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भारतीय भागीदरी अधिनियम, 1932 | Indian Partnership Act, 1932

भारतीय भागीदरी अधिनियम, 1932 | Indian Partnership Act, 1932



समय के साथ-साथ जैसे व्यापार जगत का विकास होता जा रहा है, वैसे ही व्यापार करने के स्वरूप भी बदलते जा रहे हैं। शुरू में लोग अकेले ही व्यापार करते थे परंतु आज का दौर साझेदारी का दौर है। आमतौर पर किसी भी बिजनेस को कुछ पार्टनर मिलकर शुरू करते हैं और चलाते हैं। व्यापार जगत में साझेदारी का इतना प्रचलन होने के बावजूद, व्यापार करने वाले लोगों में इस जानकारी का काफी अभाव है की साझेदारी के लिए भारत में एक अलग से कानून मौजूद है। आइए इस लेख के माध्य म से आज हम भारतीय भागीदरी अधिनियम, 1932 | Indian Partnership Act,  इस कानून के बारे में जानकारी हासिल करने की कोशिश करते है।

क्या है कानून

भारतीय भागीदरी अधिनियम, 1932 | Indian Partnership Act, 1932 में साझेदारी से संबंधित कानून दिए गए हैं। यह अधिनियम भागीदारी व्यापार के संचालन तथा भागीदारों के बीच होने वाले संझौतों को अधिनियमित करता हैं और उनसे जुडे विवादों का निपटारा करता हैं।

भागीदारी का अर्थ क्या है?

कोई भी काम अगर लाभ कमाने के उद्देश से किया जाता है तो वह व्यापार कहलाता है। भागीदारी में दो या दो से अधिक व्यक्ति स्वेच्छा से किसी वैधानिकर व्यापार को चलाने के लिए सहमत होते है, और व्यवसाय में अपनी पूंजी लगाते हैं तथा लाभ को आपस में बांट लेते हैं।

भागीदारी के लिए दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच भागीदारी का करार होना चाहिए। परंतु यह आवश्यक नहीं है, की करार लिखित या मौखिक हो। मात्र आचरण से भी भागीदारी उत्पन्न हो सकती है।

साझेदारी संलेख (पार्टनरशिप डीड)

भागीदारी अधिनियम के तहत साझेदारी का लिखित रूप में होना आवश्यक नहीं है परंतु फिर भी कोई भी साझेदारी व्यापार शुरू करने से पहले हमेशा पार्टनरशिप डीड बनानी चाहिए।
  1. डीड में फर्म का नाम व पता, साझेदारों के नाम व पते, साझेदारों की पूंजी, लाभ विभाजन अनुपात, पूंजी पर ब्याज के संबंध में प्रावधान, फर्म की लेखा पुस्तके रखने की विधि इत्यादि बिल्कुल विस्तार से लिखें।
  2. डीड में विवादों के निपटारे के संबंध में मध्यस्थता तथा आर्बिट्रेशन का बिंदु अवश्य लिखें जिससे कि विवादों को एक छोटी अवधि में निपटाया जा सके।
  3. डीड से जुडे विवाद किस कानून और कोर्ट के दायरे में आएगें यह भी अवश्य लिखें।

भागीदारी फर्म का रजिस्ट्रिकरण

भागीदारी अधिनियम के तहत किसी साझेदारी का रजिस्ट्रीकरण अनिवार्य नहीं है। परंतू इस अधिनियम की धारा 69 में रजिस्ट्री न कराने के प्रभाव साफ तौर से उल्लेखित हैं जो इस प्रकार हैंः
  1. किसी कॉन्ट्रैक्ट को लेकर या इस अधिनियम को लेकर, एक पार्टनर दूसरे पार्टनर या फर्म के खिलाफ कोर्ट में मुकदमा नहीं कर सकता।
  2. भागीदारी फर्म बाहर के किसी तीसरे व्यक्ति के खिलाफ किसी कॉन्ट्रैक्ट को लेकर कोर्ट में मुकदमा नहीं लड सकती।

कानूनी सलाह

  1. कोई भी भागीदारी व्यापार शुरू करने से पहले उचित कानूनी परामर्श के साथ विस्तार से पार्टनरशिप डीड अवश्य बनाएं। यह डीड न केवल वर्तमान को ध्यान में रखते हुए बल्कि भविष्य की जरूरतों को भी ध्यान में रखते हुए बनाई जानी चाहिए।
  2. साझेदारी फर्म को रजिस्टर अवश्य कराएं जिससे कि किसी विवाद उत्पन्न हो जाने की स्थिति में कोर्ट केस बिना किसी बाधा के लडे जा सके।
  3. अपनी भागीदारी फर्म का ट्रेडमार्क अवश्य फाइल कराएं जिससे कि आपकी फर्म का नाम या पहचान चिन्ह कोई दूसरा व्यक्ति इस्तेमाल न कर पाए।

इस लेख के माध्यम से हमने हमारे पाठकों को भारतीय भागीदरी अधिनियम, 1932 | Indian Partnership Act, के बारेमें जानकारी देने का प्रयास किया है। आशा है आपको हमारा यह लेख पसंद आया होगा। यदी आपको हमारा यह लेख पसंद आया हो और आपको कोई सलाल पुछना चाहेते है तो आप निचे कमेंट बॉक्स में आपका सवाल पूछ सकते है। इसी तरह कानूनी जानकारी पाने के लिए आप हमारे इस पोर्टल apanahindi.com पर आवश्य भेट दें।


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