Header Ads Widget

Ticker

6/recent/ticker-posts

क्या आरोपी अपने ही केस में गवाह हो सकता है? | Difference Cr.P.C. Section 313 and 315

क्या आरोपी अपने ही केस में गवाह हो सकता है? | Difference Cr.P.C. Section 313 and 315


क्रिमिनल मामलों में कोर्ट के समक्ष अपने पक्ष में गवाह को लाना आसान बात है। लेकिन सुनवाई के दौरान आरोपी के बचाव के लिए आरोपी के एविडेंस के दौरान गवाह आकर आरोपी के बचाव में गवाही देते हैं। किसी एक केस कि पुख्ता जानकारी जितनी खुद आरोपी व्यक्ति को जितना पता होता है उतना किसी और गवाह को पता नही होता। कई बार कोर्ट के सुनवाई मे ऐसी परिस्थितियां बन जाती हैं के जब आरोपी व्यक्ति का खुद अपने ही केस में गवाह बनकर जरूरी तथ्य और सबूत कोर्ट के समक्ष रखना जरूरी हो जाता है। ऐसा कब किया जा सकता है इसके बारेमे जानने के लिए आइये हम, क्या आरोपी अपने ही केस में गवाह हो सकता है? Difference Cr.P.C. Section 313 and 315 आरोपी व्यक्ति खुद को गवाह कैसे बनाए? सीआर.पी.सी. धारा 313 के बयान और 315 के बयान में क्या अतर होता है? इसके बारेमे आज हम इस लेख के माध्यमसे चर्चा करते है।


आत्म-दोषारोपण के खिलाफ अधिकार

हमारे भारत में संविधान और सीआर.पी.सी. के तहत हर व्यक्ति को उन सवालों के जवाब में चुप रहने का अधिकार है जिनपर क्रिमिनल चार्ज लग सकता है। इसतरह का एक यह स्थापित कानून है जो के इसे राइट टू साइलेंट भी कहते है। आइये इसको हम संविधानीक तरिकोंसे समझते है।

  1. भारतीय संविधान में आर्टिकल 20 (3) के मुताबिक किसी भी अपराध के लिए आरोपी व्यक्ति को अपने खिलाफ गवाही देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।
  2. सीआर.पी.सी. की धारा 161 (2) के मुताबिक जब पुलिस किसी गवाह को एग्जामिन करती है तो वह गवाह उन सवालों का सही सही जवाब देने के लिए बाध्य नहीं है, जिन सवालों से उसके ऊपर क्रिमिनल चार्ज, या पेन्लटी या जब्ती आने की आशंका हो सकती है।
  3. किसी भी क्रिमिनल केस में जब अभियोजन पक्ष की तरफ से सारे गवाह खत्म हो जाते है, तो कोर्ट द्वारा सीआर.पी.सी. की धारा 313 के तहत आरोपी से सवाल जवाब किये जातें है, और आरोपी के बयान दर्ज होते हैं। यह इसलिए किया जाता है ताकि आरोपी व्यक्ति अपने ही खिलाफ सबूतों मे प्रकट होने वाली परिस्थितियों को खुद स्पष्टीकरण दे सके। सीआर.पी,सी. की धारा 313 (3) में साफ-साफ लिखा है कि, आरोपी व्यक्ति को उन सवालों के जवाब न देने पर या गलत जवाब देने पर दंडित नहीं किया जाएगा।


आरोपी व्यक्ति खुद को गवाह कैसे बनाए?

यहापर सवाल यह उठता है की, अगर कोई आरोपी अपनी मर्जी से अपने ही केस में खुद गवाह बनकर कोर्ट के समक्ष जाना चाहे तो वह कैसे कर सकता है।

  1. सीआर.पी.सी. की धारा 315 के तहत कोई भी आरोपी व्यक्ति एक सक्षम गवाह होता है। यह धारा कहती है कि कोई भी व्यक्ति जो किसी अपराध के लिए किसी क्रिमिनल कोर्ट के समक्ष आरोपी है, वह अपनी प्रतिरक्षा को नासाबित करने के लिए शपथ पर गवाही दे सकता है।
  2. इस धारा की शर्त यह है कि, आरोपी व्यक्ति को खुद को गवाह के रुप में बुलाए जाने के लिए कोर्ट के समक्ष एक लिखित प्रार्थना करनी होती है। अगर, आरोपी व्यक्ति कोर्ट के समक्ष गवाह के तौर पर जाना चाहता है। तो उसे सीआर.पी.सी. की धारा 315 के तहत कोर्ट में एक लिखित रुप से याचिका फाइल करनी होती है।
  3. यहां पर एक ध्यान दें कि अगर आरोपी व्यक्ति के पास अपने बचाव के लिए कोई भी सबूत है जैसे कि कोई डॉक्यूमेंट, फोटो, व्हिडियो इत्यादि तो उन सभी सबूतों को अपनी 315 की गवाही के दौरान कोर्ट के समक्ष अवश्य पेश कर दें।

सीआर.पी.सी. धारा 313 के बयान और 315 के बयान में क्या अतर होता है? (Difference Cr.P.C. Section 313 and 315)

यहांपर यह सवाल उठता है कि जब के सीआर.पी.सी. की धारा 313 के तहत भी आरोपी व्यक्ति का कोर्ट के समक्ष बयान दर्ज होते हैं तो धारा 315 के तहत बयान दर्ज करवाने की आवश्यक्ता क्या होती है? वह यह है की-

  1. सीआर.पी.सी. धारा 313 के बयान शपथ पर नहीं होते इसलिए उन्हें एविडेंस नहीं माना जा सकता। और धारा 315 के बयान शपथ पर होते है इसलिए उन्हे एविडेंस माना जाता है। धारा 313 के बयान में आरोपी व्यक्ति का क्रॉस-एग्जामिनेशन नहीं किया जाता है, जबकी धारा 315 के बयान में आरोपी व्यक्ति का क्रॉस-एग्जामिनेशन किया जा सकता है।
  2. सीआर.पी.सी. धारा 313 के बयान में सिर्फ बयान दर्ज होते है, जबकि धारा 315 के बयान मे आरोपी व्यक्ति द्वारा सबूतों को भी कोर्ट के समक्ष पेश किया जा सकता है।
  3. सीआर.पी.सी. की धारा 313 के बयान को कोर्ट के द्वारा दर्ज करवाए जाते हैं, जबकि धारा 315 के बयान आरोपी व्यक्ति द्वारा खुद अपनी मर्जी से ही दिए जा सकते हैं।


कानूनी सलाह

  1. हमने अक्सर न जाने कितने मामलों में यह देखा है कि, बचाव के लिए पर्याप्त सबूत होने के बावजूद भी आरोपी व्यक्ति के 313 के बयान दर्ज होने के बाद केस को सीधे अतिम बहस के लिए रखवा दिया जाता है। अगर आपके पास अपने बचाव के लिए अच्छे सबूत हैं और आप अपने केस को लेकर कॉन्फिडेंट हैं तो आप कोर्ट के समक्ष सीआर.पी.सी. धारा 315 की एप्लीकेशन लगाकर गवाह के तौर पर जरूर जाएं। अगर आपके पास अपने बचाव के लिए पुख्ता गवाह है, तो आप डिफेंस एविडेंस जरूर लीड करें और उन गवाहों को अपने बचाव में कोर्ट के समक्ष जरूर लाएं।
  2. अगर आरोपी व्यक्ति के पास कोई ठोस सबूत या तथ्य नही है तो आप सीआर.पी.सी. 315 की एप्लीकेशन न लगवाए क्योंकि यहां सामने वाला वकील क्रॉस-एग्जामिनेशन के सवालो के दौरान केस में फंसने का खतरा बढ सकता है।
  3. सीआर.पी.सी. धारा 315 में साफ साफ लिखा है कि, अगर कोई आरोपी खुद को गवाह के तौर पर कोर्ट के सामने नहीं पेश करता है तो उसके बारे में किसी भी पार्टी के द्वारा या कोर्ट के द्वारा कोई भी टिप्पणी नहीं की जा सकती और ना ही आरोपी के खिलाफ कोई अनुमान लगाया जा सकता है।


इस लेख के माध्यमसे हमने हमारे पाठको को सरल और आसान भाषामे क्या आरोपी अपने ही केस में गवाह हो सकता है? आरोपी व्यक्ति खुद को गवाह कैसे बनाए? सीआर.पी.सी. धारा 313 के बयान और 315 के बयान में क्या अतर होता है? यह समझाने की कोशिश की है। आशा है आप को यह लेख पसंद आया होगा। यदी आपको यह लेख पसंद आया तो इसे अपने दोस्तो के साथ शेयर करे और उन्हे भी कानूनी मदत करे।




यह भी पढे


थोडा मनोरंजन के लिए


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ