डिफॉल्ट बेल क्या होता है? | What is default bail?
जब कभी किसी व्यक्ति को किसी अपराध मे पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया जाता है तब पुलिस एफआईआर दर्ज करने के बाद अथवा आरोपी को गिरफ्तार करने के बाद कानून के नुसार बताए गए समय सीमा के अदर चार्जशिट फाईल करना अनिवार्य होता है। यही पुलिस द्वार चार्जरशिट दाखिल नही कीया जाता तो आरोपी को कानून और संविधानीक अधिकार से जमानत पर रिहा किया जाता है। आइये इस लेख के माध्यम से हम अगर पुलिस जांच पूरी करने में देरी करे तो क्या आरोपी को जमानत दी जा सकती है क्या इसके बारेमे चर्चा करते है और जानने की कोशिश करते है।
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अगर पुलिस जांच पूरी करने में देरी करे तो क्या आरोपी को जमानत दी जा सकती है
किसी भी मामले मे शिकायत मिलने पर पुलिस द्वारा वह अपराध गंभीर हो तो एफआईआर दर्ज किया जाता है और उस अपराध के सिलसीले मे जांच पडताल करने के लिए आरोपी को गिर्फतार कर लिया जाता है।उसके बाद मामले की जांच पूरी करने के बाद सीआरपीसी की धारा 173 के तहत उस क्षेत्राधिकार के न्यायालय में चार्जशीट फाइल की जाती है। सीआरपीसी की धारा 173 में साफ लिखा है कि पुलिस द्वारा प्रत्येक मामले की जांच अनावश्यक देरी के बिना पूरी की जानी चाहिए। आमतौर पर लंबी व लंबित जांच की वजह से आरोपी व्यक्ति को बहुत लंबे समय तक हिरासत में रहना पडता है जिससे आरोपी और उसके परिवार वालों को बहोतसारी कठिनाइयों का सामना करना पडता है। आइए जाने एक अलग प्रकार की बेल में जिसे आरोपी व्यक्ति द्वारा संबंधित कोर्ट से मांगा जा सकता है जिसे बेल बाय डिफॉल्ट भी कहते है। अगर पुलिस द्वारा निर्धारित समय के अंदर चार्जशीट फाइल ना की जाए तो आरोपी को कानून डिफॉल्ट बेल मिलता है। वह किस तरह मिलता है आइए जानते है।
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डिफॉल्ट बेल क्या होता है?
- जब पुलिस जांच एजेंसियो की जांच 10 साल से अधिक की सजा के मामलों में 90 दिन के भीतर और 10 साल से कम की सजा के मामलों में 60 दिन के भीतर पूरी न हुई हो और उन्होने चार्जशीट दायर नही कीया हो तो सीआरपीसी की धारा 167(2) के तहत किसी भी अपराध के मामलों मे गिरफ्तार किये हुवे आरोपी को बेल दी जा सकती है जिसे डिफॉल्ट बेल कहते है। यह प्रावधान लंबी व प्रलंबित जांच के नुकसानों को नियंत्रित करने के लिए बनाया गया है।
- दिल्ली हईकोर्ट ने सुभाष बहादुर बनाम राज्य में 6 नवंबर 2020 को यह साफ किया था कि डिफॉल्ट जमानत का अधिकार किसी भी आरोप मे गिरफ्तार हुवे आरोपी द्वारा विशेष रूप से क्षेत्राधिकार वाले न्यायालय में आवेदन करने पर निर्भर नहीं होता। ऐसे मामलों में जहां 60 दिन या 90 दिनों की वैधानिक अवधि समाप्त हो गई हो वहीं आरोपी कोई औपचारिक आवेदन किए बिना ही जमानत पर रिहा होने का हकदार होता है बशर्ते कि वह जमानत प्रस्तुत करने के लिए तैयार हो।
इस तरह के डिफॉल्ट बेल के आवेदन को न्यायालय मे प्रस्तुत करने के लिए 60 दिन या 90 दिन कि अवधि समाप्त होते ही आरोपी द्वारा जमानत के लिए आवेदन रखा जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट की डिफॉल्ट बेल पर टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच द्वारा फखरे आलम बनाम उत्तर प्रदेश राज्य में 15 मार्च 2021 को डिफॉल्ट बेल को लेकर महत्तपूर्ण टिप्पणी की थी। जिसमे कोर्ट ने कहा था कि सीआरपीसी की धारा 167(2) के पहले प्रावधान के तहत यह एकमात्र वैधानिक अधिकार नहीं, बल्कि यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत कानूनी प्रक्रिया का भी हिस्सा है। कोर्ट ने कहा था कि धारा 167(2) की शर्त पूरी होने पर किसी भी मामले के आरोपी को जमानत पर रिहा किया जाना यह उस आरोपी का मौलिक अधिकार है।
आज हमने इस लेख के माध्यम से हमारे पाठको को अगर पुलिस जांच पूरी करने में देरी करे तो क्या आरोपी को जमानत दी जा सकती है क्या इसके बारेमे चर्चा के माध्यम से जानकारी देने की कोशिश किए है। आशा है आपको यह लेख पसंद आया होगा। यदि आपको यह लेख पसंद आया हो तो इसे अपने दोस्तो के साथ जरून शेयर करे।
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