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प्ली बारगेनिंग क्या है | What is Plea Bargaining

प्ली बारगेनिंग क्या है | What is Plea Bargaining


पिछले साल विभिन्न देशों से आए हुवे संबंधित तब्लीगी जमात के कई सदश्यों पर लगाए गए आरोपों को प्ली बारगेनिंग / दलील सौदेबाजी प्रक्रिया के माध्यम से अदालती मामलों से मुक्त कर दिया गया था ताकि ट्रायल में लंबेसमय तक लगने वाले समय को बचाया जा सके। इन विदेशी नागरिकों पर कोव्हिड-19 महामारी के दौरान जारी दिशा-निर्देशों और वीजा शर्तों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया था।

हालाँकि, भारत में एक दशक से अधिक समय से आपराधिक मामलों में फंसे आरोपियों के पास भी प्ली बारगेनिंग का विकल्प उपलब्ध है। लेकिन कानूनी जानकारी के अभाव में इसका प्रयोग अभी भी आम नहीं है। आइए इस लेख के माध्यम से आज हम प्ली बारगेनिंग क्या है | What is Plea Bargaining के बारें में जाननें की कोशिश करते है।



प्ली बारगेनिंग क्या है? | What is Plea Bargaining

प्ली बारगेनिंग यह एक स्वैच्छिक प्रक्रिया है जिसमें अपराधी अभियोजन / शिकायतकर्ता पक्ष से समझौता करके अपने अपराध को कोर्ट के सामने स्वीकार करता है। और अपने लिए कानून के तहत निर्धारित सजा से कम सजा प्राप्त करने के लिए मांग भी करता है।


प्ली बार्गेनींग कानून

वर्ष 2006 में आपराधिक प्रक्रिया संहिता (Cr.P.C.) में संशोधन किया गया था जिसमें अध्याय XXI-A के रुप में प्ली बारगेनिंग को शामिल किया गया। इसमें धारा 265 को शामिल किया गया है।



प्ली बार्गेनींग किन मामलों में लागू होता है।

  1. जहां अधिकतम सजा 7 साल की कैद है।
  2. जहां अपराध देश की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को प्रभावित नहीं करता है।
  3. जब अपराध किसी महिला या 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चे के खिलाफ न हो।


प्ली बार्गेनींग की प्रक्रिया क्या है?

  1. आवेदक अदालत में एक याचिका एवं हलफनामा प्रस्तुत करता है। इस याचिका एवं हलफनामें में आवेदक द्वारा इस बात की जानकारी दी जाती है कि याचिकाकर्ता अपनी स्वेच्छा से इसे प्राथमिकता दे रहा है और वह अपराध के लिये कानून में प्रदान की गई सजा की  प्रकृती और प्रभाव को समझता है।
  2. याचिका के आधार पर अदालत अभियोजन पक्ष, इन्वेस्टिगेटिंग औफीसर और शिकायतकर्ता / पीडित को सुनवाई के लिये नोटिस जारी करती है।
  3. इसके बाद अदालत अभियोजक, जाँच अधिकारी और पीडित को मामले के संतोषजनक निपटान के लिए बैठक आयोजित करने की अनुमति देती है जिसमें आरोपी द्वारा पीडिता को मुआवजे का भुगतान और अन्य खर्च देना होता है।
  4. एक बार आपसी संतुष्टि हो जाने के बाद, अदालत सभी पक्षों और पीठासीन अधिकारी द्वारा हस्ताक्षरित किया हुवा एक रिपोर्ट के माध्यम से व्यवस्था को औपचारिक बना देती है।
  5. अगर किसी वजहसे प्ली बार्गेनिंग फेल  हो जाती है तो केस वापस ट्रायल कोर्ट के सामने भेज दिया जाता है जहां दोबारा उसका ट्रायल शुरू किया जाता है।


वैसे तो धारा 265E के अनुसार कोर्ट द्वारा आरोपी पर लागाई धाराओं के अनुसार उसकी आधी या एक चौथाई सजा दे सकती है। लेकिन फिर भी कोर्ट इन मामलों में न्यूनतम से न्यूनतम सजा सुनाती है। ज्यादातर मामलों में तो बस यही देखा जाता है की प्ली बार्गेनिंग के बाद कोर्ट के द्वारा याचिका कर्ता को सिर्फ जुर्माना पर छोड दिया जाता है। और कोर्ट का समय खतम होने तक न्यायालय मे बिठाया जाता है। और न्यायालय के मंजूरी लेकर ही जा सकता है।

अन्य प्रमुख कानूनी बातें

  1. ट्रायल कोर्ट में पुलिस द्वारा चार्जशीट फाइल करने बाद से लेकर कोर्ट का जजमेंट आने से पहले किसी भी स्टेज पर प्ली बार्गेनींग के आवेदन का लाभ लिया जा सकता है।
  2. एक व्यक्ति अपने जीवन में प्ली बार्गेनिंग का आवेदन सिर्फ एक ही बात कर सकता है। इसलिए इसका उपयोग सोच समझ कर किया जाना चाहिए।
  3. एक ऐसा अपराधी जिसे मृत्युदंड, आजीवन कारावास या सात वर्ष से अधिक की सजा दी गई है, वह अध्याय XXI-A के तहत प्ली बार्गेनिंग का उपयोग नहीं कर सकता है।



इस लेख के माध्यम से हमने हमारे पाठकों को प्ली बारगेनिंग क्या है | What is Plea Bargaining इसके बारेमें जानकारी देने का प्रयास किया है। आशा है के आपको हमारी यह जानकरी पसंद आई होगी। ऐसे ही कानूनी जानकारी के लिए आप हमारे इस पोर्टल apanahindi.com पर आवश्य भेट दें।





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