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Explain Protection of woman from domestic violence act 2005। घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम 2005 को समझे।

Explain Protection of woman from domestic violence act 2005। घरेलू हिंसा से महिलाओंका संरक्षण अधिनियम 2005 को समझे।

Photo by RODNAE Productions from Pexels


१) परिचय

दिन-ब-दिन महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा जैसे अपराध बढ़ते जा रहे हैं। जिसमें महिलाओं को शारीरिक मानसिक और आर्थिक उत्पीड़न का शिकार किया जाता है। जिसमें ज्यादातर शादीशुदा महिलाओं का समावेश ज्यादा तौर पर देखा गया है। समाज में सुरक्षित जीवन बिताना यह हर व्यक्ति का मूलभूत अधिकार है मगर बदकिस्मती से ऐसे अधिकार के साथ किसी को समाज में जीने नहीं दिया जाता।

यदि देखा जाए तो मनुष्य अपने निवास स्थान मतलब घर में सुरक्षित महसूस करता है। लेकिन जो हिंसा घर के अंदर किया जाता है तब उस हिंसा को घरेलू हिंसा कहा जाता है। इन घरेलू हिंसा में महिलाओं को कदम कदम पर शारीरिक मानसिक आर्थिक और लैंगिक शोषण किया जाता है और यह घरेलू हिंसा समाज में बहुत बड़ी समस्या बन चुकी है। इसलिए सरकार ने यह कानून protection of woman from domestic violence act 2005 को लागू करती है। जिसे हिंदी में घरेलू हिंसा से महिलाओं का सौरक्षण अधिनियम 2005 कहा जाता है।


२) घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम 2005 इस कानून की जरूरत क्यों हुई:-

प्रत्यक्ष में देखा जाए तो यह महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा पहले से होते आ रहे हैं। इस पर रोक लगाने के लिए सरकार द्वारा बहुत प्रयास किया गया है। जैसे के भारतीय दंड संहिता १८६० के धारा ४९८अ किस धारा से घरेलू हिंसा पर थोड़ा रोक लगा मगर यह ज्यादा दिनों तक नहीं रोक पाया। क्योंकि भारतीय दंड संहिता के धारा 498 अ यह कानून पति और पति के रिश्तेदार याने ससुराल वालों को महिला का उत्पीड़न करने के आरोप में सजा सुनाने का काम करता था करता है। लेकिन इससे महिला के जीवन पर भी बुरा असर पड़ता था। क्योंकि इस तरह के सजा होने से बहुत से महिलाएं सड़क पर आ गए उनको कोई सहारा नहीं रहता था। भारतीय दंड संहिता इस कानून में घरेलू हिंसा के बारे में कोई व्याख्या नहीं बताई गई और ना ही यह कानून घरेलू हिंसा को जानता है इसलिए यहां पर घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण करने वाले कानून की आवश्यकता होने लगी जिससे घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 यह कानून लाया गया। जिससे महिलाओं का घरेलू हिंसा से संरक्षण करने के लिए मदद होने लगी।


३) घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम 2005 क्या है?

घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम 2005 यह कानून 13 सितंबर 2005 में पूरी तरह तैयार हुआ और इस कानून को 26 अक्टूबर 2006 को पूरे भारत में लागू किया गया। इस कानून में कुल 5 चैप्टर और ३७ धाराएं हैं। यह कानून पहली बार घरेलू हिंसा को परिभाषित करता है यह डेफिनेशन बहुत ही सटीक तरीके से बताया गया है। जिसमे ना ही शारीरिक हिंसा के बारे में कहा गया है बलके मौखिक बातों से किए जाने वाले हिंसा, साथ ही इमोशनल और आर्थिक हिंसा के बारे में भी सुस्पष्ट बताया गया है। यह कानून मूलतः सिविल लॉ और अधिकार के लिए है जिससे महिला के सुरक्षा के अनुसार आदेश दिए जाते हैं। यह कानून क्रिमिनल प्रॉसीक्यूशन के लिए नहीं बनाया गया। इस कानून में अलग-अलग रेमेडीज दिए गए हैं। जिससे महिला को कंप्लेंट दायर करने तक मदद मिलती है। यह कानून महिला को घरेलू हिंसा के खिलाफ लड़ने के लिए इमीडिएट सपोर्ट देती है। जिससे यह महिला का संरक्षण हो सके।


४) घरेलू संबंध क्या है?

 घरेलू हिंसा यह एक महिला द्वारा सामना की जाने वाली हिंसा है, जिसके साथ वह घरेलू संबंध में रहती है। घरेलू हिंसा को समझने के लिए डोमेस्टिक रिलेशनशिप यानी घरेलू संबंध को समझना बहुत महत्वपूर्ण है।

डोमेस्टिक रिलेशनशिप यह इस कानून के धारा 2(f) मैं व्याख्या बताई गई है। घरेलू संबंध गाने दो व्यक्ति चाहे वह खून का रिश्ता हो, शादीशुदा यानी विवाह द्वारा हो, अथवा शादी द्वारा बनाए गए रिश्ते हो, एडॉप्शन द्वारा एकत्र कुटुंब पद्धती में साथ रह चुके हो, ऐसे ही दो व्यक्तियों के बीच के संबंध को दर्शाता है।


५) कौन इस अधिनियम के तहत दावा कर सकता है

कोई भी महिला जो घरेलू संबंध में एक घर में रहते हुए किसी प्रकार का घरेलू उत्पीड़न अथवा हिंसा से सामना करती हो।

अ) Consanguineous relationship

इसका मतलब है वह नातेसंबंध जो खून के रिश्तो से संबंधित हो जैसे उदाहरण के लिए मां बेटा, भाई बहन, बाप बेटी ईत्यादी।

ब) Marriage

मैरिज जैसे रिश्ते याने पत्नी, बहू, भाभी, विधवा आदि रिश्ते।

क) Other relationship

जैसे के दत्तक लेना अथवा शादी विवाह द्वारा बने हुए रिश्ते।


६) साजा गृहस्ती क्या है?

साजा गृहस्ती के बारे में इस कानून के धारा 2(s) मैं परिभाषित किया गया है। इस व्याख्या के अनुसार साजा गृहस्ती याने जहां व्यथित व्यक्ति अथवा पीड़ित व्यक्ति रहता है या किसी घरेलू नातेदारी में या तो अकेले या प्रकृति के साथ किसी जगह रह चुका है और जिसके अंतर्गत ऐसी गृहस्ती भी है जो चाहे उस पीड़िता और प्रत्येक अतीत के संयुक्त स्वामित्व या किराएदार ई में है, जिस के संबंध में या तो पीड़ित व्यक्ति क्या प्रत्यय थी क्या दोनों संयुक्त रूप से क्या अकेले कोई अधिकारी, हक, हित में रहते हैं और जिसके अंतर्गत ऐसी गृहस्ती भी है। जो ऐसी अविभक्त कुटुंब का अंग हो सकती है। जिसका प्रत्यर्थी किस बात पर ध्यान दिए बिना की प्रत्यर्थी या पीड़ित व्यक्ती का उस गृहस्ती में कोई अधिकार, हक का हित है, अथवा एक सदस्य है।


७) घरेलू हिंसा क्या है?

घरेलू हिंसा में पीड़ित महिला के जीवन, स्वास्थ्य और उसके सुरक्षा को चोट या नुकसान पहुंचाना शामिल है। जिसमें पीड़ित महिलाको शारीरिक रूपसेेअथवा मौखिक बातों से उसे क्षति पहुंचाना, उसको आर्थिक तंगी करना साथ ही यौन शोषण करना शामिल है। उसके साथ पीड़ित महिला आया उसके रिश्तेदार को किसी कारण से मजबूर करना या मजबूर करने की कोशिश करना अथवा चोट पहुंचाना शामिल है। और साथ ही दहेज की मांग करना अथवा किसी अन्य मूल्यवान वस्तु की पूर्व पता करने के लिए मजबूर करना शामिल है। 

घरेलू हिंसा के बारे में इस कानून में धारा 3 में संपूर्ण व्याख्या बताई गई है।


८) क्या नाबालिग भी इस कानून के अनुसार आवेदन कर सकता है?

इस सवाल का जवाब हां है। यह सच है कि नाबालिग भी इस कानून के अनुसार आवेदन याने अर्जी कर सकता है। इस कानून के धारा 2 (b) मैं चाइल्ड के बारे में डेफिनेशन बताई गई है उसके अनुसार चाइल्ड जाने कोई भी व्यक्ति जो 18 साल के अंदर है और उसके अंतर्गत कोई दत्तक, सौतेला या कुपोषित बालक भी शामिल है।

इस कानून के अनुसार बच्चे की मां बच्चे के ओर से कोर्ट में आवेदन दाखिल कर सकती है। अथवा अगर बच्चे की मां इस कानून के अनुसार भरण पोषण और अन्य सुविधाओं की मांग करती है तो उसके बच्चे भी को एप्लीकेंट होते हैं।


९) रेस्पोंडेंट कौन हो सकता है?

इस कानून के धारा 2(q) मे रेस्पोंडेंट की डेफिनेशन बताई गई है।

रेस्पोंडेंट की डेफिनेशन इस कानून के अनुसार यह है कि रेस्पोंडेंट याने वह पुरुष व्यक्ति जो पीड़ित महिला के साथ घरेलू नाते संबंध में है या रह रहा है। रेस्पोंडेंट यह उसका पति हो सकता है अथवा कोई पुरुष व्यक्ति अथवा कोई रिश्तेदार हो सकता है। रिश्तेदार का मतलब कोई महिला रिश्तेदार भी हो सकती है।


१०) क्या सास अपनी बहू के खिलाफ इस कानून के अधीन दाद मांग सकती है?

नहीं, सास अपनी बहू के खिलाफ इस कानून के अनुसार दाद नहीं मांग सकती। लेकिन अगर सांस अपने बेटे और बहू के वजह से कोई प्रताड़ना का शिकार हो रही हो तब वह अपने बेटे और बहू के खिलाफ कोर्ट में आवेदन कर सकती है और बहू पर बेटे को भड़काने के आरोप लगा सकती है।


११) पीड़ित महिला किन विभिन्न अधिकारियों से संपर्क कर सकती है?

पीड़ित महिला चाहे तो वह protection officer अथवा service officer से संपर्क कर सकती है। अथवा वे चाहे तो मामले की पूरी खबर पुलिस को अथवा न्यायाधीश से संपर्क करके बता सकती है। प्रोटेक्शन ऑफिसर के बारे में पूरी व्याख्या इस कानून के सेक्शन 8 और 9 में बताया गया है और साथ ही इस सेक्शन 8 और 9 में प्रोटेक्शन ऑफिसर के बारे में जानकारी दी गई है। प्रोटेक्शन ऑफिसर यह कोर्ट का ही एक ऑफिसर है जो कि पीड़ित महिला को कंप्लेंट बनाकर देने के लिए और कोर्ट में मजिस्ट्रेट के समक्ष एप्लीकेशन दाखिल करके उस पर आदेश लेने तक पीड़ित महिला की मदद करता है। और साथ ही पीड़ित महिला को मेडिकल ट्रीटमेंट और काउंसलिंग के लिए मदद करता है। और कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश को एनफोर्समेंट करने के लिए भी मदद करता है। 

सर्विस प्रोवाइडर यह एक प्रकार के एनजीओ है। ऐसे ही एक स्वयं समाज सेवा संस्था है जो स्थानीय स्टेट गवर्नमेंट द्वारा रजिस्टर्ड किए गए होते हैं। वह पीड़ित महिला को आश्रय और मदद करते हैं जो के घरेलू हिंसा का शिकार होते हैं। और साथ ही सर्विस प्रोवाइडर पीड़ित महिला को कानूनी तौर पर लीगल एड और साथ में मेडिकल एड और उसके बारे में काउंसलिंग भी प्रोवाइड करते हैं। जिससे पीड़ित महिला को मदद हो सके।


१२) मजिस्ट्रेट को आवेदन

घरेलू हिंसा से संबंधित सभी आवेदन जाने एप्लीकेशन को मैजिस्ट्रेट क्यों जुडिशल मैजिस्ट्रेट फर्स्ट क्लास के श्रेणी में आते हैं उनके समक्ष दाखिल किया जाता है। उस आवेदन में पीड़ित महिला एक अथवा एक से अधिक रिलीफ की मांग कर सकती है। जो के इस कानून की धाराओं में बताया गया है।

आइए देखते हैं कि कौन मजिस्ट्रेट के समक्ष आवेदन पेश कर सकता है। वह निम्नलिखित है-

१) पीड़ित महिला खुद जिसे एग्रीउड पर्सन कहते हैं। वह खुद आवेदन कर सकती है।

२) पीड़ित महिला की ओर से प्रोटेक्शन ऑफिसर मैजिस्ट्रेट के समक्ष आवेदन पेश कर सकता है।

३) अथवा कोई भी ऐसा व्यक्ति जो पीड़ित महिला की तरफ से मैजिस्ट्रेट के समक्ष आवेदन पेश कर सकता है।


१३) पीड़िता को उपलब्ध राहत कौन से हैं?

अ) प्रोडक्शन ऑर्डर सेक्शन १८

प्रोडक्शन ऑर्डर देने मजिस्ट्रेट द्वारा रेस्पोंडेंट को प्रोहिबिट / चेतावनी दी जाती है। कि वह किसी भी प्रकार का घरेलू हिंसा जैसे पीड़ित महिला को प्रताड़ना होने जैसे कृत्य ना करें और ना करने की कोशिश करें। और साथ में यह भी चेतावनी दी जाती है कि रेस्पोंडेंट यह पीड़ित महिला जहां रहती है वहां ना जाए और बच्चे जिस स्कूल में पढ़ते हो वहां के परिसर में दाखिल ना हो और मिलने की कोशिश करके प्रताड़ित ना करें। अथवा प्रताड़ित करने की कोशिश ना करें और कोई संभाषण ना करें। साथ ही यह भी चेतावनी दे सकते हैं के रेस्पोंडेंट और पीड़ित महिला के संपत्ति को नुकसान ना पहुंचाएं और अगर दोनों के बैंक में जॉइंट अकाउंट हो तो उसमें से रकम ना निकाले। और साथ ही पीड़ित महिला को प्रताड़ित करने हेतु पीड़ित महिला के रिश्तेदारों को मिलने की कोशिश ना करें और प्रताड़ित ना करें। इस तरह मैजिस्ट्रेट आदेश दे सकते हैं इसे प्रोडक्शन ऑर्डर कहते हैं।


ब) रेसिडेंस आर्डर सेक्शन १९

इस आदेश से पीड़ित महिला को घर में रहने का आदेश कोर्ट द्वारा दिया जाता है जब पीड़ित महिला को ऐसा लगता हो कि उसे घर से निकाल दिया गया है। इस तरह के आदेश तभी दिया जाता है जब पीड़ित महिला को घर वापस जाना हो और हकीकत में उसे घर से निकाला हो। अगर किसी हालात में पीड़ित महिला को पति के साथ सुरक्षित महसूस ना करती हो तभी कोर्ट पति को घर से बाहर निकलने का आदेश दे सकता है। और यदि कोर्ट ने पति को घर से बाहर निकलने का आदेश दे दिया है तब पति को घर से बाहर निकलना होगा।


क) मॉनिटरी रिलीफ सेक्शन २०

प्रताड़ना के समय पीड़ित महिला को जरूरत के खर्चों के लिए जैसे मेडिकल एक्सपेंस इसके लिए आने वाले खर्च भी पीड़ित महिला मांग सकती है। और साथ ही विवाहित महिला अपने रोजाना खर्चों के लिए मेंटेनेंस भी मांग सकती है।


ड) कस्टडी ऑर्डर सेक्शन २१

इस सेक्शन के अनुसार पीड़ित महिला अपने बच्चों की कस्टडी की मांग भी कर सकती है। और कोर्ट आदेश देकर बच्चों की कस्टडी मां को दे देता है। इस आदेश के होने के बाद पीड़ित महिला को उसके बच्चों को सौंप दिया जाता है। जो उसे उससे दूर किए गए थे।


ई) कंपनसेशन आर्डर सेक्शन २२

पीड़ित महिला को यदि शारीरिक और मानसिक हानि पहुंची हो तब पीड़ित महिला मजिस्ट्रेट से कंपनसेशन ऑर्डर की मांग कर सकती है।


फ) इंटीरियर/ एक्सपोर्ट आर्डर सेक्शन २३

पीड़ित महिला द्वारा दायर किए गए आवेदन के सुनवाई के दरमियान किसी भी स्टेज पर इंटीरियर ऑर्डर एक्स पार्टी ऑर्डर सुना सकती है। यह आदेश मुख्य आवेदन के जजमेंट के पहले सुनवाई जाती है। यहां पर एक बात साबित होती है कि पीड़ित महिला के संरक्षण का पूरा ध्यान रखा गया है।


१४) आदेश की प्रति

इस कानून की धारा 24 के अनुसार सभी प्रकार के आदेश के एक कॉपी पीड़ित महिला को मुफ्त में यानी फ्री ऑफ कॉस्ट दिया जाता है।


१५) एक पार्टी ऑर्डर में परिवर्तन

सेक्शन 25 में कहा गया है कि वह आदेश जो एक पक्षी आदेश है या नहीं पार्टी ऑर्डर है उसमें परिवर्तन आने बदलाव करने की कालावधी 3 दिन है।


१६) समान प्रकृति के अन्य केसेस में राहत 

इस कानून का सेक्शन 26 कहता है कि इस कानून के तहत जो राहत का दावा किया जाता है उसमें इसके अलावा कोई अन्य राहत का दावा किया गया हो उसका इस कानून के तहत दाद मांगते समय आवेदन में उल्लेख किया जाना चाहिए। के समान राहत मिली है।


१७) जूरिडिक्शन

इस कानून के सेक्शन 27 में कोर्ट के जुलूस इनके बारे में बताया गया है। यहां पर कंप्लेनेंट यानी पीड़ित महिला जहां रहती है अथवा फ़ॉन्डेंट जहां रहता है वहां पर कंप्लेंट एप्लीकेशन फाइल कर सकते हैं। अथवा जहां पीड़ित महिला और रेस्पोंडेंट दोनों आखरी समय पति पत्नी इस नाते से रह रहे हो वहां पर भी कंप्लेंट एप्लीकेशन फाइल कर सकते।


१८) अपील 

इस कानून के सेक्शन 29 यह अपील के बारे में बताता है। इसके अनुसार पार्टी को 30 दिन के भीतर सेशन कोर्ट में अपील दाखिल करना चाहिए।


१९) प्रोटेक्शन ऑफिसर ए गवर्नमेंट एम्पलाई

इस कानून के सेक्शन ३० मैं कहां गया है कि प्रोटेक्शन ऑफिसर यह एक गवर्नमेंट एम्पलाई की तरह काम करता है और वह ए गवर्नमेंट एम्पलाई है।


किस तरह हमने इस लेख में रोमांटिक वाले इस कानून को सरल और आसान भाषा में समझने की कोशिश की है। आशा है आपको यह लेख पूरी तरह से समझ में आया होगा यदि आपको हमारा यह लेख पसंद आया हो तो हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें और हमारे यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करें।


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