावश्यक, अपवादजनक, तुच्छ या तंग करने वाली हो।
- जो बातें केस के फेयर ट्रायल पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली या उसमें उलझन डालने वाली या विलंब करने वाली हो।
- जो बातें न्यायालय की प्रक्रिया का दुरूपयोग हो।
एक पार्टी की एप्लीकेशन पर अगर कोर्ट संतुष्ट हो जाता है कि ऊपर दिए आधारों में से कोई भी आधार मौजूद है तो कोर्ट सामने वाली पार्टी को या तो उन बातों को हटाने के लिए या बदलने के लिए निर्देश दे सकता है।
क्या है सुप्रीम कोर्ट
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने काफी फैसलों में इस रूल के बारे में ऑब्जर्वेशन दी है। अब्दुल रजाक बनाम मंगेश राजाराम (2010) मामले में सुर्पीम कोर्ट ने कहा था कि आमतौर पर एक अदालत पार्टियों को यह निर्देश नहीं दे सकती कि उनकी दलीलें क्या होनी चाहिए या उन्हे अपनी दलीलें कैसे तैयार करनी चाहिए। लेकिन अगर अदालत संतुष्ट है कि रिकॉर्ड पर कुछ ऐसी प्लीडिंग्स मौजूद हैं जो सीपीसी ऑर्डर 6 रूल 16 के दायरें में आती हैं तो कोर्ट उन प्लीडिंग्स को हटाने या बदलने के लिए निर्देश दे सकती है। कोर्ट के द्वारा इस शक्ति का प्रयोग बहुत सावधानी और सतर्कता के साथ किया जाना चाहिए। इस प्रावधान पर सुप्रीम कोर्ट के लगभग सभी फैसलों का सार यही है।
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कानूनी सलाह
यह बडी हैरानी की बात है कि यह प्रावधान इतना उपयोगी होने के बावजूद कोर्ट प्रैक्टिस में इसका इस्तेमाल ज्यादा देखने को नहीं मिलता। हम कितने मामलों में यह देखते है कि केस में या केस के जवाब में इतनी ऐसी बातें लिखी होती है जिनका कानून की नजर से केस से कोई लेना-देना ही नहीं होता। इन बातों का मकसद केवल कोर्ट के समक्ष एक गलत भूमिका बनाना होता है। अगर आपके सामने ऐसी कोई परिस्थिति आती है तो आप अपने वकील से उचित कानूनी परामर्श लेते हुए सीपीसी ऑर्डर 6 रूल 16 के तहत एप्लीकेशन लगवाकर कोर्ट से गुजारिश करें कि सामने वाली पार्टी को उन बातों को हटाने के लिए या बदलने के लिए निर्देश दिए जाए।
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इस लेख के माध्यम से आज हमने सिविल मुकदमों में अनावश्यक या आपत्तिजनक बातें कैसे हटवाएं? | How to get unnecessary or objectionable things removed in civil lawsuits? इसके बारेमें जानने की कोशिश की है। आशा है के आपको यह लेख पसंद आया होगा। इसी तरह के कानूनी जानकारी पाने के लिए और सिखने के लिए आप हमारे इस पोर्टल apanahindi.com पर आवश्य भेट दें।
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