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धारा 325 क्या है | धारा 325 कब लगती है | What is Section 325 of I.P.C. in hindi

धारा 325 क्या है | धारा 325 कब लगती है | What is Section 325 of I.P.C. in hindi


धारा 326 क्या है?:-

यह भारतीय दंड संहिता 1860 के धारा 325 जो के कोई भी अपराधी स्वेच्छया से किसी भी व्यक्ती को गंभीर स्वरूप का चोट पहुचाता है जिस्से उस व्यक्ती की मृत्यू होने की संभावना हो. तब उस व्यक्ती को इस धारा 325 के अनुसार दोषी मान कर उसे सात साल का कारावास बो सकता है और जुर्माना भी हो सकता है।


धारा 325 – स्वेच्छया घोर उपहति कारित करने के लिये दण्ड-

उस दशा के सिवाय, जिसके लिये धारा 335 मे उपबन्ध है, जो कोई स्वेच्छया घोर उपहति कारित करेगा, वह दोनो में से किकसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जायेगा और जूर्माना से भी दण्डनीय होगा।

Section 325- Punishment for voluntarily causing grievous hurt.—

Whoever, except in the case provided for by section 335, voluntarily causes grievous hurt, shall be punished with imprisonment of either description for a term which may extend to seven years, and shall also be liable to fine.


Classification of offence:-

1) Punishment – Imprisonment for 7 years and fine
2) Cognizable
3) Bailable
4) Compoundable by the permission of court
5) Triable by any magistrate


धारा 325 कब लगती है?:-

इस धारा के तहत दर्ज किए गये मामले में सरकार पक्ष द्वारा को निम्नलिखित मुद्रोको साबित करना आवश्यक है।

  1. भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 320 में वर्णित अनुसार आरोपी ने पिडीत व्यक्ती को चोट पहुंचाई है।
  2. आरोपी द्वारा पिडीत व्यक्ती को चोट पहुंचाने या ऐसी चोट पहुंचाने के उद्देश्य से हो या एसा कोई कृत्य जिससे चोट पहुंचे एसे जानकारी और विचारों के साथ किया गया है।
  3. आरोपी द्वारा की गई गंभीर चोट यह जानबूझकर की गई है।


जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, अपराध करने के लिए, भारतीय दंड संहिता की धारा 320 में उल्लिखित विभिन्न गंभीर चोटों के बारे में सूचित किया जाना चाहिए। चोट गंभीर है या साधारण, यह डॉक्टर की गवाही या समग्र रूप से साक्ष्य द्वारा निर्धारित किया जा सकता है। यदि चोट भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 320 में वर्णित किये गये चोट मे नहीं है, तो ऐसी चोट को गंभीर चोट नहीं कहा जा सकता है। केवल शरीर के नाजुक हिस्से या शरीर के किसी महत्वपूर्ण हिस्से पर होने वाली चोटों को कानून द्वारा गंभीर चोट नहीं कहा जा सकता है।

इसी तरह, चूंकि एक घायल व्यक्ति लगातार 20 दिनों या उससे अधिक समय तक अस्पताल में ईलाज के लिए रहा है, तो उस व्यक्ति को लगी चोट को गंभीर चोट नहीं कहा जा सकता है। इसके लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 320 के तहत अनुपालन की आवश्यकता है।


न्याय निर्णय

  1. भारतीय दंड संहिता की धारा 325 के तहत आरोपी को दोषी ठहराने के लिए आरोपी (जैसा कि धारा 320 में उल्लिखित है) ने गंभीर चोट पहुंचाई है, यह साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है। इस तरह की चोट पहुंचाने का आरोपी का इरादा था यह साबित करना महत्वपूर्ण है। 1978Cr.L.J.1485
  2. आरोपी ने पिडीत व्यक्ति के पैर की हड्डी तोड़ कर उसे घायल कर दिया हो और साथ ही आरोपी ने घायलों के सिर में चोट भी पोहोचाया हो सकता है और यदी इन सब घायल व्यक्ती की मृत्यु हो जाती है तो आरोपी को भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 304 भाग 2 के तहत दोषी करार किया जाएगा और भारतीय दंड संहिता की धारा 325 लागू नहीं होगी। AIR1982(SC)1193
  3. आरोपी ने घायल व्यक्ति के सिर पर वार किया लेकिन घटना के एक हफ्ते बाद उनकी मौत हो गई ऐसा करने पर आरोपी को भारतीय दंड संहिता की धारा 325 के तहत दोषी पाया जाएगा। 1988 SCC (Cr) 953
  4. घटना उस समय हुई जब आरोपी अपना बचाव कर रहा था यदि ऐसा बचाव आरोपी द्वारा किया जाता है और सरकार पक्ष आरोपी के शरीर के चोटों का स्पष्टीकरण नहीं देता है, तो आरोपी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। 1992(2)Crimes458(All)
  5. घायल व्यक्ति ने उसके बयान मे उसे साइकिल की चेन, छड़ी और कुल्हाड़ी से मारा मारने का दावा किया एसे मामलो मे घायल व्यक्ती को ऐसे में जमीन पर गिरने से चोट लग सकती है, यदि ऐसा चिकित्सा अधिकारी द्वारा स्विकार किया जाता है, तो भी आरोपी को भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 325 के तहत दोषी पाया जाएगा।
  6. अगर चश्मदीद गवाह का सबूत है यह साबित करना सरकारी पार्टी की जिम्मेदारी नहीं है कि घटना के लिए आरोपी का एक विशिष्ट उद्देश्य था। 1977 Cr.L.J. 538




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