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धारा 378 और धारा 379 आइ.पी.सी. क्या है? | What is Section 378 and 379 of IPC

धारा 378 और धारा 379 आइ.पी.सी. क्या है? | What is Section 378 and 379 of IPC



धारा 378 और धारा 379 यह भारतीय दंड संहिता 1860 मे चाप्टर 17 में दिया गया है। इस धारा 378 के तहत कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के कब्ज़े में से कोई चल संपत्ति उसकी सम्मति के बिना बेईमानी के इरादेसे ले लेना का आशय रखते हुए हटा लेता है तो उसने चोरी की यह कहा जाता है। चोरी करने के तीन आवश्यक तत्व पुरी होनी चाहीए जैसे कि संपत्ति चल संपत्ति में होनी चाहिए। संपत्ति का उसके स्थान से हटाना आवश्यक है। तीसरा तत्व है कि संपत्ति पर किसी अन्य व्यक्ति का कब्ज़ा होना चाहिए। और जब आरोपी का कृत्य धारा 378 के अनूसार शाबित होता है तो आरोपी को धारा 379 के तहद सजा दि जाती है। जिसके अनूसार आरोपी को चोरी करने के आरोप में कारावास से दंडित किया जाएगा, जो तीन साल तक हो सकता है या जुर्माना या दोनों के साथ दंडित किया सकता है। आईये इस लेख के माध्यम से हम धारा 378 और धारा 379 आइ.पी.सी. क्या है? | What is Section 378 and 379 of IPC के बारे में विस्तार से जानकारी हासिल करते है।


भारतीय दंड विधान धारा 379
चोरी के लिए दंड – 

जो कोई चोरी करेगा, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दंडित किया जाएगा।


Section 379 in The Indian Penal Code
Punishment for theft. – 

Whoever commits theft shall be pun­ished with imprisonment of either description for a term which may extend to three years, or with fine, or with both.


Classification of offence

  1. Punishment – 3 years Imprisonment, fine or both
  2. Cognizable
  3. Non-Bailable
  4. Triable by any Magistrate
  5. Compoundable by the owner of stolen property with the permission of the court



टिप्पणी

इस धारा में चोरी के लिए सजा का प्रावधान दिया गया है। हालाँकि, धारा 378 यह परिभाषित करती है कि, चोरी क्या है। अतः चोरी शब्द की परिभाषा पर दृष्टि डालना उचित होगा


भारतीय दंड विधान
धारा 378 चोरी –

जो किसी व्यक्ति के कब्जे में से, उस व्यक्ति की सम्मती के बिना, कोई जंगम सम्पत्ति बेईमानी से ले लेने का आशय रखते हुए वह संपत्ति ऐसे लेने के लिए हटाता है, वह चोरी करता है, यह कहा जाता है।

स्पष्टीकरण 1 – जब तक कोई वस्तु भूबद्ध रहती है,जंगम संपत्ति न होने से चोरी का विषय नहीं होती, किंतु ज्यों ही वह भूमि से पृथक की जाती है, वह चोरी का विषय होने योग्य हो जाती है।

स्पष्टीकरण 2 – हटाना, जो उसी कार्य द्वारा किया गया है जिससे पृथक्करण किया गया है, चोरी हो सकेगा।

स्पष्टीकरण 3 – कोई व्यक्ति किसी चीज का हटाना कारित करता है, वह कहा जाता है जब वह उस बाधा को हटाता है जो उस चीज को हटाने से रोके हुए हो या जब वह उस चीज को किसी दूसरी चीज से पृथक करता है तथा जब वह वास्तव मे उसे हटाता है।

स्पष्टीकरण 4 – वह व्यक्ति जो किसी साधन द्वारा किसी जीव-जन्तु का हटाना कारित करता है, उस जीव-जन्तु को हटाता है; और यह कहा जाता है कि वह ऐसी हर एक चीज को हटाता है जो इस प्रकार उत्पन्न की गई गति के परिणामस्वरुप उस जीव-जन्तु द्वारा हटायी जाती है।

स्पष्टीकरण 5 – परिभाषा में वर्णित सम्मति अभिव्यक्त या विवक्षित हो सकती है, और वह या तो कब्जा रखने वाले व्यक्ति द्वारा, या किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा, जो उस प्रयोजन के लिये अभिव्यक्त या विवक्षित प्राधिका रखता है, दी जा सकती है।


The Indian Penal Code
Section 378 Theft – 

Whoever, intending to take dishonestly any moveable property out of the possession of any person without that per­son’s consent, moves that property in order to such taking, is said to commit theft.

Explanation 1 - A thing so long as it is attached to the earth, not being movable property, is not the subject of theft; but it becomes capable of being the subject of theft as soon as it is severed from the earth.

Explanation 2 - A moving effected by the same act which affects the severance may be a theft.

Explanation 3 - A person is said to cause a thing to move by removing an obstacle which prevented it from moving or by sepa­rating it from any other thing, as well as by actually moving it.

Explanation 4 - A person, who by any means causes an animal to move, is said to move that animal, and to move everything which, in consequence of the motion so caused, is moved by that animal.

Explanation 5 - The consent mentioned in the definition may be express or implied, and may be given either by the person in possession, or by any person having for that purpose authority either express or implied.


अभियोक्ता द्वारा सिद्ध किए जाने वाले बातें:-

चोरी का कार्य करने के लिए आवश्यक तत्व
  1. किया गया कार्य किसी नाजायज उद्देश्य से आय प्राप्त करने के इरादे से किया गया होना चाहिए।
  2. आय चल संपत्ति होनी चाहिए।
  3. ऐसी संपत्ति किसी अन्य व्यक्ति के कब्जे से ली जानी चाहिए।
  4. संपत्ति को मालिक की सहमति के बिना लिया जाना चाहिए।
  5. ली गई संपत्ति को कब्जे वाले व्यक्ति को वापस न करने के इरादे से लिया जाना चाहिए।


किया गया कार्य चोरी मे कब शामिल हो सकती है? 

  1. यदि छिन कर लि गई बंदूक को अभियुक्त द्वारा फेक दिया जाता है, तो इस कृत्य को चोरी का अपराध नहीं बनता है। (1985(2)crime1067)
  2. यदि अभियुक्त ने किसी व्यक्ति के कब्जे से ली गई वस्तु को उस व्यक्ति को वापस करने के आशय से ले लेता है तो यह कृत्य अपराध नहीं होगा।
  3. उक्त धारा के अनुसार वस्तु या चल संपत्ति किसी व्यक्ति के कब्जे में होनी चाहिए। अर्थात यदि ऐसी वस्तु किसी के कब्जे में न हो और वस्तु गुम हो जाए तो वह कार्य चोरी की श्रेणी में नहीं आता है।
  4. इस धारा के अनुसार वस्तु/संपत्ति का स्वामित्व महत्वपूर्ण नहीं है, कब्जा महत्वपूर्ण माना गया है।
  5. संपत्ति के मालिक की सहमति के अभाव में और माल ले जाने के समय नाजायज उद्देश्य, चोरी के अपराध का गठन करने के लिए आवश्यक हैं।
  6. चोरी तभी अपराध होगी जब दूसरे का नुकसान हो और अपना फायदा हो।
  7. अगर आरोपी के कब्जे से खून से सना सामान बरामद हो जाता है तो इससे हत्या का आरोप साबित नहीं होगा। लेकिन यह कहा जा सकता है कि आरोपितों ने सामान चोरी किया।
  8. यदि संपत्ति दूसरे के कब्जे से दूसरे को नुकसान पहुंचाने और खुद को लाभ पहुंचाने के इरादे से स्थानांतरित की जाती है, तो हस्तांतरणकर्ता का इरादा नाजायज माना जाएगा। (AIR 1957 (SC) 369)
  9. जिनसे ऋण की राशि की वसूली की जानी है। यदि ऐसे व्यक्ती का माल साहूकार द्वारा उसकी सहमति के बिना ले लिया जाता है, तो यह चोरी की परिभाषा में आता है।
  10. चोरी साबित करने के लिए केवल स्वामित्व पर्याप्त नहीं है, कब्जा स्थापित किया जाना चाहिए। (1959 Cr.L.J.1460)
  11. गलतफहमी पर आधारित सहमति कानूनी सहमति नहीं हो सकती।
  12. धोखाधड़ी से प्राप्त सहमति को अवैध सहमति ठहराया जाता है।
  13. अभियोजन पक्ष को पहले यह साबित करना होगा कि आय चोरी का सामान है। इसे स्थापित करने के बाद, यह बताने का दायित्व अभियुक्त पर है कि सामान उसके कब्जे में कैसे आया।
  14. अभियोजन पक्ष को यह साबित करना होगा कि आरोपी का मकसद ईमानदार नहीं था।
  15. यदि धारा 378 के सभी तत्व पूरे नहीं होते हैं तो अभियुक्त द्वारा किया गया कार्य इस धारा के अंतर्गत नहीं आ सकता है।

जीरह/क्रॉसएग्जामिनेशन के लिए नमूना प्रश्न-

उदाहरण- कुछ लोग सुबह-सुबह कंप्लेनंट की दुकान में घुसे और वहां से पैसे चुरा लिए इस तरह के कथित मामले में कंप्लेनंट की जिरह/क्रॉसएग्जामिनेशन इस प्रकार हो सकती है-
  1. घटना के बाद, आपने एक अज्ञात व्यक्ति के खिलाफ पुलिस शिकायत दर्ज की।
  2. आपने शिकायत दर्ज कराने के बाद पुलिस को आरोपी का नाम कभी नहीं बताया।
  3. पुलिस ने पड़ोसियों के कहने पर आरोपी के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है।
  4. वह व्यक्ति जो आपके पडोस में रहता है, वह यह कहने के लिए भी सामने नहीं आया कि उसने चोरी होते हुवे देखा है।
  5. क्या हुआ इसके बारे में आपको कोई वास्तविक जानकारी नहीं है।
  6. आपके पास जो स्टोर है उसिके नाम का बैंक खाता है। और आप व्यापारियों द्वारा एकत्र की गई सभी नकद राशि को उसी खाते में जमा करतें हैं।
  7. आप यह नहीं बता सकते कि घटना के एक दिन पहले कितना कारोबार हुआ था और आपके पास कितना रुपया प्राप्त हुवा था।
  8. घटना के 8 दिन पहले नल का पानी लेने को लेकर आरोपी और आपका झगड़ा हुआ था। इस संबंध में आरोपी ने आपके और आपकी पत्नी के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी।
  9. आप आरोपी से नाराज थे क्योंकि आरोपी ने आपके खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी।
  10. आपने संदेह के आधार पर आरोपी के खिलाफ झूठा मामला दर्ज किया है।
  11. आरोपी ने अपराध नहीं किया है।


आज इस लेख के माध्यम से हमने धारा 378 और धारा 379 आइ.पी.सी. क्या है? | What is Section 378 and 379 of IPC इसके बारे में सरल और आसान भाषामें जानकारी हासिल करनें की कोशिश की है। आशा है आपको यह लेख पसंद आया होगा। इसी तरह के कानूनी जानकारी पाने के लिए आप हमारे इस पोर्टल apanahindi.com पर आवश्य भेट दें।



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