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आई.पी.सी. धारा 353 क्या है? | What is Section 353 of IPC

आई.पी.सी. धारा 353 क्या है? | What is Section 353 of IPC


धारा 353 यह भारतीय दंड संहिता 1860 मे चाप्टर 16 में दिया गया है। इस धारा के अनुसार यदि कोई व्यक्ति किसी लोक सेवक को अपनी ड्यूटी कर रहे व्यक्ति पर अपने बल का इस्तेमाल करके हमला करने की कोशिश करता है या उसे अपनी ड्यूटी करने से रोकता है तो ऐसे व्यक्ति को न्यायालय 2 वर्ष की कारावास या जुर्माना से दंडित किया जाता है। तो आईये इस लेख के माध्यम से हम आज आई.पी.सी. धारा 353 क्या है? | What is Section 353 of IPC इसके बारे में जानकारी हासिल करते है।


भारतीय दंड संहिता धारा 353-
लोक-सेवक को अपने कर्तव्य के निर्वहन से भयोपरत करने के लिए हमला या आपराधिक बल का प्रयोग-

जो कोई किसी ऐसे व्यक्ति पर, जो लोक-सेवक हो, उस समय जब वैसे लोक-सेवक के नाते वह उसके अपने कर्तव्य का निष्पादन कर रहा हो, या इस आशय से कि उस व्यक्ति को वैसे लोक-सेवक के नाते अपने कर्तव्य के निर्वहन से निवारित करे या भयोपरत करे या ऐसे लोक-सेवक के नाते उसके अपने कर्तव्य के विधिपूर्ण निर्वहन में की गयी या की जाने के लिए प्रयतित किसी बात के परिणामस्वरूप हमला करेगा या आपराधिक बल का प्रयोग करेगा, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि दो  वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दंडित किया जाएगा।


Section 353 of The Indian Penal Code
Assault or criminal force to deter public servant from discharge of his duty-

Whoever assaults or uses criminal force to any person being a public servant in the execution of his duty as such public servant, or with intent to prevent or deter that person from discharging his duty as such public servant, or in consequence of anything done or attempted to be done by such person in the lawful discharge of his duty as such public serv­ant, shall be punished with imprisonment of either description for a term which may extend to two years, or with fine, or with both.

Classification of Offence

  1. Punishment – Imprisonment for 2 years & fine
  2. Cognizable
  3. Non-Bailable
  4. Non-Compoundable
  5. Triable by any Magistrate


किसी सरकारी अधिकारी अथवा लोक सेवक को उसे उसके कर्तव्यों का पालन करने से रोकने के लिए उस लोकसेवक को डराने के लिए किया गया हमला या आपराधिक बल का प्रयोग करने वाले व्यक्ति को इस धारा के अनुसार अपराधी माना जाता है।

धारा 353 के अनुसार अभियुक्त याने आरोपी के विरुद्ध अपराध को सिद्ध करने के लिए सरकार याने अभियोजन पक्ष को निम्नलिखित तत्वों के संबंध में साक्ष्य प्रस्तुत करना चाहिए।


  1. जिस व्यक्ति के खिलाफ हमला या आपराधिक रूप से योग्य बल का इस्तेमाल किया गाया था वह व्यक्ति वह एक लोक सेवक था।
  2. ऐसे लोक सेवक के साथ मारपीट की गई या आपराधिक बल का प्रयोग किया गया।
  3. जब आरोपितों ने हमला किया तब वह व्यक्ति अपनी ड्यूटी कर रहा था। या उस व्यक्ति को ड्यूटी से रोकने या रोकने के इरादे से उस व्यक्ति पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग किया गया है।

टिप्पणी:-

लोक सेवक को रोकना यह इस धारा के अंतर्गत अपराध नहीं है। इस धारा के तहत अपराध करने के लिए, लोकसेवक पर उस आपराधी द्वारा हमला किया जाना या आपराधिक बल का प्रयोग किया जाना आवश्यक है।


अगर पुलिस अधिकारी यह नहीं बताता कि वह कौन है तो इस धारा के तहत कोई अपराध नहीं होता। 1963(1) Cr.L.J. 26

अगर एक पुलिस अधिकारी किसी व्यक्ति को रुकने की चेतावनी दी है और आरोपी ने कार नहीं रोका और उसने पुलिस अधिकारी की मोटर साइकिल को टक्कर मारी है, तो इस तरह की हरकत इस धारा के तहत अपराध नहीं है।


यदि जारी किया गया वारंट अवैध है, तो इसे चुनौती देना कोई अपराध नहीं है। अगर वारंट पर अदालत की मुहर या जज साहब के हस्ताक्षर नहीं हैं, तो वारंट अवैध है। यदि सीआर.पी.सी.  मे दिए गए तलाशी के प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए तलाशी ली जाती है तो तलाशी का विरोध करना अपराध नहीं होगा। 

इस धारा के तहत जिरह/क्रॉस ऐग्जामिनेशन के लिए नमूना प्रश्न:-

कई बार सादे कपड़ों में पुलिसकर्मी आपके खिलाफ कार्रवाई करने की मंशा से आपको हिरासत में लेने की कोशिश करता है। ऐसे में संबंधित व्यक्ति को कानून द्वारा अपना बचाव करने का अधिकार दिया जाता है। ऐसे मामलों में, कानून द्वारा आपको उस व्यक्ति से उसका पहचान पत्र और अधिकारपत्र मांगने का और उसका निरीक्षण करने का पूरा अधिकार दिया है। ऐसे मामले में आरोपी के वकिल द्वारा जिरह/क्रॉस ऐग्जामिनेशन के रूप में निम्नलिखित प्रश्न पूछे जा सकते हैं।

  1.  खुद को पुलिसकर्मी बताने वाली अभियोजिका द्वारा दिया गया वारंट किसी भी सक्षम अदालत द्वारा जारी नहीं किया गया था।
  2. वारंट पर तय तारीख निकल चुकी थी।
  3. वारंट पर मजिस्ट्रेट के हस्ताक्षर/मुहर नहीं थी।
  4. आरोपी ने जब उससे पहचानपत्र कि मांगा की तो उसने अपना पहचानपत्र नहीं दिखाया।
  5. आरोपी ने अपनी गिरफ्तारी से बचने के लिए कोई कदम नहीं उठाया और नाहीं लोक सेवक पर हमला किया।
  6. घटना के समय आसपास कई लोग मौजूद थे।
  7. आरोपी ने शिकायतकर्ता से पहचान पत्र मांगा तो वह भड़क गया और आरोपी पर हमला कर दिया। तब आरोपी ने अपना बचाव किया।
  8. क्या हमले के बाद लोक सेवक शारीरिक रूप से घायल हुआ था, क्या उसकी चिकित्सकीय जांच की गई थी?
  9. लोक सेवक पर हमला करते समय या आपराधिक बल का प्रयोग करते हुए, अभियुक्त ने लोक सेवक को उसके कर्तव्य को निभाने से रोकने के इरादे से कार्य नहीं किया।
  10. क्या अभियुक्त के विरुद्ध वारंट की सामग्री अभियुक्त को समझाई गई थी?
  11. घटना घटित होने के लगभग 4-5 दिनों के बाद, पुलिस रिपोर्ट दर्ज की जाती है, जिसमें अदालत के समक्ष देरी होने का कारण और उसका स्पष्टीकरण बताया गया है या नहीं।
  12. अभियुक्त ने किसी लोक सेवक के विरुद्ध हमला करने या आपराधिक बल प्रयोग करने के आशय से कार्य किया या नहीं।

टिप्पणीः-

  1. लोक सेवक को उसके कार्य में बाधा पहुँचाने का कार्य को इस धारा के अन्तर्गत अपराध नहीं माना जा सकता। इस धारा के तहत अपराध का गठन करने के लिए लोक सेवक पर हमला होने की आवश्यकता है।
  2. यदि पुलिस कांस्टेबल वर्दी में नहीं है, तो अभियोजन पक्ष को यह साबित करना होगा कि अभियुक्त जानता था कि वह एक पुलिस कांस्टेबल था।
  3. अगर पुलिस अधिकारी यह नहीं बताता कि वह कौन है तो इस धारा के तहत कोई अपराध नहीं है.
  4. अगर वारंट पर अदालत की मुहर या मजिस्ट्रेट के हस्ताक्षर नहीं हैं, तो वह वारंट अवैध है।

यह भी पढे- सहमति से तलाक कैसे मिलता है | 

इस लेख मे हमने हमारे पाठकों को आई.पी.सी. धारा 353 क्या है? | What is Section 353 of IPC इसके बारेमें संपुर्ण जानकारी देनेकी कोशिश की है। आशा है आपको यह लेख पसंद आया होगा। इसी तरह कानूनी जानकारी और लेख को पढने के लिए आप हमारे इस पोर्टल apanahindi.com पर आवश्य भेट दे।



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