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चेक बाऊन्स होनेके बाद कौन-कौन से प्रकारके केसेस फाईल कर सकते है। | Types Of Cases After Cheque Bounce

 चेक बाऊन्स होनेके बाद कौन-कौन से प्रकारके केसेस फाईल कर सकते है। | Types Of Cases After Cheque Bounce


परिचय

चेक बाऊन्स होनेके बाद कौनसा केस फाईल कर सकते है एसे सवाल पुछनेके बाद कोईभी कह सकता है के चेक बाऊन्स होने के बाद निगोशियेबल ईंन्स्ट्रूमेंट एक्ट 1881 के शेक्शन 138 के नुसार कोर्टमे कंप्लेंट फाईल कर सकते है। लेकीन, यहा और एक सवाल आता है के निगोशियेबल ईंन्स्ट्रूमेंट एक्ट 1881 के शेक्शन 138 के अलावा और कोई अंन्य केस फाईल कर सकते है या नही। या अंन्य कोई दुसरे रास्ते है। तो ईसका जवाब हा मे है। दोस्तो, यदी चेक बाऊन्स होता है तो कौन-कौन से केसेस फाईल कर सकते है, ईसके बारेमे जानकारी आज हम इस लेख के माध्यम से समजने वाले है। 

जब भी चेक बाऊन्स होनोकी खबर किसी व्यक्ती को मिलती है। तब वह व्यक्ती किसी वकील के पास सलाह लेनेके लिये जाता है। तब वहापर उस व्यक्ती को यही सलाह दि जाती है के, वह दोषी के खिलाफ निगोशियेबल ईंन्स्ट्रूमेंट एक्ट 1881 के शेक्शन 138 के नुसार दोषी पार्टी को नोटीस भेजकर कोर्टमे कंप्लेन्ट फाईल करके कारवाई करे और साथही अपने चेक अमाऊंट को भी रिकव्हरी कर सकता है।

लेकीन यहापर यह सवाल आता है के अगर दोषी पार्टीको वक्तपर नोटीस ना दि जाये और साथही कोई अंन्य कारण के वजाहसे निगोशियेबल ईंन्स्ट्रूनेंट एक्ट 1881 के शेक्शन 138 के नुसार कंप्लेन्ट फाईल करनेका समय खत्म हो जाता है। तब क्या दोषी पार्टी के खिलाफ कानूनी कार्यवाही करके रक्कम वसूल किया जा सकता है? तो दोस्तो ईसका जवाब हा मे है। तो हम ईस लेख के माध्यमसे चेक बाऊन्स होनेके बाद कौन-कौनसे प्रकारके केसस फाईल कर सकते है। ईसके बारेमे जानकारी हासील करने वाले है।



जब भी चेक बाउन्स होता है, तो कुछ इस प्रकार के भी केसेस दाखील कर सकते है।

1) दिवानी मुकदमा (सिव्हील केस):-

यह दिवानी मुकदमा सिव्हील प्रोसिजर कोड 1908 के सेक्शन 37 के नुसार लेनदार दोषी पार्टी के खिलाफ दिवानी मुकदमा याने सिव्हील केस फाईल कर सकता है। इस तरह के सिव्हील केस फाईल करके आप पांच से दस तारखोमे अपना पैसा ब्याज समेत दषी पार्टीसे वसूल कर सकते है। लेकीन, इस तरह के दिवानी मुकदमा दायर करने के लिए चेक अमाऊंट के हिसाबसे, दिवानी न्यायालय को कोर्ट स्टैम्प ड्यूटी देना जरूरी होता है। जो के निगोशियेबल इंन्स्ट्रूमेंट ॲक्ट 1881 का केस फाईल करने के लिए जितना होता है उस्से कई जादा होता है। इसतरह कोर्ट स्टैंप ड्यूटी जादा होनेके कारण जादातर लोग दिवानी मुकदमा दयर नही करते। याने बहोत कम लोग है जो दिवानी मुकदमा दायर करते है।


2) फौजदारी मुकदमा(क्रिमीनल केस):-

दिवानी मुकदमे के बाद, अगला जो मुकदमा है वह फौजदारी मुकदमा याने क्रिमीनल केस है।

फौजदारी मुकदमा के लेनदार कंपलेलंट होता है और देनदार आरोपी होता है। इस मामलोमे लेनदार देनदार के खिलाफ इंडियन पेनल कोड 1860 के सेक्शन 420 के नुसार, दोषी पार्टी के खिलाफ पुलीस स्टेशन मे कंपलेंट करके एफ.आय.आर. दर्ज कर सकता है। लेकीन जादातर पुलीस एसे मामलेमे एफ.आय.आर दर्ज करने से मना करती है, और लेनदार को दोषी पार्टी के खिलाफ वकिल के मार्फत नोटीस भिजवाकर, कोर्टमे निगोशियेबल इंन्स्ट्रूमेंट ॲक्ट 1881 के सेक्शन 138 के नुसार चेक बाउन्स का केस फाईल करने का सलाह देती है।



3) निगोशियेबल इंन्स्ट्रूमेंट ॲक्ट 1881:-

अब तक हमने, सिव्हील केस और क्रिमीनल केस दाखिल करनेके बारेमे जानकारी हासिल की, लेकीन अगला जो केस है वह हम सबको पता है। वह है निगोशियेबल इंन्स्ट्रूमेंट ॲक्ट 1881 के सेक्शन 138 के नुसार दायर किए जाने वाले चेक बाऊन्स का केस।

इस चेक बाऊन्स के केस को क्वासी सिव्हील और क्वासी क्रिमीनल कहा जाता है। इस तरह के केसस मे, दोषी पार्टी को सजा भी होती है और दोषी पार्टी के पास से चेक अमाउन्ट भी वसूल कर दिया जाता है। इस्से दोषी पार्टी पर दबाव बना रहता है। इसलीए जादातर लोग चेक बाऊन्स होनेपर निगोशियेबल इंन्स्ट्रूमेंट ॲक्ट 1881 के सेक्शन 138 के नुसार कोर्टमे कंपलेन्ट फाईल करना पसंद करते है। और एक खास बात यह है के इस तरह के केसेस मे कोर्ट स्टैंप ड्यूटी भी बहोत कम होती है। इसी वजाह से जादातर लोग इसीको ही  फर्स्ट प्रेफरेन्स देते है।

तो इसतह चेक बाऊन्स होनेके बाद चेक अमाऊंट रिकव्हर करने के लिए। और कानूनी कारवाही करने के लिए। ईन रास्तो का इस्तेमाल किया जाता है।



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