False Affidavit पर सजा ? | झूठा शपथ पत्र देने पर सजा | अनुभाग 340 सीआरपीसी झूठा शपथ पत्र
जब भी किसी व्यक्ति को शपथ पर कोई बयान देना होता है और वह बयान लिखीत स्वरूप मे बनाने की आवश्यक्ता होती है तब वह व्यक्ति अपने बयान को एक कागज पर अथवा स्टाँम्प पर लिखता है तब वह ॲफिडेव्हिट कहलाता है।
अगर कोई व्यक्ति कोर्ट में झूठी गवाही अथवा झूठा ॲफिडेव्हिट दे तो क्या करें?
जब भी किसी कोर्ट मे कोई व्यक्ति द्वारा अपना कोई ॲफिडेव्हिट बनवाकर दिया जाता है और अटेस्ट करवाके उसे कोर्ट में दाखिल करवाया जाता है तो वह व्यक्ति आपने शपथपत्र के साथ वचनबध्द हो जाता है कि जो भी उसने अपने एफिजेविट में लिखा है वह उसके हिसाब से सच है। कई मामलो मे ऐसा भी होता है कि कोई एक पार्टी कोर्ट को गुमराह करने के लिए कोर्ट मे अपना झूठा ॲफिडेव्हिट फाईल कर देता है या झूठी गवाही दे देती है। जिससे कोर्ट को गुमराह कर उस पर भरोसा करता है। ऐसे परिस्थिति मे हम क्या करे इसके बारेमे हम जानने की कोशिश करते है।
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आई. पी. सी. की धारा 193 के नुसार कारवाईः
इस धारा को दो हिस्सों में बांटा गया है।
- अगर कोई व्यक्ती किसी न्यायालयीन प्रक्रिया मे किसी भी स्टेज पर कोई झूठा एविडेंस देता है तो उसे सात साल तक की सजा और जुर्माने का दंड हो सकता है। उदा- अगर कोई व्यक्ति न्यायालय में किसी केस की सुनवाई के दौरान ॲफिडेव्हिट देता है कि उस व्यक्ति के नाम कोई भी प्रोपर्टी नही हैं. लेकिन बाद में रिकॉर्ड में उसके नाम पर कोई प्रॉपर्टी निकलती है तो उसे इस कानून के तहत दंडित किया जा सकता है।
- अगर कोई व्यक्ति अन्य किसी न्यायालयीन मामले में झूठा एविडेंस देता है तो उसे 3 साल तक की सजा और जुर्माने से दंडित किया जा सकता है। उदा- अगर इलेक्शन के दौरान कोई भी कैंडिडेट रिटर्निंग ऑफिसर के समक्ष झूठी डिक्लरेशन फाइल करता है तो उसे इस कानून के तहत दंडित किया जा सकता है।
क्या सीधे कंप्लेंट दर्ज कीया जा सकता है?
सी.आर.पी.सी. की धारा 195 में साफ तौर पर लिखा गया है की, अगर कोई व्यक्ति कोर्ट में झूठी गवाही अथवा ॲफिडेव्हिट देता है तो उसके लिए प्राइवेट कंप्लेंट नहीं कीया जा सकता। इसका मतलब यह है की पार्टी खुद झूठी गवाही देने वाले के खिलाफ कंप्लेंट रजिस्टर नहीं कर सकती। इस धारा के अनुसार, जिस कोर्ट मे झूठी गवाही दी जाती है उस कोर्ट की लिखित शिकायत पर ही झूठी गवाही देने वाले व्यक्ति के खिलाफ कंप्लेंट रजिस्टर की जा सकती है।
सी.आर.पी.सी. धारा 340 के नुसार याचिका
अगर सामनेवाली पार्टी ने झूठी गवाही दी है अथवा झूठा ॲफिडेव्हिट फाईल किया है इसके बारेमे हमे अंदाजा हो गया हो तो हमे ऐसे परिस्थिति मे क्या करना इसके बारेमे देखते है। जैसा कि किसी व्यक्ति ने किसी कोर्ट के समक्ष झूठी गवाही दी है अथवा झूठा ॲफिडेव्हिचट दाया है तो जिस कोर्ट के समक्ष झूठी गवाही दी गई है या झूठा ॲफिडेव्हिट दीया गया है उसी कोर्ट के समक्ष सीआर.पी.सी. की धारा 340 के तहत एक याचिका लगा सकते है। इस के बाद अगर कोर्ट को लगता है की झूठी गवाही का अथवा झूठे ॲफिडेव्हिट का जुर्म किया गया है तो उस कोर्ट के द्वारा संबंधित फर्स्ट क्लास मॅजिस्ट्रेट को केस को चलाने के लिए लिखित शिकायत भेज दी जाती है। इसके बाद उस फर्स्ट क्लास मॅजिस्ट्रेट के समक्ष झूठी गवाही अथवा झूठा ॲफिडेव्हिट का केस चलया जाता है और फैसला सुनाया जाता है।
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काननी सलाह
आम तौर पर पारिवारीक मामलो मे पति पत्नी के बीच पारिवारिक मुकगमों मे झूठी गवाहियां देने का सिलसीला काफी देखने को मिलता हैं। इन मुकदमों मे तथ्यों के संदर्भ मे और आय या प्रॉपर्टी से संबंधित काफी झूठी गवाही देखने को मिलती है। अगर आपको लगता है कि समने वाली पार्टी ने झूठी गवाही अथवा ॲफिडेव्हिट दी है और आपके पास उसके खिलाफ पुख्ता सबूत हैं तो आप उसी कोर्ट में सीआर.पी.सी. 340 की तहत याचिका अवश्य लगाएं।
इस लेख के माध्यम से आपको यह जानकारी बाताने का पुरा प्रयास किया गया है के अगर कोई व्यक्ति कोर्ट में झूठी गवाही अथवा झूठा ॲफिडेव्हिट दे तो क्या करें? और उसपर कैसे कारवाई कि जाती है।
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