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सहायक विलेख कैसे लिखें | Supporting Deed in Hindi

सहायक विलेख कैसे लिखें | Supporting Deed in Hindi

Photo by Andrea Piacquadio from Pexels


परिचय

सहायक विलेख को अंग्रेजी में supporting deed कहा जाता है, यह सहायक विलख को नोन-ज्यूडिशियल स्टौम्प पर बनाया जाता है। हालांकि इस दस्तावेज़ को अक्सर बार-बार बनवाने की आवश्यकता नहीं है,लेकिन फिरभी यह दस्तावेज बहोत ही उपयोगी दस्तावेज है। जब भी किसी बात को फिक्स याने की निश्चित करने की आवश्यकता होती है या किसी चीज को बनाने में कुछ त्रुटियां बची रहती हैं, तो उन त्रुटियों को इस दस्तावेज द्वारा हटाया जा सकता है। इसलिए पिछले बातो को जैसे अतीत में क्या हुआ था यह साबित करने के लिये वे पुष्टि करते हैं जिसे अंग्रेजी में conformation कहा जाता है। और कई बार ऐसी पुष्टि की आवश्यकता होती है।

यह सहायक विलेख रोजाना लेन-देन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इस बात को समझने के लिए एक उदाहरण देखते हैं ताकि इस दस्तावेज़ के महत्व को समझ सकें।


मान लीजिए कि A इस व्यक्तीने B को अपना घर बेचने का फैसला किया, उस समय, यह निर्णय लिया गया कि A द्वारा B को कुछ रक्कम एडव्हान्स के तौर पर नकद दिया जाएगा और शेष राशि को पांच साल के बाद दिया जायेगा। इस तरह से एक समझौता A और B के बीच तय किया गया। समझौते के अनुसार B ने A को पूरी राशि का भुगतान किया। फिर घर ट्रांसफर करने का समय आया। तब उस समय समझौते को पंजीकृत करना आवश्यक हो गया। इस तरह का बिक्री विलेख अगर पंजीकरण के लिए पंजीकरण अधिकारी के पास लेजाया जाए तो वहां पंजीकृत नहीं किया जा सकता। क्योकी, ईसका कारण यह है कि यदि कोई अनुबंध या दस्तावेज बनाया जाता है, तो उसे पंजीकरण के लिए 120 दिनों के भीतर प्रस्तुत किया जाना चाहिए। इसलिए, पांच साल पहले A और B के बीच हस्ताक्षरित किया गया एक बिक्री विलेख पंजीकृत नहीं किया जा सकता। इस स्थिति से दुसरा रास्ता यह है कि A और B इन दोनों के दर्मियान एक और अनुबंध याने सहायक विलेख /  सपोर्टिंग डिड बनाना बेहतर है। और यह बनाया गया सहायक विलेख/  सपोर्टिंग डिड को पंजिकृत अधिकरी के समक्ष पंजिकृत करे। हालांकि, इस सहायक विलेख/  सपोर्टिंग डिड में, पिछले समय बनाया गया दस्तावेज की सभी परिस्थितीयो का उल्लेख करना आवश्यक है। यदि इसका परिशिष्ट के रूप में एक पुराना अनुबंध है, तो इसे संलग्न करने की आवश्यकता है ताकि सहायक विलेख का महत्व और भी बढ़ जाए और इसके साथ पुराना अनुबंध सहायक विलेख के साथ पंजीकृत दस्तावेज़ का एक हिस्सा बन जाएगा।

जैसा कि ऊपर दिए गए उदाहरण से आप यह देख सकते हैं की, यह सहायक विलेख एक विशेष परिस्थिति में बहोत महत्वपूर्ण है। इसलिए इस सहायक विलेख/  सपोर्टिंग डिड के बारे में और भी जानकारी हासिल करते है। सहायक विलेख/  सपोर्टिंग डिड कब बनाया जोता है,  यह देखते हैं।


निम्नलिखित परिस्थितीयोमे सहायक विलेख/सपोर्टिंग डिड बहोत आवश्यक्ता होती है, बह इस प्रकार है: -

  1. जब किसी बात की Support याने पुष्टि करनी होती है, तो उस समय सहायक विलेख बनाना आवश्यक हता है।
  2. यदि दो पक्षों के बीच मौखिक रुप से कोई समझौता होता है, तो यह सही है अथवा इस तरह का एक मौखिक समझौता किया गया था, यह सिबीत करने के लिये एक सहायक विलेख बनाना आवश्यकत होता है।
  3. यदि कोई व्यक्ति मौखिक इच्छा व्यक्त करता है, तो अन्य रिश्तेदार भी उसे सहमती देने के लिये सहायक विलेख देकर ऐसा कर सकते हैं।
  4. यदि कभी ऐसी परिस्थिति उत्पन्न होती है जहाँ सहायक विलेख तैयार करना आवश्यक होता है, तो ऐसी परिस्थिती मे सहायक विलेख तैयार करना होगा।


यह सहायक विलेख को अन्य समझौते की तरह एक सामान्य स्टाम्प पर बनाया जाना चाहिए, जिसे अंग्रेजी में जनरल स्टौप पेपर कहा जाता है। मौजूदा प्रचलित दरों के अनुसार,बताए गये राशी के स्टौम्प पर सहायक विलेख बनाया जा सक्ता है। इसका मतलब यह है कि, साधारण अनुबंघ कि तराह सहायक विलेख /  सपोर्टिंग डिड  यह साधारण मूल्य के जनरल स्टौम्प पेपर पे बनाया जाता हैं। क्योंकी, यह सहायक विलेख आखिर कार एक अनुबंध का एक हिस्सा ही है, वह केवल उन चीजों को सहाय करता है जो इस विलेक में या दस्तावेजों में हैं।


आइए अब उन बातों पर ध्यान दें, जिन्हें सहायक विलेख बनवाते समय उनमे में शामिल करने की आवश्यकता है।

सहायक विलेख /  सपोर्टिंग डिड में निम्नलिखित बातो को शामिल करना आवश्यक है: -

  1. सहायक विलेख बनवाने वाले पक्षकार और जिस चीज के लिये सहाय होनी चाहिए उस चीज के पक्षकार और उनमें क्या रिश्ता है वह स्पष्ट होना चाहिए। कई मामलों में, पिछले समझौते के समय सकारात्मक पक्ष और पार्टी एक ही हो सकती है। ऐसे में, यह उल्लेख किया जाना चाहिए कि वे एक ही पार्टी हैं।
  2. सहायक विलेख में सबसे महत्वपूर्ण बात याने उनमे इस्तेमाल किये गये तथ्यात्मक खंड है। उन तथ्यात्मक खंडों में जिन महत्वपुर्ण मुद्दो को सहाय करने के लिए उनकी सभी प्रासंगिक और विस्तृत जानकारी साहायक विलेख मे होनी चाहिए। 
  3. इस तथ्यात्मक खंड से पिछले लेन-देन अथवा अनुबंद अथवा जिस चीज को सहाय करने के लिये सहायक विलेख बानाना है उस की विस्तृत जानकारी प्रदान करनी चाहिए।
  4. यह सहायक विलेख क्यो किया जा रहा है उसकी वजाह क्या है इस बात को स्पष्ट रूप से कारण के साथ बताना चाहिए।
  5. पुराने अनुबंध मे जो स्थितियां होंगी। उसका उल्लेख सहायक विलेख मे होना चाहिए।
  6. जिस कीसी चीज को सहायक विलेख द्वारा पुष्टि की जानी थी। उस घटना का विवरण, यदि कोई अनुबंध है, तो उसमें उस वस्तु की निर्धारित कीमत, भुगतान की गई वास्तविक कीमत, जो रकम भविष्यमे दिया जाना है उसको देने का तरिका आदी के सभी बातो का विवरण सहायक विलेख मे लिखा जाना चाहिये।
  7. यदि पुराने अनुबंध के समय कोई गवाह है, अगर कुछ राशि के भुगतान के लिए रसीदें हैं या यदि चेक और कोई अन्य विवरण हैं, तो इन सभी जानकारी का उल्लेख इस सहायक विलेख में किया जाना चाहिए।
  8. इसके अलावा, अगर तभी के हालात मे और अभी के हालात के बीच कोई बदलाव अथवा अंतर है, तो क्या अंतर है? उसका कौन से दस्तावेज़ पर क्या प्रभाव पड़ा? इसका उल्लेख, साथ ही साथ कौनसे रूप का प्रभाव हुवा है ? आदि सभी विवरण सहायक विलेक मे आने चाहिए।

उपरोक्त मुख्य विवरणों के अलावा, सहायक विलेख बनाते समय निम्नलिखित ध्यान रखना चाहिए:-

  1. सहायक विलेख पर जगह, तारीख, गवाह, हस्ताक्षर आदि का विवरण साफ होना चाहिए।
  2. यदि संभव हो, तो उपलब्ध होने पर परिशिष्ट में पुराने दस्तावेजों की एक प्रति शामिल करना उचित रहेगा।
  3. यदि आवश्यक हो तो इन दस्तावेजों को रजिस्ट्रार के साथ रिकॉर्ड करना उचित है।
  4.  अन्यथा, इसे नोटरी पब्लिक के समक्ष हस्ताक्षरीत कियी जाए तो भी उचीत रहेगा।

यह दस्तावेज़ अतीत, घटनाओं, समझौते को सहायक होता है। दस्तावेज़ यह भी बता सकता है कि, अनुबंध और उसके विवरण संबंधित पक्षकार पर बाध्य हैं या नहीं। यदि स्थिति में अंतर है, तो तुलनात्मक अध्ययन और इसके कारण, आदि इस दस्तावेज़ से स्पष्ट होते हैं। 

सहायक विलेख और पुष्टीकरण विलेख लगभग समान ही हैं। फिर भी उनके कुछ विवरण भिन्न हैं। इसलिए हम अगले लेख में इसके बारे में अधिक जानेंगे।


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