बेल एप्लीकेशन की सुनवाई कैसे होती है? | बैल एप्लीकेशन इन हिंदी | Procedure Of Bail Application | application for bail under crpc | bail procedure in india
परिचय
जब कहीं संगिन किस्म के अपसाघ किये जाता है, तब पुलिस थानेमे उस अपराघ के बारेमे खबर दी जाती है, अथवा शिकायत दर्ज की जाती है। अगर वह अपराध संगिन अपराधो मे शामिल है, तब पुलिस व्दारा उस अपराध को क्रिमीनल प्रोसिजर कोड 1973 के शेक्शन 154 के तहद ऊस अपराध की रिपोर्ट दर्ज करलेगी, जिसे एफ.आय.आर. कहते है। उसके बाद पुलिस व्दारा उस अपराध के मामलेसे जुडेहूवे सबुतोंको ईकठ्ठा करनेमे जुडजाती है, और अपराधियोको हिरासत मे लेती है। और उन अपराधियोको गिरफ्तार करनेके बाद 24 घटोंके भितर नजदीकी मँजिस्ट्रेटर के समक्ष पेश किया जाता है। उसके बाद आरोपी की जमानत करवानी होती है। ईस लेख मे हम बेल एप्लीकेशन की सुनवाई कैसे होती है? | बैल एप्लीकेशन इन हिंदी | Procedure Of Bail Application | application for bail under crpc | bail procedure in india ईसके बारेमे जानने वाले है।
बेल एप्लिकेशन की सुनवाई कैसे होती है? | Performance of bail petition | Procedure Of Bail Application
जब अपराध की शिकायत मिलनेपर पुलिस व्दारा एफ.आय.आर. दर्ज करवालिया जाता है। तब अपराधीको न्यायालय से जमानत करवालेना जरूरी होता है। वह जमानत एकतो रेग्यूलर बेल हो सकती है। अथवा ॲन्टिसीपेटरी बेल भी हो सकती है। उसके लिए अपराधिको कोर्टसेही जमानत करवालेना जरुरी होता है।
तो कोर्टमे किसतरह जमानतकी कार्यवाई की जाती है? किसतरह उसकी सुनवाई होती है? ईसके बारेमे स्टेप-बाय-स्टेप संपूर्ण जानकारी हम ईस लेख के माध्यमसे हासिल करने वाले है। ईस लेख को अंत तक जरूर पढिएगा। जिस्से आपको बेल एप्लिकेशन की सुनवाई किस तरह से होती है, इसकी पुरी जानकारी मिल सके।
जब किसी पुलिस स्टेशन मे संगिन अपराध की शिकायत दर्ज की जाती है। तब पुलिस उस सिकायतको पुलिस थाने के रजिस्टरमे दर्ज करवालेती है। और उस अपराधके सिलसीलेमे जांचपडताल करनेका काम शुरू करती है। साथही अगर पुलिस को आवश्यक्ता हो तो अपराधिको अरेश्ट भी करती है। याने हिरासत मे लिती है। और 24 घंटेके भितर उस अपराधिको नजदिकी मँजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करती है। तब मँजिस्ट्रेट अपराधिको कुछ समयकेलीए और अपराधीसे अपराध के सिलसीलेमे जांचपडताल करनेके लिए पुलिस कस्टडीमे भेजदेती है। जिसे P.C.R. कहते। और बादमे जब पुलिस कस्टडीकी कालावधी खत्म होती है। तब मँजिस्ट्रेट अपराधीको मँजिस्ट्रेट कस्टडीमे भेजदेते है। जिसे M.C.R. कहते। उसके बाद अपराधीके वकिल व्दारा कोर्टमे जमानत के लिए एप्लिकेशन फाईल किया जाता है। और वहासे जमानत के कार्यवाही की सुरूवात होती है।
जिस बेल एप्लिकेशन को अपराधीके अरेश्ट होनेसे पेहले कोर्टके समक्ष रखा जाता है। उसे Anticipatory Bail Application कहते है। और जिस Bail Application को अपराधीके Arrest होनेके बाद कोर्टके समक्ष रखा जाता है। उसे Regular bail Application कहते है। दोनोही बल एप्लिकेशन कि सुनवाई का तरीका एक ही तरिकेसे होता है। सिर्फ उसके फाईलींग करते समय जो शेक्शन ईस्तेमाल किए जाते है वह अलग-अलग होते है।
जब किसीभी अपराधीका वकिल कोर्ट मे जमानत मिलनेके लिए एप्लिकेशन फाईल करता है तब मँजिस्ट्रेट व्दारा पुलिस इन्हेश्टीगेशन ऑफिसर को “अपराधी को जमानत क्यो नही देना चाहिए?” ईसके बारेमे अपना पक्ष रखने के लिए और बेल एप्लिकेशन के खिलाफ Objection लेनेके लिए नोटीस ईश्यु की जाती है। उसके बाद जब पुलिस ऑफिसर को नोटीस प्राप्त होती है। तब Assistance of Government Public Prosecutor याने सरकारी वकील की नियूक्ती की जाती है। और पुलिस ऑफिसर व्दारा केस के संबंधित ईन्वेश्टिगेशन किए हुवे सारे कागजादोकी एक कॉपी सरकारी वकील के कार्यालय को भेज दिया जाता है। और सरकारी वकील उन केस के संबंधित ईन्वेश्टिगेशन किए हुवे सारे कागजादोकी मदत से बेल अप्लिकेशन मे अपराधिको जमानत ना देनेके लिए Say याने औब्जेक्शन तैयार करते है। और न्यायालम मे दाखिल करके सरकार का पक्ष रखती है।
उसके बाद अगला स्टेप होता है आर्गूमेंट का, जिसमे अपराधी पक्ष का वकिल और सरकारी पक्ष का वकिल उनका आर्गूमेंट होता है। सबसे पेहले अपराधी के वकिल का आर्गूमेंट होता है और वह आपना पक्ष मँजिस्ट्रेट के समक्ष रखती है। जब अपराधी पक्ष का आर्ग्यूमेंट खतम होता है तब उसके बाद सरकारी वकिल का आर्गूमेंट होता है। और वे भी आपना पक्ष मँजिस्ट्रेट के समक्ष रखती है और बेल अप्लिकेशन पर ओब्जेक्शन लेती है। जब दोनो पक्ष के आर्गूमेंट होते रहते है तब मेजिस्ट्रेट उन दोनोके आर्गीमेंट के पॉईंन्टस को नोटडाऊन करती है। और उसके साथ ही सरकारी वकिल व्दारा मँजिस्ट्रेट को वह कागजाद दे दिया जाता है, जो कागजाद पुलिस ऑफिसर व्दारा सरकारी वकील के कार्यालय को भेजे गये थे।
जब दोनो पक्ष के आर्गूमेंट समाप्त होते है तब मँजिस्ट्रेट को जरूरत लगे तो लॉ पॉईन्ट पर बहस होती है और केस लॉ याने साईटेशन दीये जाते है। और आर्गूमेंट कंपलिट किया जाता है। और दोनो पक्ष की आर्गूमेंट सुनने के बाद मेजिस्ट्रेट अपना फैसला सुनाती है। जिस्से एक तो अपराधी को जमानत पर रिहा किया जाता है। अथवा जमानत नही दी जाती है।
तो ईस्तरह कोर्टमे बेल अप्लिकेशन पर सुनवाई होती है। आशा है के आपको यह समझमे आया होगा के बेल एप्लीकेशन की सुनवाई कैसे होती है?| बैल एप्लीकेशन इन हिंदी | Procedure Of Bail Application | application for bail under crpc | bail procedure in india यह लेख पसंद आया होगा।
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